कम्प्यूटर की मैमोरी किसी कम्प्यूटर के उन अवयवों साधनों तथा रिकॉर्ड करने वाले माध्यमों को कहा जाता है, जिनमें प्रोसेसिंग में उपयोग किए जाने वाले अंकीय डेटा (Digital Data) को किसी समय तक रखा जाता है। कम्प्यूटर मैमोरी आधुनिक कम्प्यूटरों के मूल कार्यों में से एक अर्थात् सूचना भण्डारण (Information Retention) की सुविधा प्रदान करती है।
वास्तव में, मैमोरी यह कम्प्यूटर का वह भाग है, जिसमें सभी डेटा और प्रोग्राम स्टोर किए जाते हैं। यदि भाग न हो, तो कम्प्यूटर को दिया जाने वाला कोई भी डेटा तुरन्त नष्ट हो जाएगा। इसलिए इस भाग का महत्व स्पष्ट है। मैमोरी व मुख्यतया दो प्रकार की होती है मुख्य मैमोरी (Main Memory) तथा सहायक मैमोरी (Auxiliary Memory)। इनमें से मुख्य मैमोरी को सीपी यू (CPU) का भाग माना जाता है तथा सहायक मैमोरी उससे बाहर चुम्बकीय माध्यमों (Magnetic Mediums); जैसे- हार्ड डिस्क, फ्लॉपी डिस्क, टेप आदि के रूप में होती है। दोनों प्रकार की मैमोरी में लाखों की संख्या में बाइट्स (Bytes) होती है, जिनमें सभी प्रकार के डेटा (Data) और आदेश (Instruction), बाइनरी संख्याओं के रूप में भण्डारित किए जाते हैं। किसी कम्प्यूटर की मुख्य मैमोरी का आकार जितना ज्यादा होता है, उसकी प्रोसेसिंग गति उतनी ही ज्यादा होती है।
मैमोरी का अनुक्रम (Memory Hierarchy)
मैमोरी को दो आधार पर विभाजित किया जाता है- क्षमता (Capacity) तथा एक्सेस समय (Access Time)। क्षमता, सूचना (Information) की वह मात्रा व है; (बिट्स में) जिसे मैमोरी स्टोर कर सकती है। एक्सेस समय, समय का वह व अन्तराल है जो डेटा के लिए रिक्वेस्ट (Request) तथा उस रिक्वेस्ट के प्रतिपादन में लगता है। ये एक्सेस समय जितना कम होता है, मैमोरी की गति उतनी ही अधिक होती है। चित्र में मैमोरी अनुक्रम को बढ़ती गति तथा घटते आकार के रूप में दर्शाया गया है।
मैमोरी के मापदण्ड (Parameters of Memory) स्टोरेज कैपेसिटी
यह मैमोरी के साइज को प्रदर्शित करती है। कम्प्यूटर की आन्तरिक मैमोरी को वर्ड या बाइट में मापा जाता है।
| एक्सेस मोड
किसी भी मंगारी की बहुत सारी लोकेशन होती हैं। इन मैमोरी लोकेशनों से इन्फॉर्मेशन को रेग्डमली (Randomly), सीक्वेन्शियली (Sequentially) तथा डायरेक्टली (Directly) एक्सेस किया जाता है।
एक्सेस टाइम
एक्सेस टाइम वह है, जो कम्प्यूटर के रीड और राइट ऑपरेशन्स को सम्पन्न करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
मापन की प्राथमिक इकाइयाँ (Basic Units of Measurement)
कम्प्यूटर की सभी सूचनाएँ (Informations), इलेक्ट्रॉनिक कम्पोनैण्ट; जैसे- इण्टीग्रेटेड सर्किट, सेमीकण्डक्टर; के द्वारा हैण्डल की जाती हैं जो किसी सिग्नल की केवल दो अवस्थाएँ (States) पहचानती हैं- उपस्थिति और अनुपस्थिति। इन अवस्थाओं को पहचानने के लिए दो प्रतीकों (Symbols) का प्रयोग किया जाता है-0 और 1, जिसे ‘बिट’ भी कहते हैं। 0, सिग्नल की अनुपस्थिति तथा 1, सिग्नल की उपस्थिति को दर्शाता है। एक बिट कम्प्यूटर की वह सबसे छोटी यूनिट है जो केवल 0 या 1 स्टोर कर सकती है, क्योंकि एक सिंग्नल (Single) बिट केवल एक या दो ही मान (Value) स्टोर कर सकती है। कम्प्यूटर में जब हम रैम, रोम, फ्लॉपी, डिस्क, हार्ड डिस्क इत्यादि का प्रयोग करते हैं तो डेटा कुछ यूनिट्स में स्टोर होता है, जिसे निबल, बिट, बाइट किलोबाइट, मेगाबाइट और गीगाबाइट कहते है।
इनका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार किया गया है
- बिट बिट, बाइनरी डिजिट को निरूपित करता है। यह एक सिंगल डिजिट है, जिसमें 0 तथा 1 का प्रयोग होता है- 0 से तात्पर्य ऑफ (OFF) तथा 1 से तात्पर्य ऑन (ON) से है।
- निबल निबल में चार बिट होती हैं, दो निबल एक बाइट के बराबर होते हैं।
- बाइट बाइट लगभग एक कैरेक्टर है (जैसे लैटर ‘a’, नम्बर ‘I’, प्रतीक ‘?’ आदि)। 8 बिट के एक समूह को बाइट कहा जाता है।
- किलोबाइट मैमोरी में 1024 बाइट्स को 1 किलोबाइट कहते हैं।
- टेराबाइट एक टेराबाइट में अधिक-से-अधिक 240 बाइट (1024 GB), 1 ट्रिलियन (1012) बाइट होती हैं।
- पेटाबाइट एक पेटाबाइट, 1024 टेराबाइट या 250 बाइट के बराबर होती है।
- एक्साबाइट एक एक्साबाइट, 1024 पेटाबाइट या 260 बाइट के बराबर होती है।
- > जेटाबाइट एक जेटाबाइट 1024 एक्साबाइट या 270 बाइट्स के बराबर होती है।
- मैमोरी की इकाइयाँ (Units of Memory)
मेगाबाइट मैमोरी में 1024 किलोबाइट्स को 1 मेगाबाइट कहते हैं। इसका तात्पर्य 1 मिलियन बाइट या 1000 किलोबाइट्स से हैं।
गीगाबाइट मैमोरी में 1024 मेगाबाइट के समूह को 1 गीगाबाइट कहते हैं। इसका तात्पर्य एक बिलियन बाइट्स या 1000 मेगाबाइट्स से है। अधिकतर चिप बनाने वाली कम्पनियाँ मेगाबाइट तथा गीगाबाइट का प्रयोग करती है; जैसे- 64 MB, 128 MB, 256 MB, 1.2 GB इत्यादि ।
मैमोरी के प्रकार (Types of Memory)
मैमोरी को दो भागों में बाँटा गया है।
1. प्राथमिक मैमोरी (प्राइमरी मैमोरी) या मेन मैमोरी
2. द्वितीयक मैमोरी (सेकेण्डरी मैमोरी) या ऑक्जीलरी मैमोरी
1. प्राथमिक मैमोरी (Primary Memory)
इसे आन्तरिक मैमोरी भी कहा जाता है, क्योंकि यह कम्प्यूटर के सी पी यू का ही भाग होती है। प्राइमरी मैमोरी में किसी समय चल रहें प्रोग्राम (या प्रोग्रामों) तथा उनके इनपुट डेटा और आउटपुट डेटा कुछ समय के लिए स्टोर किया जाता है। जैसे ही उनकी आवश्यकता समाप्त हो जाती है, उन्हें हटाकर दूसरे डेटा या प्रोग्राम रखे जा सकते हैं। इस मैमोरी का आकार सीमित होता है, परन्तु इसकी गति बहुत तेज होती है, ताकि जब भी किसी डेटा की जरूरत हो, इसमें से तुरन्त लिया जा सके। कम्प्यूटर की मुख्य मैमोरी का आकार जितना ज्यादा होता, है वह कम्प्यूटर उतना ही तीव्र माना जाता है।
प्राइमरी मैमोरी को दो भागों में बाँटा जा सकता है
1. रैण्डम एक्सेस मैमोरी (Random Access Memory)
यह मैमोरी एक चिप की तरह होती है जो मैटल ऑक्साइड सेमीकण्डक्टर (MOS) से बनी होती है। रैम में उपस्थित सभी सूचनाएँ अस्थाई होती हैं और जैसे कम्प्यूटर की विद्युत सप्लाई बन्द कर दी जाती है, वैसे ही समस्त सूचनाएँ नष्ट हो जाती हैं अर्थात् रैम एक वॉलेटाइल (Volatile) मैमोरी है।
रैम का उपयोग डेटा को स्टोर करने तथा उसमें (मैमोरी में) उपस्थित डेटा को पढ़ने के लिए किया जाता है। रैम में उपस्थित प्रत्येक लोकेशन का अपना एक निश्चित पता (Address) होता है। इस पते (Address) के द्वारा ही सी पी यू (CPU) को यह बताया जाता है, कि मैमोरी की किस लोकेशन में सूचना स्टोर करनी है या किस लोकेशन से सूचना प्राप्त करनी है।
रैम दो प्रकार की होती है
(1) डायनैमिक रैम (Dynamic RAM)
इसे डी रैम (DRAM) भी कहते हैं। डी रैम चिप के स्टोरेज सेल परिपथों (Circuits) में एक ट्रांजिस्टर लगा होता है जो ठीक उसी प्रकार कार्य करता है जिस प्रकार कोई ऑन/ऑफ स्विच कार्य करता है और इसमें एक कैपेसिटर (Capacitor) भी लगा होता है जो एक विद्युत चार्ज को स्टोर कर सकता है।
