कम्प्यूटर संचार

कम्प्यूटर संचार

संचार का अर्थ है सूचनाओं का आदान-प्रदान करना। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा एक कम्प्यूटर से डेटा, निर्देश तथा सूचनाएँ दूसरे कम्प्यूटरों तक पहुँचती है, डेटा संचार कहलाती है। डेटा संचार में दो या से अधिक कम्प्यूटरों के मध्य डिजिटल या एनालॉग डेटा का स्थानांतरण किया जाता है, जो आपस में संचार चैनल से जुड़े होते हैं।

डेटा को सिग्नल्स के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जाता है। सिग्नल्स तीन प्रकार के होते हैं।

1. डिजिटल सिग्नल्स (Digital Signals)

डिजिटल सिग्नल्स में डेटा का इलेक्ट्रॉनिक रूप में आदान-प्रदान किया जाता है, अर्थात् बाइनरी संख्याओं (0 तथा 1) के रूप में

2. एनालॉग सिग्नल्स (Analog Signals)

एनालॉग सिग्नल्स में डेटा का रेडियों तरंगों के रूप में आदान-प्रदान किया जाता है। उदाहरण के लिए टेलीफोन लाइनों में।

3. हाईब्रिड सिग्नल्स (Hybrid Signals)

हाईब्रिड सिग्नल्स में एनालॉग तथा डिजिटल दोनों प्रकार के सिग्नल्स के गुण होते हैं।

संचार चैनल के प्रकार (संचार चैनल के प्रकार) संचार चैनल तीन प्रकार के होते हैं

1. सिम्पलेक्स चैनल (Simplex Channel)

इसमें डेटा का प्रवाह सदैव एक ही दिशा में होता है अर्थात् यह चैनलकेवल एक ही दिशा में डेटा का संचार कर सकता है। इस चैनल के माध्यम से केवल एक संचार युक्ति ही सूचना को भेज सकती है तथा दूसरी संचार युक्ति सूचना को केवल प्राप्त कर सकती है। उदाहरण के लिए रेडियो स्टेशन से रेडियो सिग्नल श्रोताओं के पास पहुँचते हैं, किन्तु श्रोताओं से वापस रेडियों स्टेशन नहीं जाते हैं; जैसे A से B की ओर प्राप्तकर्त्ता (Receiver)

2. अर्द्ध डुप्लेक्स चैनल (Half Duplex Channel)

इस चैनल में डेटा का प्रवाह दोनों दिशाओं में होता है, किन्तु एक समय में केवल एक ही दिशा में डेटा का प्रवाह हो सकता है। उदाहरण के लिए टेलीफोन लाइन में एक समय में केवल एक ही दिशा में डेटा का संचार होता है। जैसे A से B या B से A की ओर।

3. पूर्ण डुप्लेक्स चैनल (Full Duplex Channel)

इस चैनल में डेटा का संचार दोनों दिशाओं में होता है। दोनों चैनल लगातार डेटा का आदान-प्रदान कर सकते हैं। उदाहरण के लिए वायरलैस में एक ही समय में डेटा का प्रवाह दोनों दिशाओं में एक साथ हो सकता है; जैसे- A से B तथा B से A की आर।

प्रेषक और प्राप्तकर्ता (Sender and Receiver)

प्रेषक और प्राप्तकर्ता (Sender and Receiver)

संचार मीडिया (Communication Media)

किसी कम्प्यूटर से टर्मिनल या किसी टर्मिनल से कम्प्यूटर तक डेटा के संचार के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता होती है, इस माध्यम को कम्युनिकेशन लाइन या डेटा लिंक कहते हैं।

ये निम्न दो प्रकार के होते हैं

गाइडेड मीडिया या वायर्ड तकनीकी (Cuided Media or wired Technologies) गाइडेड मीडिया में डेटा सिग्नल तारों (Wires) के माध्यम से प्रवाहित होते हैं इन तारों के द्वारा डेटा का संचार किसी विशेष पथ से होता है। तार, कॉपर, टिन या सिल्वर के बने होते हैं। सामान्यतः ये तीन प्रकार के होते हैं

1. ईथरनेट केबल या ‌ट्विस्टिड पेयर (ईथरनेट केबल या मुड़ जोड़ी)

इस प्रकार के केबल में तार आपस में उलझे (Twisted) होते है, जिसके ऊपर एक कुचालक पदार्थ तथा एक अन्य परत का बाहरी आवरण (जिसे जैकेट कहते हैं) लगा होता है। दो में से एक तार सिग्नल्स को प्राप्तकर्ता तक पहुँचाने के लिए तथा दूसरा अर्थिंग के लिए उपयोग किया जाता है। इस केबल का प्रयोग छोटी दूरी में डेटा संचार के लिए करते हैं। इस तार का प्रयोग लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) में किया जाता है।

