मिटटी की संरचना

मिटटी की संरचना

मृदा पर प्रभाव डालने वाले पांच कारक होते हैं-

  • पैतृक शैल-मुदा को आधारभूत खनिज एवं पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं।
  • जलवायु- मृदा में होने वाले रासायनिक एवं सूक्ष्म जैविक क्रिया को नियंत्रित करती है।
  • उनस्पति- मृदा में ह्यूमस की मात्रा को नियंत्रित करती है।
  • भूमिगत जल- मृदा को नमी प्रदान करता है।
  • सूक्ष्म जीव- मृदा में वनस्पतियों एवं जीठों के अवशेषों को सड़ा-गला कर खनिज एवं जैविक पदार्थ को अलग करते हैं तथा हयूमस का निर्माण करते हैं।

मृदा के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण कारक जलवायु है। आइये इसे विस्तार में कुछ उदाहरणों से समझते हैं-

  • अगर किसी क्षेत्र में वर्षा अधिक होती है तो वहां मृदा का निक्षालन हो जाता है। अर्थात मृदा के पोषक तत्व पानी के साथ रिस कर निचले स्तर पर चले जाते हैं। इस कारण ऊपरी सतह अनुपजाऊ हो जाती है। उदाहरण के लिए पश्चिमी घाट में मृदा में से सिलिका पदार्थ निक्षालित हो चुका है। जिस कारण यहां लेटराइट मृदा का निर्माण हुआ है जो खाद्यानों की खेती के लिए अनुपयुक्त है।
  • राजस्थान जैसे उच्च ताप एवं शुष्क प्रदेश वाले क्षेत्र में मृदा में कोशिका क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। कोशिका क्रिया के कारण मृदा में उपलब्ध पानी तथा चुना पदार्थ ऊपरी सतह पर आ जाते हैं, जल तो वाष्पीकृत हो जाता है परन्तु चुना सतह पर ही रह जाता है जी मृदा को अनुपजाऊ बनाता है।

मृदा संगठन- निर्माण पांच तत्वों से होता है-

  • खनिज पदार्थ-40-45%
  • ह्यूमस-5-10%
  • मृदा जल-25%
  • मृदा वायु- 25%
  • सूक्ष्म जीव- कवक और जीवाणु

मृदा परिच्छेदिका में चार संस्तर होते है, इसमें सबसे ऊपरी संस्तर सबसे अधिक उपजाऊ
होती है। इसी संस्तर में पौधे फैलाते हैं।
पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत को क्रस्ट कहा जाता है। क्रस्ट में पाये जाने वाले चार महत्वपूर्ण पदार्थ Oxygen, Silica, Aluminium, Iron.

अम्लीय और क्षारीय मृदा

pH मान के अनुसार मृदा को अम्लीय और क्षारीय कहा जा सकता है-

  • उदासीन मुदा pH मान 7
  • अम्लीय मृदा pH मान 7 से कम
  • क्षारीप मृदा pH मान से अधिक

अम्लीय मृदा में Hydrogen आयनों की मात्रा अधिक।
क्षारीय मृदा- Potassium (K) और Sodium (Na) ऋणायनों की मात्रा अधिक।
पौधों की वृद्धि के लिए लाभदायक pH मान 6 से 7.5 तक माना जाता है।
अम्लीय मृदा के सुधार के लिए चूने का प्रयोग किया जाता है।
क्षारीय मृदा के सुधार के लिए जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
सर्वाधिक क्षारीय मृदा क्षेत्र उत्तर प्रदेश में है।
सर्वाधिक लवणीय मुदा क्षेत्र गुजरात में है।
अम्लीय मृदा चाय बागानों के लिए उपयुक्त होती है।

भारत की मिट्टी के प्रकार

भारत की मिट्टी के प्रकार: ICAR (Indian Council for agricultural Research, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) के अनुसार भारत में 8 प्रकार की मिट्टियां पायी जाती हैं –

1. पर्वतीय मृदा
2. जलोढ़ मृदा
3. काली मुदा
4. लाल मृदा
5. लेटेराइट मृवा
6. पीट एवं दलदली मुदा
7. लवणीय एवं क्षारीय मृदा

भारत की सभी मिट्टियों में प्रमुखतः तीन तत्वों की कमी पापी जाती है-
1. हपूमस
2. नाइट्रोजन
3. फॉस्फोरस

भारत में सबसे ज्यादा क्षेत्रफल पर पायी जाने वाली चार मिट्टियां हैं-

1. जलोढ़ मृदा (43%)
2. लाल मृदा (18%)
3. काली मृदा (15%)
4. लेटेराइन मुदा (3.7%)

1. जलोढ़ मृदा

कॉप मिट्टी तथा कछारी मिट्टी भी कहा जाता है।
क्षेत्र-

  • उत्तर भारत के मैदान में सतलज के मैदान से ब्रह्मपुर के मैदान तक।
  • तटीय क्षेत्र में पूर्वी तट पर महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी के डेल्टा क्षेत्र में। केरला तथा गुजरात में कुछ क्षेत्रों पायी जाती है।

जलोढ़ मृदा नदियों द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों से लाकर मैदानी क्षेत्र में बिछा दी गयी है।

जलोढ़ मृदा 2 प्रकार की होती है

  • खादर- नदी के पास में बाढ़ क्षेत्र में पायी जाती है। इसे नदी द्वारा प्रतिवर्ष इसका नवीकरण कर दिया जाता है अतः इसे नयी जलोढ़ भी कहा जाता है। ये अधिक उपजाऊ मुवा है।
  • बांगर- नदी से दूर वाले क्षेत्रों में पायी जाती हैं। ये हर वर्ष नदी द्वारा नवीकृत नहीं हो पाती अतः इसे पुराना जलोढ़ कहा जाता है। अपेक्षाकृत कम उपजाऊ है।