ट्रांजिस्टर रूपी स्विच की स्थिति के अनुसार, वह कैपेसिटर चार्जड (Charged) भी हो सकता है और अनचार्जड (Uncharged) भी। इन स्थितियों को क्रमशः 0 बिट या 1 बिट माना जाता है, परन्तु कैपेसिटर का चार्ज लीक हो सकता है, इसलिए उस चार्ज को फिर से भरने या उत्पन्न करने का प्रावधान अर्थात रिफ्रैश (Refresh) किया जाता है जिसके कारण इसकी गति धीमी हो जाती है। इस प्रकार डायनैमिक रैम चिप ऐसी मैमोरी की सुविधा देता है, जिसकी सूचना बिजली बन्द करने पर नष्ट हो जाती है।
डी रैम के अन्य उदाहरण हैं
(i) एसडीरैम (SDRAM – Synchronous Dynamic RAM)
(ii) आरडीरैम (RDRAM – Rambus Dynamic RAM)
(iii) डीडीरैम (DDRAM – Double Data Dynamic RAM)
(II) स्टैटिक रैम (Static RAM)
इसे एस रैम (SRAM) भी कहते हैं। इसमें डेटा तब तक संचित रहता है जब तक विद्युत सप्लाई ऑन (ON) रहती है। स्टैटिक रैम में स्टोरेज सेल परिपथों में एक से अधिक ट्रांजिस्टर लगे होते हैं। इसमें कैपेसिटर नहीं लगा होता है। स्टैटिक रैम अधिकतर (उसकी
तेज गति के कारण) कैश की तरह उपयोग किया जाता है। डायनैमिक रैम की तुलना में स्टैटिक रैम अधिक महँगी होती है।
एस रैम के अन्य उदाहरण हैं
(i) नॉन-वालेटाइल एस रैम (Non-volatile SRAM)
(ii) स्पेशल एस रैम (Special SRAM)
(iii) एसिंक्रोनस एस रैम (Asynchronous SRAM)
(iv) सिंक्रोनस एस रैम (Synchronous SRAM)
2. रीड ओनली मैमोरी (Read Only Memory)
इसे संक्षेप में रोम (ROM) कहा जाता है। इस मैमोरी में उपस्थित डेटा तथा निर्देश स्थाई होते हैं। जिस कारण इन्हे केवल पढ़ा जा सकता है, परन्तु इन्हें डेटा और निर्देशों में परिवर्तित करना सम्भव नहीं है। डेटा और निर्देशों के स्थाई होने के कारण कम्प्यूटर की विद्युत सप्लाई बन्द होने पर भी इस चिप में भरी सूचनाएँ संरक्षित रहती हैं अर्थात रोम नॉन-वॉलेटाइल (Non- Volatile) मैमोरी है, वास्तव में रोम चिप बनाते समय ही उसमें कुछ आवश्यक डेटा और प्रोग्राम्स डाल दिए जाते हैं जो स्थाई होते हैं। रोम का उपयोग सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों; जैसे- कैलकुलेटर, वीडियो गेम, डिजिटल कैमरा आदि में किया जाता है। रोम के निम्न प्रकार हैं
रोम
> प्रोम (PROM) यह प्रोग्रामेबल रीड ओनली मैमोरी (Programmable Read Only Memory) का संक्षिप्त नाम है। यह एक ऐसी मैमोरी है, जिसमें एक प्रोग्राम की सहायता से सूचनाओं को स्थायी रूप से स्टोर किया जाता है। साधारण रोम मैमोरी में ट्रांजिस्टर स्विचों को स्थायी रूप से ऑन (1) या ऑफ (0) स्थितियों में सेट कर दिया जाता है। लेकिन प्रोम मैमोरी के मामले में चिप को इस प्रकार बनाया जाता है। कि इसके सभी स्विचों को ऑन करके छोड़ दिया जाता है। जब इस मैमोरी में कोई सूचना भरनी होती है, तो एक उपकरण जिसे प्रोम प्रोग्रामर (PROM Programmer) या बर्नर (Burner) कहा जाता है, द्वारा ऐसी उच्च वोल्टेज के पल्स उत्पन्न किए जाते हैं, जिनसे कुछ चुने हुए स्विच नष्ट हो जाते हैं अर्थात् वे स्विच 1 से 0 हो जाती है। इस प्रकार प्रोम चिप में सूचनाएँ स्टोर कर दी जाती है। प्रोम मैमोरी को भी केवल एक बार ही प्रोग्राम द्वारा भरा जा सकता है। रोम की तरह यह भी स्थायी होती है और बाद में इसे बदला नहीं जा सकता।
ईप्रोम (EPROM) यह इरेजेबल प्रोग्रामेबल रीड ओनली मैमोरी (Erasable Programmable Read Only Memory) का संक्षिप्त नाम है। यह एक ऐसी प्रोम मैमोरी है, जिसको फिर से प्रोग्राम किया जा सकता है। इसकी सूचनाओं को चिप में ही रखी गई विद्युत धारा के द्वारा स्थायी रखा जाता है।
किसी ईप्रोम की सूचनाओं को उस सर्किट से हटाकर और उसमें बनी हुई एक छोटी-सी खिड़की से अल्ट्रावॉयलेट किरणें डालकर साफ किया जा सकता है। बाद में इसे एक ईप्रोम बर्नर (EPROM Buri की सहायता से फिर से रिप्रोग्राम (Reprogram) किया जा सकता है। ईप्रोम में भरी हुई सूचनाएँ भी स्थायी होती है, क्योंकि कम्प्यूटर को ऑफ कर देने के बाद भी वे नष्ट नहीं होती।
> ईईप्रोम (EEPROM) यह इलेक्ट्रॉनिकली इरेजेबल प्रोग्रामेबल रीड ओनली मैमोरी (Electronically Erasable Programmable Read Only Memory) का संक्षिप्त नाम है। यह एक ऐसी ईप्रोम है, जिसका फिर से प्रोग्राम करने के लिए सर्किट से हटाने और निर्माता को भेजने की आवश्यकता नहीं होती। आप इसको एक विशेष सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम की सहायता से अपने कम्प्यूटर में ही प्रोग्राम कर सकते हैं।
इसमें यह विशेषता भी है कि फिर से प्रोग्राम करने के लिए इसकी सारी सूचनाओं को नष्ट करने की आवश्यकता नहीं होती है। आप एक बार में इसकी एक बाइट को साफ करके फिर से लिख सकते हैं। प्रायः कम्प्यूटर के कॉनफिग्रेशन से सम्बन्धित सूचनाएँ रखी जाती है।
इन्हें भी जानें
फ्लैश मैमरी (Flash Memory) यह एक प्रकार की सेमीकण्डक्टर आधारित नॉन वॉलेटाइल विद्युत सप्लाई बन्द होने पर भी चिप में भरी सूचनाएँ संरक्षित रहती है तथा रीराइटेबल (पुनः लिखने योग्य) मैमोरी है, जिसे डिजिटल कैमरो, मोबाइल फोन, प्रिण्टर इत्यादि में उपयोग किया जाता है।
वर्चुअल मैमोरी (Virtual Memory) ये एक काल्पनिक मैमोरी क्षेत्र है। वर्चुअल मैमोरी सीपीयू के निर्देश अस्थाई रूप से संग्रहीत (Store) करती है। ये मेन मैमोरी की भण्डारण क्षमता को बढ़ाती है, जिससे कम्प्यूटर की कार्यक्षमता (Effectiveness) बढ़ती है। वर्चुअल मैमोरी का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी प्रोग्राम को चलाने के लिए मेन मैमोरी की भण्डारण क्षमता कम पड़ रही है। ऐसी स्थिति में, प्रोग्राम को विभिन्न टुकड़ों में विभाजन कर दिया जाता है तथा प्रोग्राम के टुकड़ो को वर्चुअल मैमोरी तथा मुख्य मैमोरी के बीच स्वैप (Swap) करके प्रोग्राम चलाया जाता है।
द्वितीयक मैमोरी (Secondary Memory)
इस प्रकार की मैमोरी सीपीयू से बाहर होती है, इसीलिए इसे बाह्य (External) या सेकेण्डरी (Secondary) मैमोरी भी कहा जाता है। कम्प्यूटर की मुख्य मैमोरी बहुत महँगी होने तथा बिजली बन्द कर देने पर उसमें रखीअधिकतर सूचनाएँ नष्ट हो जाने के कारण न तो हम उसे इच्छानुसार बढ़ा सकते हैं। और न हम उसमें कोई सूचना स्थायी रूप से स्टोर कर सकते हैं। इसलिए हमें सहायक मैमोरी का उपयोग करना पड़ता है। इसकी कीमत तुलनात्मक दृष्टि से बहुत कम और डेटा स्टोर करने की क्षमता (Capacity) बहुत अधिक होती है। इसमें एक ही कमी है कि इन माध्यमों मे डेटा की लिखने (अर्थात् स्टोर करने) तथा पढ़ने अर्थात (प्राप्त करने) में समय बहुत लगता है। इसलिए हम इसमें ऐसी सूचनाएँ भण्डारित करते हैं, जिन्हे लम्बे समय तक सुरक्षित रखना हो तथा जिनकी आवश्यकता लगातार नहीं पड़ती हो।
हम सहायक मैमोरी को अपनी आवश्यकता के अनुसार किसी भी सीमा तक बढ़ा सकते हैं। यह मैमोरी कुछ चुम्बकीय उपकरणों के रूप में होती है; जैसे – मैग्नेटिक डिस्क, ऑप्टिकल डिस्क एवं सॉलिड स्टेट डिस्क। इन उपकरणों के बारे में आगे विस्तार से बताया गया है। सहायक मैमोरी का उपयोग बैकअप के लिए किया जाता है। जब हमें किसी डेटा की तत्काल आवश्यकता नहीं रहती तो उसे किसी चुम्बकीय माध्यम; जैसे फ्लॉपी डिस्क या चुम्बकीय टेप; पर नकल करके अलग सुरक्षित कर लिया जाता है।