2. कोएक्सीयल केबल (Coaxial Cable)

इस केबल के द्वारा उच्च आवृत्ति वाले डेटा को संचारित किया जाता है। यह केबल उच्च गुणवत्ता का संचार माध्यम है। इस तार को जमीन या समुद्र के नीचे से ले जाया जाता है। इस केबल के केन्द्र में ठोस तार होता है, जो कुचालक तार (Wire) से घिरा होता है। इस कुचालक तार के ऊपर तार की जाली बनी होती है, जिसके ऊपर फिर कुचालक की परत होती है। यह तार अपेक्षाकृत महँगा होता है, किन्तु इसमें अधिक डेटा के संचार की क्षमता होती है। इसका प्रयोग टेलीविज़न नेटवर्क में किया जाता है।

3. फाइबर-ऑप्टिक केबल (Fibre-Optic Cable)

यह एक नई तकनीक है, जिसमें धातु के तारों की जगह विशिष्ट प्रकार के ग्लास या प्लास्टिक के फाइबर का उपयोग डेटा संचार के लिए करते है। ये केबल हल्की तथा तीव्र गति वाली होती है। इस केबल का प्रयोग टेलीकम्युनिकेशन और नेटवर्किंग के लिए होता है।

अनगाइडेड मीडिया या वायरलेस तकनीक (Unguided Media or Wireless Technologies)

केबल के महँगा होने तथा इसके रख-रखाव का खर्च अधिक होने के कारण डेटा संचार के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। अनगाइडेड मीडिया में डेटा का प्रवाह बिना तारों वाले संचार माध्यमों के द्वारा होता है। इन मीडिया में डेटा का प्रवाह तरंगों के माध्यम से होता है। चूँकि इस माध्यम में डेटा का संचार बिना तारों (तरंगो के द्वारा) के द्वारा होता है, इसलिए इन्हें ‘अनगाइडेड मीडिया या वायरलेस तकनीक’ कहा जाता है। कुछ अनगाइडेड मीडिया का विवरण निम्न हैं

1. रेडियोवेव ट्रांसमिशन (Radiowave Transmission)

जब दो टर्मिनल रेडियों आवृतियों (Radio Frequencies) के माध्यम से सूचना का आदान-प्रदान करते हैं तो इस प्रकार के संचार को रेडियोवेव ट्रांसमिशन कहा जाता है। ये रेडियो तरंगे सर्वदिशात्मक (Omnidirectional) होती है तथा लम्बी दूरी के संचार के लिए प्रयोग की जा सकती है। रेडियोवेव ट्रांसमिशन वायरड तकनीक से सस्ता होता है तथा मोबाइलिटी (Mobility) प्रदान करता है। परन्तु, इस पर वर्षा, धूल, आदि का बुरा प्रभाव पडता है।

2. माइक्रोवेव ट्रांसमिशन (Microwave Transmission) इस सिस्टम में सिग्नल्स खुले तौर पर (बिना किसी माध्यम के) रेडियों

सिग्नल्स की तरह संचारित होते हैं। इस सिस्टम में सूचना का आदान-प्रदान आवृतियों के माध्यम से किया जाता है। माइक्रोवेव इलेक्ट्रोमैगनेटिक (electro magnetic) तरंगे होती है जिनकी आवृत्ति लगभग 0.3 GHZ से 300 GHZ के बीच में होती है। ये एकल दिशात्मक (Uni-directional) होती है। यह को-एक्सियल केबल की तुलना में तीव्र गति से संचार प्रदान करता हैं। इसमें अच्छी बैण्डविथ होती है किन्तु इस पर वर्षा, धूल आदि (अर्थात् खराब मौसम) का बुरा प्रभाव पड़ता है। इसका प्रयोग सेल्यूलर नेटवर्क तथा टेलीविजन ब्रॉडकास्टिंग (broadcasting) में होता है।

इन्फ्रारेड वेव ट्रांसमिशन (Infrared wave Transmission)

इन्फ्रारेड वेव छोटी दूरी के संचार के लिए प्रयोग में लाए जाने वाली उच्च आवृत्ति की तरंगे होती है। ये तरंगे ठोस ऑब्जेक्ट (solid-objects) जैसे कि दीवार आदि के आर-पार नहीं जा सकती है। मुख्यतया, ये TV रिमोट, वायरलेस स्पीकर आदि में प्रयोग की जाती है।

सेटेलाइट संचार (Satellite Communication)

सेटेलाइट संचार तीव्र गति का डेटा संचार माध्यम है। यह लम्बी दूरी के संचार के लिए सबसे आदर्श संचार माध्यम होता है। अन्तरिक्ष में स्थित सेटेलाइट (उपग्रह) को जमीन पर स्थित स्टेशन से सिग्नल भेजते हैं तथा सेटेलाइट उस सिग्नल का विस्तार करके उसे किसी दूसरे दूर स्थित स्टेशन पर वापस भेज देता है। इस सिस्टम के द्वारा एक बड़ी मात्रा में डेटा को अधिकतम दूरी तक भेजा जा सकता है। इसका प्रयोग फोन, टीवी तथा इण्टरनेट आदि के लिए सिग्नल्स भेजने में होता है।

इन्हें भी जानें

  • ब्लूटूथ (Bluetooth) ये एक ऐसी वायरलैस (बिना तार वाली) तकनीक है, जिसमें बहुत छोटी दूरी पर स्थित दो माध्यमों में डेटा का आदान- प्रदान किया जा सकता है।
  • बैंडविथ (Bandwidth) इसका प्रयोग डेटा ट्रांसफर की दर निर्धारित करने में होता है। इसका मात्रक साइकिल/सेकेण्ड (CPS) या हर्ट्ज है।
  • थ्रपुट (Throughput) यह दो कम्प्यूटरों के मध्य होने वाले डेटा के स्थानांतरण की मात्रा है। इसका मात्रक बिट्स/सेकेण्ड (B/S) है।
  • बॉड (Baud) यह डेटा के संचारण की गति मापने का मात्रक है। इसे बिट/सेकेण्ड (B/S) भी कहा जाता है।

कम्प्यूटर नेटवर्क (Computer Network)

कोई नेटवर्क एक से अधिक बिन्दुओं, वस्तुओं या व्यक्तियों को आपस में इस प्रकार जोड़ता है कि उनमें से प्रत्येक किसी दूसरे के साथ सीधा सम्बन्ध बना सके। प्रत्येक नेटवर्क का एक निश्चित उद्देश्य होता है। कम्प्यूटर नेटवर्क से हमारा तात्पर्य आसपास या दूर बिखरे हुए कम्प्यूटरों को इस प्रकार जोड़ने से है कि उनमें से प्रत्येक कम्प्यूटर किसी दूसरे कम्प्यूटर के साथ स्वतन्त्र रूप से सम्पर्क बनाकर सूचनाओं या सन्देशों का आदान-प्रदान कर सके और एक दूसरे के साधनों तथा सुविधाओं को साझा कर सके।
दूसरे शब्दों में, “सूचनाओं या अन्य संसाधनों के परस्पर आदान-प्रदान एवं साझेदारी के लिए दो या दो से अधिक कम्प्यूटरों का परस्पर जुड़ाव कम्प्यूटर नेवटर्क कहलाता है। कम्प्यूटर नेटवर्क के अन्तर्गत संसाधनों एवं संयन्त्रों की परस्पर साझेदारी होती है, जिससे डेटा तथा सूचनाएँ एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर में समान रूप से पहुँचती है।”

कम्प्यूटर नेटवर्क एक कम्पनी, एक अथवा अधिक भवनों, एक कमरे तथा शहर के मध्य स्थापित किए जा सकते हैं।

कम्प्यूटर नेटवर्क के प्रकार (कंप्यूटर नेटवर्क के प्रकार)

नेटवर्कों को उनके कम्प्यूटरों की भौगोलिक स्थिति के अनुसार मुख्यतः तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है।

1. लोकल एरिया नेटवर्क (Local Area Network -LAN)

ऐसे नेटवर्कों के सभी कम्प्यूटर एक सीमित क्षेत्र में स्थित होते हैं। यह क्षेत्र लगभग एक किलोमीटर की सीमा में होना चाहिए; जैसे कोई बड़ी बिल्डिंग या उनका एक समूह। लोकल एरिया नेटवर्क में जोड़े गए उपकरणों की संख्या अलग-अलग हो सकती है। इन उपकरणों को किसी संचार केबल द्वारा जोड़ा जाता है। लोकल एरिया नेटवर्क के द्वारा कोई संगठन अपने कम्प्यूटरों, टर्मिनलों, कार्यस्थलों तथा अन्य बाहरी उपकरणों को एक दक्ष (Efficient) तथा मितव्ययी (Cost effective) विधि से जोड़ सकता हैं, ताकि वे आपस में सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकें तथा सबको सभी साधनों का लाभ मिल सके। चित्र में एक लोकल एरिया नेटवर्क दिखाया गया है।
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2. वाइड एरिया नेटवर्क (Wide Area Network – WAN)

वाइड एरिया नेटवर्क से जुड़े हुए कम्प्यूटर तथा उपकरण एक-दूसरे से हजारों किलोमीटर की भौगोलिक दूरी पर भी स्थित हो सकते हैं। इनका कार्यक्षेत्र कई महाद्वीपों तक फैला हो सकता है। यह एक बड़े आकार का डेटा नेटवर्क होता है। इसमें डेटा के संचरण की दर लोकल एरिया नेटवर्क की तुलना में कम होती है।

