History

बीती हुई घटनाओं के अध्ययन को History कहते हैं। इससे हमें उन प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिलती है

मौर्योत्तर काल की सम्पूर्ण जानकारी

मौर्योत्तर काल की सम्पूर्ण जानकारी

मौर्योत्तर काल Mauryottar Kaal 187 ई०पू० से 240A.D तक के काल में भारत की राजनीतिक एकता खण्डित रही तथा यह काल मौर्योत्तर काल के नाम से जाना गया।  इस काल में मगध सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में ब्राह्मण साम्राज्यों (शुंग, कण्व, सातवाहन एवं वाकाटक) का उदय हुआ तथा विदेशी आक्रमण हुए।  इस काल में […]

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मौर्य साम्राज्य 🔥 की सम्पूर्ण जानकारी

                     साम्राज्य Maurya Samarajya मौर्य कौन थे ?  स्पूनर के अनुसार मौर्य पारसिक थे क्योंकि अनेक मौर्यकालीन प्रथाएं पार्थिक प्रथाओं से मिलती-जुलती हैं | ब्राह्मण साहित्य, विष्णु पुराण, मुद्राराक्षस, कथासरित्सागर, बृहत्कथा मंजरी के अनुसार मौर्य शूद्र थे | बौद्ध परंपराओं के अनुसार मौर्य क्षत्रिय थे तथा गोरखपुर

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महाजनपद काल की सम्पूर्ण जानकारी

महाजनपद काल Mahajanpad Kaal ई० पू० छठी शताब्दी में भारतीय राजनीति में एक नया परिवर्तन दृष्टिगत होता है। वह है-अनेक शक्तिशाली राज्यों का विकास। अधिशेष उत्पादन, नियमित कर व्यवस्था ने राज्य संस्था को मजबूत बनाने में योगदान दिया। सामरिक रूप से शक्तिशाली तत्वों को इस अधिशेष एवं लौह तकनीक पर आधारित उच्च श्रेणी के हथियारों से जन से जनपद एवं साम्राज्य बनने में काफी योगदान मिला।  सोलह महाजनपद – बुद्ध के समय में हमें सोलह महाजनपदों की सूची प्राप्त होती है।  महाजनपद – राजधानी | 1. अंग  चम्पा 2. गांधार  तक्षशिला 3. कंबोज  हाटक 4. अस्सक या अश्मक  पोतन या पोटली 5. वत्स  कौशाम्बी 6. अवंती  उज्जैयिनी, महिष्मती

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ईरानी एवं यूनानी आक्रमण

ईरानी एवं यूनानी आक्रमण | क्यों और कैसे | परिणाम और प्रभाव पश्चिमोत्तर भारत में ईरानी आक्रमण के समय भारत में विकेन्द्रीकरण एवं राजनीतिक अस्थिरता व्याप्त थी। राज्यों में परस्पर वैमनस्य एवं संघर्ष चल रहा था।  जिस समय भारत में मगध के सम्राट अपने साम्राज्य के विस्तार में रत थे, उसी समय ईरान के ईखमनी शासक भी अपना राज्य विस्तार कर रहे थे। ईरान के शासकों ने पश्चिमी सीमा पर व्याप्त फूट का लाभ उठाया एवं भारत पर आक्रमण कर दिया। ईरानी आक्रमण के बारे में हमें हीरोडोटस, स्ट्राबो तथा एरियन से सूचना प्राप्त होती है। इनके अलावा इखमानी शासकों के लेखों से भी सूचनायें प्राप्त होती हैं। भारत पर आक्रमण ईरानी शासक दारयवहु प्रथम (डेरियस प्रथम) 516 ई० पू० में उत्तर पश्चिम भारत में घुस आया एवं उसने पंजाब, सिन्धु नदी के पश्चिमी क्षेत्र और सिन्ध को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। इस क्षेत्र को उसने फारस का 20वाँ प्रान्त या क्षत्रपी बनाया। फारस साम्राज्य में कुल 28 क्षत्रपी थे। इस क्षेत्र से 360 टैलण्ट सोना भेंट में मिलता था जो फारस के सभी एशियायी प्रांतों से मिलने वाले कुल राजस्व का एक तिहाई था।  ईरानी शासकों ने भारतीय प्रजा को सेना में भी भर्ती किया। ईरानी आक्रमण का प्रभाव  भारत और ईरान का संपर्क 200 सालों तक बना रहा। ईरानी लेखक भारत में लिपि का एक खास