ऐसा प्रायः हार्ड डिस्क को खाली करने के लिए किया जाता है, ताकि उस पर ऐसा डेटा भरा जा सके, जिसकी आवश्यकता पड़ रही हो और डिस्क पर जगह न हो। बैकअप साधन में भण्डारित किए गए डेटा को आगे कभी भी आवश्यकता पड़ने पर फिर हार्ड डिस्क पर उतारा या नकल किया जा सकता है। प्रारम्भिक कम्प्यूटरों में छिद्रित कार्ड, पेपर टेप तथा चुम्बकीय टेपों का प्रयोग सहायक भण्डारण के लिए किया जाता था। लेकिन आजकल मुख्य रूप से चुम्बकीय डिस्कों का प्रयोग इस कार्य हेतु किया जाता है जो कई प्रकार से सुविधाजनक है। सहायक मैमोरी के रूप में आजकल हार्ड डिस्क, फ्लॉपी डिस्क और कॉम्पैक्ट डिस्क का प्रचलन है। इनके लिए अपने विशेष उपकरण होते हैं, जिनकी सहायता से इन पर सूचनाएँ लिखी जाती है। इन उपकरणों को उनकी ड्राइव कहा जाता है।
उदाहरण
मैग्नेटिक डिस्क हार्ड डिस्क ड्राइव फ्लॉपी डिस्क मैमोरी डिस्क ऑप्टिकल डिस्क सी डी ■ डीवीडी ■ ब्लू-रे डिस्क सॉलिड स्टेट डिस्क पेन/फ्लैश ड्राइव
कैश मैमोरी (Cache Memory)
यह एक विशेष प्रकार की मैमोरी है, जो अत्यधिक तेज स्टैटिक रैम (SRAM) चिपों का उपयोग करती है और प्रोसेसर को किसी विशेष मैमोरी का उपयोग अत्यन्त तेजी से करने की सुविधा प्रदान करती है। सामान्यतः प्रोसेसर को रैम मैमोरी से कोई डेटा पढ़ने में 180 नैनो सेकेण्ड का समय लग जाता है। कैश मैमोरी से बार-बार आवश्यक डेटा केवल 45 नैनों सेकेण्ड में प्राप्त किया जा सकता है। कैश मैमोरी का उपयोग करने से आपके कम्प्यूटर की दक्षता काफी बढ़ जाती है।
कैश मैमोरी प्रोसेसर और मानक डीरैम (DRAM) मॉड्यूलों के बीच एक बफर के रूप में रहती है।
नवीनतम निर्देश और उसके डेटा को कैश मैमोरी में रखा जाता है।
जब प्रोसेसर को किसी सूचना की आवश्यकता होती है तो सबसे पहले वह कैश मैमोरी को ही देखता है यदि सूचना कैश मैमोरी में न हो उसे मुख्य मैमोरी में देखा जाता है।
कुछ मुख्य द्वितीयक स्टोरेज डिवाइसज का विवरण निम्नलिखित हैं
1. फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk)
फ्लॉपी डिस्क माइलर की बनी हुई एक वृत्ताकार डिस्क होती हैं, जिसके दोनों ओर एक चुम्बकीय पदार्थ का लेप चढ़ा होता है। यह एक प्लास्टिक के चौकोर कवर में संरक्षित रहती है, जिसके भीतर फ्लॉपी की सफाई
करने वाली मुलायम लाइनें होती हैं। यह तीन आकारों (Sizes) में उपलब्ध होती हैं 8 इंच, 51 4 3 इंच इंच तथा 3-
इसमें बीच की धुरी (Hub) किसी धातु की बनी होती है, इसके ऊपरी किनारे पर एक खिसकने वाला ढक्कन (Sliding cover) होता है जो
लिखने-पढ़ने के खुले स्थान को पूरी तरह ढक लेता है। इसका लिखने का सुरक्षित छिद्र (Hole) आयताकार होता है, जिसमें एक छोटा-सा प्लास्टिक का टैब या टुकड़ा होता है। यह टैब दो स्थितियों में रखा जा सकता है। एक स्थिति में रहने पर फ्लॉपी पर कुछ भी लिखा या पढ़ा जा सकता है और दूसरी स्थिति में रहने पर उससे केवल पढ़ा जा सकता है। फ्लॉपी पर डेटा कुछ संकेन्द्रीय (Co-central) वृत्ताकार (Circular) पथों पर स्टोर किया जाता है, जिन्हें ट्रैक्स (Tracks) कहते हैं। हर ट्रैक कई भागों में बँटा होता है, जिन्हें सेक्टर (Sector) कहते है। डिस्क को ट्रेकों और सेक्टरों में विभाजित करने की प्रक्रिया फार्मेटिंग कहलाती हैं। एक सेक्टर में 512 बाइटें होती हैं। होती हैं। इसकी प्रति इंच चौड़ी सतह पर 135 ट्रैक बने होते है। प्रत्येक ट्रैक पर कुछ महीन चुम्बकीय चिह्न बनाए जाते हैं। एक दिशा में बनाए गए चिन्ह बाइनरी अंक 1 को व्यक्त करते हैं और उसकी विपरीत दिशा में बनाए गए चिन्ह बाइनरी ० को व्यक्त करते हैं। इस प्रकार चुम्बकीय डिस्कों पर बाइनरी कोड में कोई भी सूचना अंकित की जा सकती है।