अधिक दूरी के कारण प्रायः इनमें माइक्रोवेव स्टेशनो या संचार उपग्रहों (Communication sataellites) का प्रयोग सन्देश आगे भेजने वाले स्टेशनों की तरह किया जाता है। माइक्रोवेव नेटवर्क दो रिले टावरों के बीच आवाज या डेटा को रेडियो तरंगो के रूप में भेजते हैं। प्रत्येक टावर उस सन्देश को प्राप्त करके उत्तेजित (amplify) करता है और फिर आगे भेज देता है।
विश्वव्यापी डेटा कम्युनिकेशन नेटवर्क का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। वे आजकल के वित्तीय जगत (शेयर मार्केट, बैंक, वित्तीय संस्थाओं आदि) के लिए अनिवार्य हो गए हैं।

3. मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क (Metropolitan Area Network – MAN)

जब बहुत मगरे लोकल एरिया नेटवर्क अर्थात् लैन किसी नगर या शहर के अन्दर एक परे से जुड़े रहते हैं तो इस प्रकार के नेटवर्क को मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क कहा जाता है। इसे संक्षेप में मैन भी कहते हैं, जिसकी गति 10-100 Mbits/sec होती है। ये काफी महँगे नेटवर्क होते हैं जो फाइबर ऑप्टिक केबल से जुड़े होते हैं। ये टेलीफोन या केबल ऑपरेटर और माइक्रोवेव लिंक द्वारा प्रदान किए जाते हैं।

नेटवर्किंग के लाभ (नेटवर्किंग के फायदे)

नेटवर्किंग के निम्नलिखित लाभ हैं साधनों का साझा (Resources Sharing)

– हम नेटवर्क के किसी भी कम्प्यूटर से जुड़े हुए साधन का उपयोग नेटवर्क के अन्य कम्प्यूटरों पर कार्य करते हुए कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी – कम्प्यूटर के साथ लेजर प्रिण्टर जुड़ा हुआ है, तो नेटवर्क के अन्य कम्प्यूटरों से – उस प्रिण्टर पर कोई भी सामग्री छापी जा सकती है।

डेटा का तीव्र सम्प्रेषण (Rapidly Transmission of Data)

– कम्प्यटरों के नेटवर्किंग से दो कम्प्यूटरों के बीच सूचना का आदान-प्रदान तीव्र तथा सुरक्षित रूप से होता है। इससे कार्य की गति तेज होती है और समय की बचत होती है।

विश्वसनीयता (Reliability)

नेटवर्किंग में किसी फाइल की दो या अधिक प्रतियाँ अलग-अलग कम्प्यूटरों पर स्टोर की जा सकती है। यदि किसी कारणवश एक कम्प्यूटर खराब या असफल हो जाता है, तो वह डेटा दूसरे कम्प्यूटरों से प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार नेटवर्क के कम्प्यूटर एक-दूसरे के लिए बैकअप का कार्य भी कर सकते हैं। जिससे उनकी विश्वसनीयता बढ़ती है।

पर्सनल एरिया नेटवर्क

ये बहुत छोटी दूरी के लिए उपयोग होने वाला नेटवर्क है, जिसकी क्षमता कम दूरी पर उपस्थित एक या दो व्यक्तियों तक होती है। उदाहरण के लिए ब्लूटुथ, वायरलैस, यू एस बी आदि पैन के उदाहरण है।

वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क

(वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क – वीपीएन)

वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क एक प्रकार का नेटवर्क है जो किसी प्राइवेट नेटवर्क जैसे कि किसी कम्पनी के आन्तरिक नेटवर्क (Internal Network) से जुड़ने के लिए इण्टरनेट का प्रयोग करके बनाया जाता है।

यह आजकल का एक तेजी से प्रसारित होने वाला नेटवर्क हैं, जिसका प्रयोग बड़ी-बड़ी संस्थाओं में तेजी से बढ़ा है। ये नेटवर्क आभासी भी हैं और निजी – भी, निजी इसलिए क्योंकि इस नेटवर्क में किसी संस्था की निजता की पूरी गारण्टी होती है तथा आभासी इसलिए, क्योंकि यह नेटवर्क वैन का प्रयोग नहीं करता है।

नेटवर्किंग युक्तियाँ (Networking Devices)

सिग्नल्स की वास्तविक शक्ति को बढ़ाने के लिए नेटवर्किंग युक्तियों का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त नेटवर्क युक्तियों का प्रयोग दो या दो से अधिक कम्प्यूटरों को आपस में जोड़ने के लिए भी किया जाता है। कुछ प्रमुख नेटवर्किंग युक्तियाँ निम्न हैं

1. रिपीटर (Repeater)