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भागवत् धर्म

भागवत् धर्म  6ठी‘ शताबदी ई०पू० में ब्राह्मणवाद एवं कर्मकांडीय जाटिलता के विरोध में इस धर्म का उदय हुआ, इस धर्म ने ब्राह्मणवाद में भक्ति एवं पूजा का समावेश करवाया  प्रारंभ–‘महाभारत‘ के नारायण उपस्थान प्रसंग से, आरंभिक सिद्धांत–इस धर्म के आरंभिक सिद्धांत गीता में मिलते हैं। वासुदेव–महाकाव्य महाभारत ‘ भागवत् धर्म‘ को एक दिव्यधर्म के रूप में प्रतिष्ठापित करता है तथा विष्णु का उल्लेख ‘वासुदेव‘ के रूप में करता है। अवतार–भागवत् धर्म में विष्णु के अवतारों पुरुषावतार, गुणावतार एवं लीलावतार का उल्लेख है। इस धर्म को वैष्णव धर्म की आरंभिक अवस्था माना जाता है।  वैष्णव धर्म (VAISHNAVISM)  वैष्णव धर्म का विकास छठी शताब्दी ई०पू० में हुआ। इस धर्म का विकास भागवत धर्म से हुआ है।  वैष्णव धर्म की आरंभिक जानकारी छांदोग्य उपनिषद से मिलती है।  मथुरा के कृष्ण (जिनके पिता वसुदेव यादव वंश के वष्णि या सतवत् शाखा के प्रमुख थे) ने ‘वैष्णव धर्म‘ की स्थापना की गुप्तकाल में वैष्णव धर्म लोकप्रियता की चरम सीमा पर पहुँचा।  मेगास्थनीज रचित इंडिका से ज्ञात होता है कि मथुरा के लोग हेराकुलिज का विशेष आदर करते थे।  ‘हेराकुलिज‘ कृष्ण का यूनानी नाम है।  वैष्णव धर्म विष्णु–पूजा पर आधारित है तथा अवतारवाद में विश्वास करता है।  ब्राह्मण ग्रंथों में विष्णु के 39 अवतारों का उल्लेख है जिनमें 10अवतारों को वैष्णव धर्म में मान्यता दी गई है।  मतस्य पुराण में विष्णु के 10 अवतारों का उल्लेख इस प्रकार है–मतस्य, वामन, परशुराम, कच्छप, राम, कलि, वराह, कृष्ण, नृसिंह तथा बुद्ध।  विदिशा से प्राप्त ‘नगर–स्तंभ लेख‘ से ज्ञात होता है कि यूनानी राजदूत हेलियोडोरस कृष्ण का उपासक था। चंद्रगुप्त–II विक्रमादित्य तथा अन्य गुप्त सम्राटों ने परमभागवत् जैसी उपाधियाँ धारण की। चंद्रगुप्त–II तथा समुद्रगुप्त के सिक्कों पर विष्णु के वाहन गरुड़ का चित्र अंकित है।  गरुड़ मुद्रा का उदाहरण गाजीपुर जिले के भितरी नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।  गुप्तकालीन मुद्राओं पर वैष्णव धर्म के अन्य प्रतीक शंख, चक्र, गदा, पद्म तथा लक्ष्मी भी प्राप्त हुए हैं। गंगधर अभिलेख में विष्णु को मधुसूदन कहा गया है। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य–II ने विष्णुपद पर्वत पर विष्णुध्वज की स्थापना की। स्कंद गुप्त के जूनागढ़ तथा बुद्धगुप्त के एरण अभिलेखों का आरंभ विष्णु–स्तुति से होता है। गुप्तकाल में वैष्णव धर्म से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण अवशेष देवगढ़ (झांसी) का दशावतार मंदिर है। दशावतार मंदिर में ही शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हुए नारायण विष्णु को दिखाया गया है। एक अध्ययन के अनुसार गुप्तकाल में वैष्णव धर्म भारत के प्रत्येक क्षेत्र में फैला तथा दक्षिण–पूर्व एशिया, हिंद चीन, कम्बोडिया, मलाया एवं इंडोनेशिया तक इसका प्रचार हुआ।  शैव धर्म (SHAIVISM) भगवान शिव से संबंधित धर्म को शैव धर्म एवं उनके अनुयाइयों को शैव कहा गया। लिंग पूजा का पहला पुरातात्विक साक्ष्य सिंधु सभ्यता के अवशेषों से प्राप्त होता है। लिंग पूजा का पहला साहित्यिक साक्ष्य मतस्य पुराण से प्राप्त होता है।  शिव के लिए ऋग्वेद में रुद्र शब्द का प्रयोग किया गया है।  भव, भूपति, पशुपति एवं शर्व आदि शिव के नाम हैं जिनका उल्लेख अथर्ववेद‘ में किया गया है।  लिंगोपासना का स्पष्ट उल्लेख महाभारत के अनुशासन पर्व में भी है तथा उत्तर भारत में इस धर्म को गुप्त सम्राटों एवं दक्षिण भारत में पल्लव शासकों से विशेष संरक्षण प्राप्त हुआ। पाशुपत शैव इस धर्म के अनुयायी शिव के पशुपति रूप की उपासना करते थे पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है। पाशुपत संप्रदाय की स्थापना लकुलीश ने की थी, जिसे भगवान शिव का ही एक अवतार माना गया है। पाशुपत संप्रदाय में भगवान शिव के 18 अवतारों को मान्यता दी गई है।