फ्लॉपी डिस्क पर कोई सूचना लिखने या उससे पढ़ने के लिए एक विशेष उपकरण की आवश्यकता होती है, जिसे फ्लॉपी डिस्क ड्राइव (Floppy Disk Drive या FDD) कहा जाता है। फ्लॉपी को इस ड्राइव में लगा दिया जाता है तो वह धातु की धुरी को जकड़ लेता है और डिस्क को घुमाना शुरू कर देता है। ड्राइव का रीड-राइट हैड आगे-पीछे चल सकता है। इससे वह फ्लॉपी के किसी भी ट्रैक के किसी भी सेक्टर में डेटा लिख सकता है या उससे डेटा पढ़ सकता है।
फ्लॉपी डिस्क ड्राइव में फ्लॉपी को उसी प्रकार लगाया जाता है, जिस प्रकार किसी कैसेट प्लेयर में कैसेट प्लेयर में कैसेट को लगाया जाता है। आजकल प्रायः हर कम्प्यूटर में एक फ्लॉपी ड्राइव अवश्य होती है।
2. हार्ड डिस्क (Hard Disk)
इन्हे फिक्स्ड डिस्क भी कहा जाता है। कई आकारों और क्षमताओं में मिलती है, लेकिन इनकी बनावट तथा कार्यप्रणाली लगभग एक ही होती है। कोई हार्ड डिस्क एक ही धुरी पर लगी हुई कई वृत्ताकार चुम्बकीय डिस्कों का समूह होता है। प्रत्येक डिस्क की सतहों पर किसी चुम्बकीय पदार्थ का लेप होता है जिस पर चुम्बकीय चिन्ह बनाए जाते हैं। सबसे ऊपरी और सबसे नीचे डिस्क की बाहरी सतहों को छोड़कर अन्य सभी सतहों पर डेटा स्टोर किया जाता है। ऐसी प्रत्येक सतह के लिए एक अलग रीड-राइट हैड होता है, जो आगे-पीछे सरक सकता है। एक साधारण हार्ड डिस्क की संरचना चित्र में दिखाई गई हैं।
किसी हार्ड डिस्क में डिस्क को तेज गति से घुमाया जाता है। इनके घूमने की गति 3600 चक्कर/मिनट (Rotations Per Minute) से 7200 चक्कर/मिनट तक होती है। रीड राइट हैड और डिस्क की सतह के बीच लगभग 0.064 इंच का अन्तर होता है। सभी डिस्कें एक साथ घूमती हैं और सभी रीड-राइट हैड एक साथ आगे पीछे सरकते हैं, परन्तु डेटा लिखने और पढ़ने के लिए एक समय में केवल एक ही रीड राइट हैड को चुना जाता है। इस प्रकार विभिन्न रीड राइट हैडों को चुनते हुए किसी भी सतह के किसी भी सेक्टर से डेटा पढ़ा या उस पर लिखा जा सकता है।
आधुनिक हार्ड डिस्कों की क्षमता 200 गीगाबाइट तक होती है। पर्सनल कम्प्यूटरों के लिए विशेष प्रकार की हार्ड डिस्क भी उपलब्ध है, जिन्हें विचेस्टर डिस्क कहा जाता है। इनकी क्षमता 20 गीगाबाइट से 80 गीगाबाइट तक होती है। हार्ड डिस्क सूचनाओं को स्थायी रूप से संगृहीत करने का बहुत विश्वसनीय माध्यम है और इनका उपयोग करने की गति भी पर्याप्त होती है। लेकिन ये धूल आदि के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं, जिसके कारण इनको एक डिब्बे में स्थायी रूप से बन्द रखा जाता है और सिस्टम यूनिट के भीतर लगा दिया जाता है।
3. मैमोरी स्टिक (Memory Stick)
मैमोरी स्टिक एक प्रकार का मैमोरी कार्ड होता है। ये एक USB आधारित मैमोरी ड्राइव है। इसका आकार 50.0×21.5×2.8 मिमी होता है तथा इसकी क्षमता (Storage Capacity) 4 MB से 256 GB तक होती है।
4. कॉम्पैक्ट डिस्क (Compact Disk)
यह एक विशेष प्रकार की डिस्क होती है, जिन पर डेटा प्रायः एक बार ही लिखा जाता है और फिर उसे कितनी भी बार पढ़ सकते हैं। यह एक प्रकार की रीड ओनली मैमोरी ही है। इनमें प्रायः ऐसी सूचनाएँ स्टोर की जाती हैं जो स्थायी प्रकृति की हों; तथा जिनकी आवश्यकता बार-बार पड़ती हो; जैसे- टेलीफोन डायरेक्टरी, हवाई जहाजों की उड़ानों की समय-सारणी, पुस्तकें, पुस्तकालय की पुस्तकों की सूची (Catalogue) कानूनी सूचानाएँ, फिल्म आदि।