रिपीटर ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होते हैं जो निम्न स्तर (Low level) के सिग्नल्स को प्राप्त (Receive) करके उन्हें उच्च स्तर का बनाकर वापस भेजते हैं। इस प्रकार सिग्नल्स लम्बी दूरियों को बिना बाधा के तय कर सकते हैं। रिपीटर्स का प्रयोग कमजोर पड़ चुके सिग्नल्स एवं उनसे होने वाली समस्याओं से बचाता है। रिपीटर्स का प्रयोग नेटवर्क में कम्प्यूटरों को एक-दूसरे से जोड़ने वाले केबल की लम्बाई बढ़ाने में किया जाता है। इनकी उपयोगिता सर्वाधिक उस समय होती है, जब कम्प्यूटरों को आपस में जोड़ने के लिए काफी लम्बी केबल की आवश्यकता होती है।

2. हब

हब का प्रयोग ऐसे स्थान पर किया जाता है जहाँ नेटवर्क की सारी केबल मिलती है। ये एक प्रकार का रिपीटर होता है जिसमें नेटवर्क चैनलों को जोड़ने के लिए पोर्ट्स लगे होते हैं। आमतौर पर एक हब में 4, 8, 16, अथवा 24 पोर्ट लगे होते हैं। इसके अतिरिक्त हब पर प्रत्येक पोर्ट के लिए एक इण्डीकेटर लाइट (लाइट एमिटिंग डॉयोड-LED) लगी होती है। जब पोर्ट से जुड़ा कम्प्यूटर ऑन होता है तब लाइट जलती रहती है। हब में कम्प्यूटरों को जोड़ना अथवा हबों को आपस में जोड़ना या हटाना बहुत सरल होता है। एक बड़े हब में करीबन 24 कम्प्यूटरों को जोड़ा जा सकता है। इससे अधिक कम्प्यूटरों को जोड़ने के लिए एक अतिरिक्त हब का प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रक्रिया (दो यो अधिक हबों को आपस में जोड़ना) को डेजी चेनिंग कहते हैं।

3. गेटवे (Gateway)

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गेटवे एक ऐसी युक्ति है, जिसका प्रयोग दो विभिन्न नेटवर्क प्रोटोकाल को जोड़ने के काम आता है। इन्हें प्रोटोकॉल परिवर्तक (Protocol converters) भी कहते हैं। ये फायरवॉल की तरह कार्य करते हैं।

4. स्विच (Switch)

स्विच वे हार्डवेयर होते हैं जो विभिन्न कम्प्यूटरों को एक लैन (LAN) में जोड़ते हैं। स्विच को हब के स्थान पर उपयोग किया जाता है। हब तथा स्विच के मध्य एक महत्वपूर्ण अन्तर यह है, कि हब स्वयं तक आने वाले डेटा को अपने प्रत्येक पोर्ट पर भेजता है, जबकि स्विच स्वयं तक आने वाले डेटा को केवल उसके गन्तव्य स्थान (Destination) तक भेजता है।

5. राउटर (Router)

राउटर का प्रयोग नेटवर्क में डेटा को कहीं भी भेजने में करते हैं, इस प्रक्रिया को राउटिंग कहते हैं। राउटर एक जंक्शन की तरह कार्य करते हैं। बड़े नेटवर्कों में एक से अधिक रूट होते हैं, जिनके जरिए सूचनाएँ अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँच सकती है। ऐसे में राउटर्स ये तय करते हैं, कि किसी सूचना को किस रास्ते से उसके गन्तव्य तक पहुँचाना है।

6. राउटिंग स्विच (Routing Switch)

ऐसे स्विच, जिनमें राउटर जैसी विशेषताएँ होती हैं, राउटिंग स्विच कहलाते हैं। राउटिंग स्विच नेटवर्क के किसी कम्प्यूटर तक भेजी जाने वाली सूचनाओं को पहचान कर, उन्हें रास्ता दिखाते हैं। राउटिंग स्विच, सूचनाओं को सबसे सही रास्ता खोजकर उनके गन्तव्य स्थान तक पहुँचाता है।

7. ब्रिज (Bridge)

ब्रिज छोटे नेटवर्कों को आपस में जोड़ने के काम आते हैं, ताकि ये आपस में जुड़कर एक बड़े नेटवर्क की तरह काम कर सकें। ब्रिज एक बड़े या व्यस्त नेटवर्क को छोटे हिस्सों में बाँटने का भी कार्य करता है। व्यस्त नेटवर्क को तब बाँटा जाता है जब नेटवर्क के एक हिस्से को बाकी हिस्सों से अलग रखा जाना हो।

8. मॉडेम (Modem)