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बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म महत्मा बुद्ध के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाएं जन्म–563 ई० में कपिलवस्तु में (नेपाल की तराई में स्थित) मृत्यु–483 ई० में कुशीनारा में (देवरिया उ० प्र०) ज्ञान प्राप्ति -बोध गया। प्रथम उपदेश-सारनाथ स्थित मृगदाव में महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं के चिह्न या प्रतीक घटनाओं के चिह्न या प्रतीक    जन्म – कमल

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जैन धर्म | तथ्य जो प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं !

जैन धर्म छठवीं शताब्दी में उदित हुए उन 62 नवीन धार्मिक संप्रदायों में से एक था। परंतु अंत में जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म ही प्रसिद्ध हुए। छठी शताब्दी ई०पू० में भारत में उदित हुए प्रमुख धार्मिक संप्रदाय निम्न थे –  जैन धर्म [(वर्धमान महावीर (वास्तविक संस्थापक)]  बौद्ध धर्म (गौतम बुद्ध) आजीवक सम्प्रदाय (मक्खलि गोशाल) अनिश्चयवाद (संजय वेट्टलिपुत्र) भौतिकवाद (पकुध कच्चायन) यदृच्छवाद (आचार्य अजाति केशकम्बलीन) घोर अक्रियावादी (पूरन कश्यप) सनक संप्रदाय (द्वैताद्वैत) (निम्बार्क) रुद्र संप्रदाय (शुद्धाद्वैत) (विष्णुस्वामी वल्लभाचार्य) ब्रह्म संप्रदाय (द्वैत) (आनंद तीर्थ) वैष्णव सम्प्रदाय (विशिष्टाद्वैत) (रामानुज) रामभक्त सम्प्रदाय (रामानंद) परमार्थ सम्प्रदाय (रामदास) श्री वैष्णव सम्प्रदाय (रामानुज) बरकरी संप्रदाय (नामदेव)  वर्धमान महावीर : एक संक्षिप्त परिचय जन्म–कुंडय़ाम (वैशाली) जन्म का वर्ष–540 ई०पू० पिता–सिद्धार्थ (ज्ञातृक क्षत्रिय कुल) माता–त्रिशला (लिच्छवी शासक चेटक की बहन) पत्नी–यशोदा,  पुत्री–अनोज्जा प्रियदर्शिनी भाई–नंदि वर्धन,  गृहत्याग–30 वर्ष की आयु में ( भाई की अनुमति से) तपकाल–12 वर्ष तपस्थल–जम्बीग्राम (ऋजुपालिका नदी के किनारे) में एक साल वृक्ष कैवल्य–ज्ञान की प्राप्त 42 वर्ष की अवस्था में निर्वाण–468 ई०पू० में 72 वर्ष की आयु में पावा में धर्मोपदेश देने की अवधि–12 वर्ष  जैन धर्म (JAINISM)  जैन धर्म के संस्थापक इसके प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे।