इन पर डेटा लिखने-पढ़ने के लिए लेसर (Light Amplification by Stimulated Emission of Radiation-LASER) तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इसलिए इन्हें ऑप्टिकल डिस्क भी कहा जाता है। यह प्लास्टिक की बनी हुई डिस्क होती है, जिस पर दोनों ओर एल्युमीनियम की पतली परत लगी होती है। इस परत पर पारदर्शक प्लास्टिक की परत होती है, जिससे यह सुरक्षित रहती है। इस पर डेटा स्टोर करने की विधि चुम्बकीय डिस्क से अलग होती है। चुम्बकीय डिस्क पर जहाँ संकेन्द्रीय वृत्ताकार ट्रैक होते हैं, वहीं कॉम्पैक्ट डिस्क (सीडी) पर एक सर्पिलाकार ट्रैक होता है।
इसी प्रकार डेटा को रिकॉर्ड करने की विधि भी अलग होती है। चुम्बकीय डिस्क पर चुम्बकीय चिन्ह बनाए जाते हैं। जबकि सीडी पर गड्ढों (Pits) और भूमि (Lands) के रूप में डेटा स्टोर किया जाता है। कोई गड्ढा प्रकाश को बिखेर देता है, जबकि भूमि प्रकाश को लौटाती है। इससे क्रमशः 1 और 0 को व्यक्त किया जाता है। सम्पूर्ण सीडी पर सूचनाओं को समान घनत्व के साथ स्टोर किया जाता है अर्थात् ट्रैक की लम्बाई में सूचनाओं को स्टोर करने की मात्रा समान होती है। इसलिए सूचनाएँ पढ़ते समय डिस्क के घूमने की गति बदलती रहती है। उसे इस प्रकार घुममाया जाता है कि प्रति सेकण्ड पढ़ी जाने वाली बाइटों की संख्या निश्चित रहती है। इसे स्थिर रेखीय गति (Constant Linear Velocity) कहा जाता है।
एक सीडी की भण्डारण क्षमता 680 मेगाबाइट से 800 मेगाबाइट तक होती है। इसे प्रायः 1200 किलोबाइट प्रति सेकण्ड की गति से पढ़ा जाता है। इसमें से सूचनाएँ पढ़ने के लिए जो ड्राइव उपयोग में लाया जाता है, उसे सीडी रोम ड्राइव कहा जाता है।
आजकल ऐसी कॉम्पैक्ट डिस्कें भी उपलब्ध हैं, जिन पर साधारण फ्लॉपी की तरह डेटा लिखा तथा पढ़ा जा सकता है, लेकिन उनके लिए सीडी- राइटर (CD-Writer) नामक उपकरण की जरूरत होती है। अपेक्षाकृत महँगा होने के कारण इनका प्रयोग अभी सीमित ही है। कॉम्पैक्ट डिस्कों का प्रयोग सामान्यतया कम्पयूटरों के साथ ही किया जाता है, क्योंकि सभी प्रकार के प्रोग्राम आजकल सीडी पर ही उपलब्ध होते हैं। इसे मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है- CD-ROM (रीड आनली मैमोरी), CD-R (रिकॉर्डेबल), CD-RW (री-राइटेबल)।
5. डीवीडी (Digital Video Disc-DVD)
आजकल सीडी का एक अन्य परिष्कृत रूप भी प्रयोग में लाया जाता है जिसे डीवीडी (DVD) क़हा जाता है।
भण्डारण क्षमता 2 गीगाबाइट या अधिक भी हो सकती है। इस पर डेटा लिखने या उससे पढ़ने के लिए एक विशेष ड्राइव होता DVD डीवीडी है, जिसे डीवीडी ड्राइव कहा जाता है। इसें डिजिटल वर्सेटाइल डिस्क या
डिजिटल वीडियों डिस्क के रूप में भी जाना जाता है। एक ऑप्टिकल डिस्क स्टोरेज मीडिया फॉर्मेट है और इसे वर्ष 1995 में, सोनी, पैनासोनिक और सैमसंग द्वारा विकसित किया गया था। इसका मुख्य उपयोग वीडियों और डेटा का भण्डारण करना है। DVD का आकार कॉम्पैक्ट डिस्क (CD) के समान ही होता है, लेकिन ये छः गुना अधिक तक डेटा भण्डारण करते हैं।
DVD शब्द के परिवर्तित रूप अक्सर डेटा के डिस्क पर संग्रहण पद्धति को वार्णित करते हैं। DVD-ROM (रीड ओनली मैमोरी) में डेटा को सिर्फ पढ़ा जा सकता है, लिखा नहीं जा सकता। DVD-R और DVD+R (रिकॉर्डेबल) डेटा को सिर्फ एक बार रिकॉर्ड कर सकते हैं और उसके बाद एक DVD-ROM के रूप में कार्य करते हैं। DVD-RW (रि-राइटेबल), DVD+RW और DVD-RAM (रैण्डम एक्सेस मैमोरी) डेटा को कई बार रिकॉर्ड कर सकता है और मिटा सकता है।