मॉडेम एनालॉग सिग्नल्स को डिजिटल सिग्नल्स में तथा डिजिटल सिग्नल्स को एनालॉग सिग्नल्स में बदलता है। एक मॉडेम को हमेशा एक टेलीफोन लाइन तथा कम्प्यूटर के मध्य लगाया जाता है।

डिजिटल सिग्नल्स को एनालॉग सिग्नल्स में बदलने की प्रक्रिया को मोड्यूलेशन तथा एनालॉग सिग्नल्स को डिजिटल सिग्नल्स में बदलने की प्रक्रिया को डीमोड्यूलेशन कहते हैं।

सर्वर (Server)

सर्वर वह कम्प्यूटर होता है। जो इण्टरनेट का प्रयोग करने वालों अर्थात् उपयोगकर्ता को सूचनाएँ प्रदान करने की क्षमता रखता है। यह नेटवर्क का सबसे प्रमुख तथा केन्द्रीय कम्प्यूटर होता हैं। नेटवर्क के अन्य सभी कम्प्यूटर सर्वर से जुड़े होते हैं। सर्वर क्षमता और गति की दृष्टि से अन्य सभी कम्प्यूटरो से श्रेष्ट होता है और प्रायः नेटवर्क का अधिकांश अथवा समस्त डेटा सर्वर पर ही रखा जाता है।

नोड (Node)

सर्वर के अलावा नेटवर्क के अन्य सभी कम्प्यूटरों को नोड कहा जाता है ये वे कम्प्यूटर होते हैं, जिन पर उपयोगकर्ता कार्य करते हैं। प्रत्येक नोड का एक निश्चित नाम और पहचान होती है। कई नोड अधिक शक्तिशाली होते हैं। ऐसे नोडों को प्रायः वर्कस्टेशन (Workstation) कहा जाता है। नोडों को प्रायः क्लाइंट (Client) भी कहा जाता है।

प्रोटोकॉल (Protocol)

वह प्रणाली, जो सम्पूर्ण संचार-प्रक्रिया में विविध डिवाइसों के मध्य सामंजस्य स्थापित करती है, प्रोटोकॉल कहलाती है। प्रोटोकॉल की उपस्थिति में ही डेटा तथा सूचनाओं को प्रेक्षक से लेकर प्राप्तकर्ता तक पहुँचाया जाता है। कम्प्यूटर नेटवर्क का आधार भी प्रोटोकॉल ही है।

नेटवर्क टोपोलॉजी (Network Topology)

कम्प्यूटर नेटवर्क में कम्प्यूटरों को आपस में जोड़ने के तरीके को टोपोलॉजी कहते हैं। किसी टोपोलॉजी के प्रत्येक कम्प्यूटर, नोड या लिंक स्टेशन कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, टोपोलॉजी नेटवर्क में कम्प्यूटरों को जोड़ने की भौगोलिक व्यवस्था होती है। इसके द्वारा विभिन्न कम्प्यूटर एक-दूसरे से परस्पर सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं।

नेटवर्क टोपोलॉजी निम्नलिखित प्रकार की होती है।

1. बस टोपोलॉजी (BUS Topology)

इस टोपोलॉजी में एक लम्बे केबल से युक्तियाँ जुड़ी होती है। यह नेटवर्क इन्स्टॉलेशन छोटे अथवा अल्पकालीन ब्रॉडकास्ट के लिए

बस टोपोलॉजी

होता है। इस प्रकार के नेटवर्क टोपोलॉजी का प्रयोग ऐसे स्थानों पर किया जाता है, जहाँ अत्यन्त उच्च गति के कम्युनिकेशन चैनल का प्रयोग सीमित क्षेत्र में किया जाना है। परन्तु यदि कम्प्युनिकेशन चैनल खराब हो जाए तो पूरा नेटवर्क खराब हो जाता है।

लाभ (Advantages)

इसमें नए नोड जोड़ना अथवा पुराने नोड हटाना बहुत आसान होता है।

किसी एक कम्प्यूटर के खराब होने पर सम्पूर्ण नेटवर्क प्रभावित नहीं होता। परन्तु इसमें खराब हुए नोड का पता लगाना बहुत कठिन है।

इसकी लागत बहुत कम होती हैं।

2. स्टार टोपोलॉजी (Star Topology)

इस टोपोलॉजी के अन्तर्गत एक होस्ट कम्प्यूटर होता है, जिससे विभिन्न लोकल कम्प्यूटरों (नोड) को सीधे जोड़ा जाता है। यह होस्ट कम्प्यूटर हब कहलाता है। इस हब के फेल होने से पूरा नेटवर्क फेल हो सकता है।

लाभ (Advantages)

यदि कोई लोकल नोड कम्प्यूटर खराब हो जाए, तो शेष नेटवर्क प्रभावित नहीं होता। इस स्थिति में खराब हुए नोड कम्प्यूटर का पता लगाना आसान होता है।