जलोढ़ मृदा भारत में पापी जाने वाली सभी मृदा से सर्वाधिक उपजाऊ है।
बांगर क्षेत्र में खुदाई करने पर चूना पदार्थ की ग्रंथईय पायी जाती है जोकि नदियों द्वारा लामी
गयी हैं तथा कालांतर में मुदा द्वारा दबा दी गयी।
इस मृदा में Nitrogen, Phosphorus तथा हह्यूम्स की कमी पायी जाती है।
चूना तथा Potassium प्रचूर मात्रा में पाया जाता है।

2. लाल मृदा

भारत का दूसरा सबसे बड़ा मृदा वर्ग। कुल 18% क्षेत्र में पायी जाती है।
Iron Oxide के कारण रंग लाल होता है।
क्षेत्र-

  • दक्षिण भारत पठारी भाग में पूर्वी तरफ पायी जाती है।
  • विस्तार- तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, पूर्वी मध्य प्रदेश,
    झारखण्ड में है।
  • पूर्वोत्तर भारत में भी पायी जाती है।
  • सर्वाधिक क्षेत्रफल तमिलनाडु में।

3. काली मृदा

कपासी मृदा या रेगुर मृदा या लावा मृदा के नाम से भी जाना जाता है।
क्षेत्र-

  • उत्तरी कर्नाटक
  • महाराष्ट्र
  • मध्य प्रदेश
  • गुजरात

उत्तर प्रदेश में झांसी तथा ललितपुर में भी पायी जाती है तथा वहां इसे करेल मृदा कहा जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे चेरनोजम कहा जाता है। काला सागर के उत्तर में पुक्रेन तथा
यू०एस०ए० में ग्रेट लेक्स के पश्चिम में पायी जाती है।
काली मृदा लावा चट्टानों के टूटने से बनी मृदा है।
दक्कन पढ़ार तथा मालवा पठार की प्रमुख मिट्टी है।
सबसे अधिक महाराष्ट्र में पायी जाती है।
इस मृदा में जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है। शुष्क कृषि (जल बच वाली सिंचाई पर आधारित) के लिए उपयुक्त।

4. लैटेराइट मृदा

इस मृदा के निर्माण हेतु 2 प्रमुख परिस्थितियां हैं-

  • २००सी०मी० से अधिक वार्षिक वर्षा
    अधिक गर्मी

उपरोक्त परिस्थितियां भारत में 3 जगह पायी जाती है-

  • पश्चिमी तट पर
  • ओड़िशा तट पर
  • शिलांग पठार पर

असम की मिकीरंगमा पहाड़ियां
सर्वाधिक क्षेत्रफल केरल में उसके बाद महाराष्ट्र में।
तमिलनाडु के शिवराय पहाड़ी में भी कुछ मात्रा में पायी जाती है।
ईंटे बनाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त।
हयूमस, नाइट्रोजन, फॉसफोरस तथा पोटास की कमी पायी जाती है।
Iron तथा Aluminium के ऑक्साइट की प्रचुरता पापी जाती है। तथा Iron oxide के कारण ही रंग लाला होता है।
अधिक वर्षा के कारण तथा क्रम से भीगने और सूखने से इस मुदा में सिलिका पदार्थ का निक्षालन हो गया है। अतः यह एक निक्षालित मृदा है।
खाद्यान के लिए अन उपयुक्त मृदा है। चाय कॉफी, मसाले, काजू, सिनकोना आदि उगाए जाते हैं।

5. मरुस्थलीय मृदा

विस्तार भारत के पश्चिमी भाग वाले शुष्क क्षेत्र में। दक्षिणी पंजाब, दक्षिणी हरियाणा, राजस्थान, गुजरात का कच्छ क्षेत्र।
खाद्यान उगाना संभव नहीं अतः ज्वार, बाजरा, मोटे अनाज एवं सरसों की खेती की जाती है।

6. पर्वतीय मृदा

हिमालय के साथ-साथ पायी जाती है।
जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश में पायी जाती
है।
हयूमस की अधिकता होती है। जिस कारण अम्लीय गुण आ गए है। अतः पर्वतीय डालों पर सेब, नाशपाती एवं चाय की खेती की जाती है।
पूर्ण विकसित मृदा नहीं मानी जाती है।

7. पीट एवं दलदली मृदा

पीट मृदा केरल एवं तमिलनाडु के तटों पर जल जमाव के कारण पायी जाती है।
पीट मृदा का विकास गिली भूमि पर वनस्पतियों के सड़ने से हुआ है। अतः इसमें हयूमस की मात्रा अधिक पायी जाती है

  • दलदली मिट्टी में सबसे अधिक हयूम पाया जाता है सुंदर वन वाले क्षेत्र में पायी जाती है।
  • दलदली मिट्टी ज्वार वाले क्षेत्र में पायी जाती है।

8. लवणीय एवं क्षारीय मृदा

  • अधिक सिंचाई वाले क्षेत्रों में पायी जाती है।
  • अधिकांश हरित क्रांति वाला क्षेत्र, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी राजस्थान।
  • इस मृदा को रे और कल्लर नाम से भी जानी जाती है।
  • लवण प्रतिरोधी फसलें ही उगाई जाती हैं जैसे बरसीम, धान एवं गन्ना

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *