1680 में शिवाजी की मृत्यु के पश्चात उनका ज्येष्ठ पुत्र शम्भाजी मराठा राज्य का छत्रपति बना
इसकी माता का नाम साई बाई था शम्भाजी का विवाह येशु बाई के साथ हुआ
इसने अपना सलाहकार एक ब्राह्मण कवि कलश को बनाया
औरंगजेब के पुत्र को शरण
शम्भाजी ने औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर द्वितीय को अपने यहाँ शरण दी थी इसलिए इनको औरंगजेब के कोप का भाजन बनना पडा
संघमेश्वरका युध्द
एक युध्द हुआ 1689 में जिसे संघमेश्वरका युध्द कहा जाता है इसमें कवि कलश के साथ-साथ शम्भा जी की भी हत्या कर दी गई
शम्भा जी का उत्तराधिकारी
शम्भाजी की हत्या के पश्चात राजा राम गद्दी पर बैठा राजाराम शिवाजी का द्वितीय पुत्र था ये अपनेआप को शम्भाजी के पुत्र शाहू का प्रतिनिधि मानता था ये राजा होते हुए भी कभी सिंहासन पर नहीं बैठा था
मराठा संघ
राजाराम ने सारे मराठा सरदार संताजी, घोरबडे, धानाजी यादव, आदि सब ने मिल के एक मराठा संघ बनाया और मुगलों से युध्द किया ये लगभग 20वर्ष तक मुगलों से संघर्ष करते रहे औरंगजेब ने भी मराठों के दमन के काफी प्रयास किये किन्तु वह सफल नहीं हो पाया
औरंगजेब का जिंजी पर अधिकार
औरंगजेब ने जिंजी पर अधिकार किया तो राजाराम विशालगढ भाग गया और जब वहाँ आक्रमण किया तो सतारा भाग गया अत: औरंगजेब मराठों को नहीं पकड पाया
लूटपाट करते हुए राजाराम ने मुगल शक्ति को अपार क्षति पहुँचायी
राजाराम का उत्तराधिकारी
1700 ई. में राजाराम की मृत्यु के पश्चात उसकी पत्नी ताराबाई ने अपने 4 बर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय को सिंहासन पर बैठाया
औरंगजेब व मराठों की संधि
मुगलों के विरुध्द संघर्ष जारी रखा औरंगजेब इन मराठों की नीति से बहुत परेशान हो गया था औरंगजेब ने मराठों के सामने संधि का प्रस्ताव रखा इसी बीच 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हो गई औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही मराठों का स्वतंत्र्ता संग्राम भी समाप्त हो गया
औरंगजेब के बाद जो मुगल शासक आये उन्होंने मराठों से संधि कर ली और मराठा शासक साहू को मराठों का राजा स्वीकार किया