एक कम्प्यूटर को होस्ट कम्प्यूटर से जोड़ने में कम लागत आती है। लोकल कम्प्यूटर की संख्या बढ़ाने से नेटवर्क की सूचना के आदान- प्रदान की क्षमता प्रभावित नहीं होती।

3. रिंग टोपोलॉजी (Ring Topology)

इस टोपोलॉजी में कोई हब या एक लम्बी केबल नहीं होती। सभी कम्प्यूटर एक गोलाकार आकृति के रूप में केबल द्वारा जुड़े होते हैं। प्रत्येक कम्प्यूटर अपने अधीनस्थ कम्प्यूटर से जुड़ा होता है। इसमें किसी भी एक कम्प्यूटर के खराब होने पर सम्पूर्ण रिंग बाधित होती है। यह गोलाकार आकृति सर्कुलर नेटवर्क भी कहलाती है .

रिंग टोपोलॉजी लाभ (Advantages) इसमें छोटे केबल की आवश्यकता होती है।

यह ऑप्टिकल फाइबर में एक दिशा में डेटा के प्रवाह के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।

4. मैश टोपोलॉजी (Mesh Topology)

इस टोपोलॉजी का प्रत्येक कम्प्यूटर, नेटवर्क में जुड़े अन्य सभी कम्प्यूटरों से सीधे जुड़ा होता है। इसी कारण से इसे (Point-to-Point) नेटवर्क या (Completely Connected) नेटवर्क भी कहा जाता है। इसमें डेटा के आदान-प्रदान का प्रत्येक निर्णय कम्प्यूटर स्वयं ही लेता हैं।

मैश टोपोलॉजी

1. ये टोपोलॉजी अधिक दूरी के नेटवर्क के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है।

2. इस टोपोलॉजी में किसी एक कम्प्यूटर के खराब होने पर पूरा संचार बाधित नहीं होता है।

5. ट्री टोपोलॉजी (Tree Topology)

इस टोपोलॉजी में एक नोड से दूसरी नोड तथा दूसरी नोड से तीसरी नोड, किसी पेड़ की शाखाओं की तरह जुड़ी होती है। यही ट्री टोपोलॉजी कहलाती है। ट्री टोपोलॉजी, स्टार टोपोलॉजी का ही विस्तृत रूप है। इस टोपोलॉजी में रूट (Root) नोड सर्वर की तरह कार्य करता है।

1. इस टोपोलॉजी में नेटवर्क को आसानी से बढ़ाया जा सकता है।

2. यह टोपोलॉजी पदानुक्रम (Hierarchical) डेटा के संचार के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।

कम्प्यूटर नेटवर्किंग मॉडल

कम्प्यूटर नेटवर्क के मुख्यतः दो मॉडल होते हैं

1. पियर टू पियर नेटवर्क (Peer-to-Peer Network) दो अथवा दो से अधिक ऐसे कम्प्यूटरों का नेटवर्क जो आपस में कम्युनिकेशन के लिए एक जैसे प्रोग्राम का उपयोग करते हैं। इसे P2P नेटवर्क भी कहा जाता है।

पियर टू पियर नेटवर्क

इसमें डेटा (ऑडियों, वीडियो आदि) का डिजिटल प्रारूप में आदान- प्रदान होता है। इस नेटवर्क में कम्प्यूटर्स आपस में फाइलें ट्रान्सफर करने के लिए यूनिवर्सल सीरियल बस (USB) से जुडें होते हैं। इस नेटवर्क में सभी कम्प्यूटर क्लाइण्ट तथा सर्वर दोनों की तरह कार्य करता है।

2. क्लाइण्ट/सर्वर नेटवर्क (Client/Server Network) ऐसानेटवर्क, जिसमें एक कम्प्यूटर सर्वर तथा बाकी कम्प्यूटर क्लाइण्ट की

तरह कार्य करें, क्लाइण्ट/सर्वर नेटवर्क कहलाता है। क्लाइण्ट कम्प्यूटर,से किसी सर्विस के लिए रिक्वेस्ट (Request) करता है तथा सर्वर उस रिक्वेस्ट के लिए उचित रिस्पॉन्स (Response) देता है।

क्लाइंट/सर्वर नेटवर्क ऑपन सिस्टम इण्टरकनेक्शन

यह कम्प्यूटर नेटवर्क की डिजाइनिंग के लिए विकसित किया गया एक स्तरित (Layered) ढाँचा है, जो सभी प्रकार के कम्प्यूटरों में संचार के लिए अनुमति देता है।

इसका विकास ISO (International Standard Organisation) के द्वारा दो कम्प्यूटरों के मध्य होने वाले संचरण का मानकीकरण करने के लिए किया गया। ISO के द्वारा विकसित होने के कारण इसे ISO-OSI रेफ्रेंस (Reference) मॉडल भी कहा जाता है। OSI मॉडल में कुल सात परतें होती हैं

