History

बीती हुई घटनाओं के अध्ययन को History कहते हैं। इससे हमें उन प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिलती है

स्वतन्त्रता आंदोलन में आरंभिक राजनीतिक संगठन

स्वतन्त्रता आंदोलन में आरंभिक राजनीतिक संगठन

1836 ई० में राजा राम मोहन राय के अनुयायियों ने पहली राजनीतिक संस्था बंग प्रकाशक सभा की स्थापना की। 1838 ई० में बंगाल के जमींदारों ने लैंड होल्डर्स सोसायटी की स्थापना की।  1843 ई० में एक अन्य राजनीतिक सभा बंगाल ब्रिटिश इण्डिया सोसायटी बनी।  28 अक्टूबर, 1851 ई० को ‘लैंड होल्डर्स सोसायटी’ एवं ‘बंगाल ब्रिटिश इंडिया […]

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स्वतन्त्रता आंदोलन का प्रथम चरण

प्रथम चरण (1885-1905 ई०) इस काल को उदारवादी राष्ट्रीयता का युग भी कहा गया है ! कांग्रेस की स्थापना के बाद, अगले 20 वर्षों तक उसको नीति अत्यंत उदार थी। इसे बाद के उग्रपंथी नेताओं ने राजनीतिक भिक्षावृत्ति (Political Mendicancy) कहा। 1888 ई० में दादा भाई नौरोजी ने विलियम डिग्बोई की अध्यक्षता में इंडियन एजेंसी की

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1857 के विद्रोह, कारण, नागरिक विद्रोह

1857 का विद्रोह का प्रारम्भ 1857 का विद्रोह कम्पनी के अधीनस्थ भारतीय सैनिकों की बगावत से प्रारम्भ हुआ 29 मार्च 1857 को बंगाल के बैरकपुर सैन-ए छावनी में तैनात 19 वीं और 34 वीं नैटिव इंफेंटरी में जो सैनिक थे उन्होंने चर्बी लगे कारतूसों को प्रयोगों में लाने से मना कर दिया बॉथ की हत्या

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सिंध और रजवाड़ों का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय

सिंध का विलय ब्रिटिश गवर्नर जेनरल लॉर्ड ऑकलैंड ने रूस के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अफगानिस्तान पर आक्रमण करने की आवश्यकता अनुभव की। ऑकलैंड अफगानिस्तान में अपनी सेनाएँ भेजने के लिए सिंध से एक मार्ग चाहता था।  अंग्रेजों, महाराजा रणजीत सिंह एवं अफगानिस्तान के शाह शुजा बीच फरवरी, 1838 ई० को एक त्रिपक्षीय

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सुगौली संधि

सुगौली संधि क्या थी ? सुगौली संधि, ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच हुई एक संधि है, जिसे 1814-16 के दौरान हुये ब्रिटिश-नेपाली युद्ध के बाद अस्तित्व में लाया गया था। इस संधि पर 2 दिसम्बर 1815 को हस्ताक्ष्रर किये गये और 4 मार्च 1816 का इसका अनुमोदन किया गया। नेपाल की

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आंग्ल-नेपाल संघर्ष​

1768 ई० में गोरखा राज्य के रूप में नेपाल उभरा।, लॉर्ड हेस्टिंग्स के कार्यकाल में 1814 ई० में अंग्रेजों एवं गोरखों में संघर्ष हुआ।कालंग दुर्ग, जैतक दुर्ग, अल्मोड़ा, मालवा व कंबनपुर की लड़ाईयों में गोरखों की बुरी तरह पराजय हुई। इनके नेता अमर सिंह थापा को विवश होकर हथियार डालना पड़ा। मार्च 1816 ई० में

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आंग्ल-सिख संघर्ष -I II III

आंग्ल-सिख युद्ध- प्रथम (1845-46 ई०) रणजीत सिंह कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बावजूद पंजाब में एक स्थायी सिख राज्य स्थापित नहीं कर सका | रणजीत सिंह ने अपने पीछे 40000 सैनिकों का जत्था छोड़ा था, जिसने पंजाब में अराजकता फैलायो। सैनिकों ने खालसा पंचायत का गठन किया तथा उसी के द्वारा सारे निर्णय करने लगे। सैनिकों

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आंग्ल-मराठा युद्ध तृतीय व चतुर्थ

आंग्ल-मराठा युद्ध – III (1804-06 ई०) लॉर्ड वेलेस्ली के सामने मराठा संघ की शक्तियों में तीन पेशवा, सिंधिया एवं भोंसले तो नतमस्तक हो गए परंतु होल्कर अभी शेष था होल्कर उन दिनों अंग्रेजों के मित्र राज्य जयपुर में लूट-मार मचा रहा था। वेलेस्ली ने जयपुर की ओर से 1804 में होल्कर पर आक्रमण कर दिया।

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द्वितीय आंग्ल मराठा युध्द

द्वितीय आंग्ल मराठा युध्द द्वितीय आंग्ल मराठा युध्द 1803 ई0 से 1806 ई0 तक चला आंग्ल माराठा युध्द का दूसरा दौर फ्रांसीसी भय से संलग्न था लार्ड वेलेजली का निर्णय  लार्ड वेलेजली ने इससे बचने के लिए सभी भारतीय प्रांतों को अपने अधीन करने का निश्चय किया द्वितीय आंग्ल मराठा युध्द का कारण लार्ड वेलेजली

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आंग्ल मराठा संघर्ष- प्रथम

प्रथम आंग्ल मराठा संघर्ष  अंग्रेजों और मराठों के मध्य क्रमश: तीन युध्द हुए प्रथम 1775 से 1782 में द्वितीय 1803 से 1806 में तथा तृतीय 1817 से 1818 ई. में सूरत की संधि   प्रथम युध्द का प्रारम्भ सूरत की संधि के साथ हुआ यह युध्द 1775 से 1782 तक चला सूरत की संधि को

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