आंग्ल-नेपाल संघर्ष​

आंग्ल-नेपाल संघर्ष​

1768 ई० में गोरखा राज्य के रूप में नेपाल उभरा।, लॉर्ड हेस्टिंग्स के कार्यकाल में 1814 ई० में अंग्रेजों एवं गोरखों में संघर्ष हुआ।कालंग दुर्ग, जैतक दुर्ग, अल्मोड़ा, मालवा व कंबनपुर की लड़ाईयों में गोरखों की बुरी तरह पराजय हुई। इनके नेता अमर सिंह थापा को विवश होकर हथियार डालना पड़ा।

मार्च 1816 ई० में सुगौली की संधि हुई, तराई प्रदेश का दावा छोड़ कुमाऊँ एवं गढ़वाल के क्षेत्र अंग्रेजों को दे दिये गये।सिक्किम छोड़ने एवं काठमांडु में एक ब्रिटिश रेजीडेंट रखने पर भी नेपाली राजी हो गये।

सन् 1814 से 1816 चला एंगलो नेपाल युद्ध (गोरखा युद्ध) तत्कालीन नेपाल अधिराज्य (वर्तमान संघीय लोकतांत्रिक गण राज्य) और ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बीच में हुआ था। जिसका परिणाम सुगौली संधि में हुई और नेपाल ने अपना एक-तिहाई भूभाग ब्रिटिश हुकुमत को देना पडा।

गोरखा युद्ध 1816 ई. में ब्रिटिश भारतीय सरकार और नेपाल के बीच हुआ। उस समय भारत का गवर्नर-जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राज्य का प्रसार नेपाल की तरफ़ भी होने लगा था, जबकि नेपाल अपने राज्य का विस्तार उत्तर की ओर चीन के होने के कारण नहीं कर सकता था।

गोरखों ने पुलिस थानों पर हमला कर दिया और कई अंग्रेज़ों को अपना निशाना बनाया। इन सब परिस्थितियों में कम्पनी नेगोरखा लोगों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 1801 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी का क़ब्ज़ा गोरखपुर ज़िले पर हो जाने से कम्पनी का राज्य नेपाल की सीमा तक पहुँच गया।

यह दोनों राज्यों के लिए परेशानी का विषय था। नेपाली अपने राज्य का प्रसार उत्तर की ओर नहीं कर सकते थे, क्योंकि उत्तर में शक्तिशाली चीन और हिमालय था, अतएव ये लोग दक्षिण की ओर ही अपने राज्य का प्रसार कर सकते थे।

लेकिन दक्षिण में कम्पनी का राज्य हो जाने से उनके प्रसार में बाधा उत्पन्न हो गई।  1814 ई. में गोरखों ने बस्ती ज़िला (उत्तर प्रदेश) के उत्तर में बुटबल के तीन पुलिस थानों पर, जो कम्पनी के अधिकार में थे, आक्रमण कर दिया, फलत: कम्पनी ने नेपाल के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

प्रथम ब्रिटिश अभियान तो विफल हुआ और अंग्रेज़ लोग नेपाली राजधानी पर अधिकार नहीं कर सके। कालंग के क़िले पर हमले के समय अंग्रेज़ सेनापति जनरल जिलेस्पी मारा गया। जैतक की लड़ाई में भी अंग्रेज़ सेना हार गई। लेकिन 1815 ई. में अंग्रेज़ी अभियान को अधिक सफलता प्राप्त हुई।

अब गोरखों ने सोचा कि अंग्रेज़ों से लड़ना उचित नहीं है, अतएव उन्होंने नवम्बर, 1816 ई. में सुगौली की संधि कर ली

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