लेयर का नाम प्रमुख कार्य

1. फिज़िकल लेयर इस परत का मुख्य कार्य है, नेटवर्क के भौतिक कनेक्शन से सिग्नल्स को प्राप्त करना या भेजना।

2. डेटा लेयर लिंक यह परत डेटा के नोड (सिस्टम) से नोड (सिस्टम) तक विश्वसनीय वितरण (Delivery) के लिए प्रयुक्त होती है।

3. नेटवर्क लेयर यह परत डेटा के पैकेटों को स्रोत (Source) से गन्तव्य (Destination) तक पहुँचाती है।

4. ट्रांसपोर्ट लेयर यह परत पूरे सन्देश को स्रोत पर चलने वाले प्रोग्राम से गन्तव्य पर चलने वाले प्रोग्राम तक पहुँचाती है।

5. सेशन लेयर यह परत दो नोड्स (सिस्टम) को आपस में संवाद स्थापित करने की अनुमति देती है।

6. प्रेजेन्टेशन लेयर यह परत डेटा को कम्प्यूटर के वांछित प्रारूप में बदलती है।

7. एप्लीकेशन लेयर यह परत उपयोगकर्ता के द्वारा आवेदित सेवाएँ प्रदान करती है जैसे ई-मेल या फाइल ट्रांसफर । यह परत ई-मेल/फाइल भेजने तथा संग्रहीत रखने के लिए आधार उपलब्ध कराती है।

| नेटवर्क सम्बन्धित पदावलियाँ (नेटवर्क संबंधी शर्तें)
मल्टीप्लैक्सिंग (Multiplexing)

ये ऐसी तकनीक है, जिसका प्रयोग सिग्नल्स को एक सामान्य माध्यम से एक साथ प्रसारित करने किया जाता है।

ईथरनेट (Ethernet)

यह एक LAN तकनीक है, जो कम्प्यूटर को नेटवर्क पर एक्सेस करने की सुविधा देती है। इस नेटवर्क को सेट करना बेहद आसान होता है तथा यह नेटवर्क आज के समय का सबसे लोकप्रिय और सस्ता नेटवर्क है। ईथरनेट द्वारा सूचनाओं को 10 मेगावाट/सेकण्ड की रफ्तार से ट्रांसफर किया जा सकता है।

कोड डिवीजन मल्टीपल एक्सेस

– यह मल्टीपलैक्सिंग की ऐसी पद्धति है जो कई सिग्नलों को सिंगल (अकेले) ट्रांसमिशन चैनल से प्रसारित होने की अनुमति देता है। इस प्रकार उपलब्ध बैंडविथ का बेहतर उपयोग संभव हो जाता है। इस तकनीक का प्रयोग अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी (Ultra high Frequency – UHF) वाले 800 मेगाहर्टज तथा 1.9 गीगा बैंडस् वाले सेल्यूलर फोनस् में होता है।

पब्लिक स्विच्ड टेलीफोन नेटवर्क

यह कॉपर के तारों द्वारा एनालॉग (Voices) को लाने-ले जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय टेलीफोन नेटवर्क है। यह टेलीफोन नेटवर्क, नए टोलीफोन नेटवर्कों (जैसे- ISDN तथा FDDI) के विपरीत तरह से कार्य करता है।

इंटीग्रटेड सर्विसेज डिजिटल नेटवर्क

यह नेटवर्क वॉइस (Voice), वीडियो (Video) तथा डेटा (data) को संचारित करने के लिए डिजिटल या सामान्य टेलीफोन लाइन्स का प्रयोग करता है। इसमें पैकेट तथा सर्किट दोनो प्रकार की स्विचिंग का प्रयोग होता है।

वायरलेस लोकल लूप (Wireless Local Loop WLL)

यह ऐसा बेतार (Wireless) का संचार लिंक है जिसमें यूजर नेटवर्क से रेडियो आवृतियों के जरिए जुडता है। इसे फीक्सड वायरलेस कनेक्शन भी कहा जाता है। यह CDMA तकनीक पर आधारित होता है।

पैकेट स्विचिंग (Packet Switching)

यह नेटवर्क से डेटा को संचारित करने की एक विधि है जिसमें डेटा को छोटे- छोटे पैकेटस् के रूप में बाँट लिया जाता है। जिसके बाद आसानी से उस डेटा को डेस्टिनेशन तक पहुंचाँ दिया जाता है।

सर्किट स्विचिंग (Circuit Switching)

इसमें डेटा को एक फिजीकल मार्ग के द्वारा गंतव्य तक पहुँचाया जाता है। डेटा को सोर्स से डेस्टिनेशन तक केवल एक ही मार्ग द्वारा पहुँचाया जाता है।

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