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वैदिक काल का इतिहास | सम्पूर्ण जानकारी

वैदिक सभ्यता का काल याकोबी एवं तिलक ने ग्रहादि सम्बन्धी उद्धरणों के आधार पर भारत में आर्यों का आगमन 4000 ई० पू० निर्धारित किया है। मैक्समूलर का अनुमान है कि ऋग्वेद काल 1200 ई० पू० से 1000 ई० पू० तक है।  मान्यतिथि– भारत में आर्यों का आगमन 1500 ई० पू० के लगभग हुआ।  आर्यों का मूल स्थान आर्य किस प्रदेश के मूल निवासी थे, यह भारतीय इतिहास का एक विवादास्पद प्रश्न है। इस सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों द्वारा दिए गए मत संक्षेप में निम्नलिखित हैं। यूरोप 5 जातीय विशेषताओं के आधार पर पेनका, हर्ट आदि विद्वानों ने जर्मनी को आर्यों का आदि देश स्वीकार किया है।  गाइल्स ने आर्यों का आदि देश हंगरी अथवा डेन्यूब घाटी को माना है।  मेयर, पीक, गार्डन चाइल्ड, पिगट, नेहरिंग, बैण्डेस्टीन ने दक्षिणी रूस को आर्यों का मूल निवास स्थान माना है। यह मत सर्वाधिक मान्य है। आर्य भारोपीय भाषा वर्ग की अनेक भाषाओं में से एक संस्कृत बोलते थे। भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार भारोपीय वर्ग की विभिन्न भाषाओं का प्रयोग करने वाले लोगों का सम्बन्ध शीतोष्ण जलवायु वाले ऐसे क्षेत्रों से था जो घास से आच्छादित विशाल मैदान थे। यह निष्कर्ष इस मत पर आधारित है

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हडप्पा सभ्यता – सिन्धु घाटी की सभ्यता

  हडप्पा सभ्यता Hadappa Sabhyata  इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि सर्वप्रथम 1921 में पाकिस्तान के शाहीवाल जिले के हड्प्पा नामक स्थल से इस सभ्यता की जानकारी प्राप्त हुई। 1922 में जब मोहनजोदड़ो एवं अन्य स्थलों का पता चला तब यह मानकर कि सिन्धु घाटी के इर्द-गिर्द ही इस सभ्यता का

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प्राचीन काल के प्रमुख राजवंश संस्थापक एवं राजधानी

राजवंश संस्थापक राजधानी हर्यक वंश बिंबिसार राजगृह, पाटलिपुत्र शिशुनागवंश शिशुनाग पाटिलपुत्र नंद वंश महापद्मनंद पाटिलपुत्र मौर्य वंश चंद्रगुप्त मौर्य पाटिलपुत्र शुंग वंश पुष्यमित्र शुंग पाटिलपुत्र कण्व वंश वसुदेव पाटिलपुत्र सातवाहन वंश सिमुक प्रतिष्ठान इक्ष्वाकु वंश श्री शांतमूल नागार्जुनीकोण्ड कुषाण वंश कडफिसस प्रथम पुरुषपुर (पेशावर), मथुरा गुप्त वंश श्रीगुप्त पाटिलपुत्र हूण वंश तोरमाण शाकल (सियालकोट) पुण्य

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