DVD वीडियो और DVD-ऑडियों डिस्क, क्रमशः उचित रूप से संचरित और स्वरूपित वीडियों और ऑडियों सामग्री को सन्दर्भित करता है। वीडियो सामग्री वाले DVD सहित, DVD के अन्य प्रकार को, DVD डेटा डिस्क कहा जा सकता है।
6. ब्लू-रे डिस्दा (Blue-ray Disc-BD)
ब्लू – रे डिस्क
ब्लू-रे डिस्क (BD या ब्लू-रे नाम से भी प्रचलित है), एक ऑप्टिकल डिस्क संग्रहण माध्यम है, जिसे मानक DVD प्रारूप का स्थान लेने के लिए बनाया गया है।
ब्लू-रे डिस्क
ब्लू-रे डिस्क का नाम इसे पढ़ने में प्रयुक्त नीले-बैंगनी (Blue-Violet) लेजर से लिया गया है। एक मानव डीवीडी में 650 नैनोमीटर लाल लेजर का प्रयोग किया जाता है, जबकि ब्लू-रे डिस्क कम तरंगदैर्ध्य का प्रयोग करती है, 400 नैनोमीटर वाला-नीला-बैंगनी लेजर तथा एक डीवीडी की तुलना में लगभग दस गुना अधिक डेटा संग्रहण की अनुमति देती हैं। मुख्य रूप से इसका प्रयोग उच्च परिभाषा वाले वीडियो (High Definition Video), प्लेस्टेशन 3 (Playstation 3), वीडियो गेम्स तथा अन्य डेटा को, प्रत्येक एकल परत वाले प्रोटोटाइप पर 25 GB तक और दोहरी परत वाले पर 50 GB तक संग्रहित करने के लिए किया जाता है। यद्यपि ये संख्याएँ ब्लू-रे-डिस्क के लिए मानक संग्रहण को बताती हैं, तथापि यह एक मुक्त (Open-ended) विनिर्देशन है, जिसमें ऊपरी सैद्धान्तिक संग्रहण सीमा अस्पष्ट छोड़ दी गई है। इस डिस्क में स्थित सूचनाओं को किसी भी अतिरिक्त उपकरण या संशोधित फर्मवेयर के बिना पढ़ा जा सकता है। ब्लू-रे डिस्क के भौतिक आयाम मानक DVD तथा CDs के ही समान होते हैं।
7. पेन/थंब/फ्लैश ड्राइव (Pen/Thumb/Flash Drive)
फ्लैश मैमोरी डेटा स्टोरेज डिवाइस से बना होता है, जिसमें एक USB (यूनिवर्सल सीरियल बस) 1.1 या 2.0 अन्तरा फलक एकीकृत होता है। USB फ्लैश ड्राइव आमतौर पर हटाने योग्य और री-राइटेबल होते हैं जो एक फ्लॉपी डिस्क से छोटे होते हैं और अधिकांश का वजन 30 ग्राम से कम होता SONY SONY
पेन ड्राइव है, आकार
और मूल्य की बढ़ोतरी के साथ इनकी भण्डारण क्षमता भी बढ़ती जा रही है। यूएसबी फ्लैश ड्राइव का प्रयोग प्रायः उसी उद्देश्य से किया जाता है, जिस उद्देश्य से फ्लॉपी डिस्क का किया जाता है। हिलते हिस्सों के न होने के कारण वे अपेक्षाकृत छोटे, तेज हजारों गुना अधिक क्षमता वाले और अधिक टिकाऊ और विश्वसनीय हैं। लगभग वर्ष 2005 तक, अधिकांश डेस्कटॉप और लैपटॉप कम्प्यूटरों की आपूर्ति एक फ्लॉपी डिस्क ड्राइव के साथ की जाती थी, लेकिन हाल ही में अधिकांश उपकरणों नें USB पोर्ट को अपनाते हुए फ्लॉपी डिस्क ड्राइव को त्याग दिया है। फ्लैश ड्राइव USB मॉस स्टोरेज मानक का उपयोग करते हैं। जो आधुनिक ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा समर्थित हैं; जैसे- Windows, Mac, OSx Linux और Unix तथा अन्य सिस्टम। USB 2.0 समर्थन वाले USB ड्राइव अधिक डेटा संग्रह कर सकते हैं और अपेक्षाकृत एक बहुत बड़े ऑप्टिकल डिस्क ड्राइव से अधिक तेजी से डेटा स्थानान्तरित कर सकते हैं। और इन्हें अधिकांश अन्य सिस्टमों द्वारा पढ़ा जा सकता है।
8. मैग्नेटिक टेप (Magnetic Tape)
ये पुरानी फाइलों का बैकअप लेने के बहुत सुरक्षित और सस्ते साधन माने जाते हैं। ये प्रारम्भ से ही कम्प्यूटरों में प्रयोग किए जाते रहें हैं और अभी भी इनका उपयोग किया जाता है। चुम्बकीय टेप प्लास्टिक का आधा इंच या 12.7 मिमी चौड़ा तथा सैकड़ों व हजारों फीट लम्बा फीता होता है जो एक चक्के (Spool) पर लिपटा रहता है। इसकी एक सतह पर किसी चुम्बकीय पदार्थ की पतली परत होती हैं। इसी परत पर चुम्बकीय चिन्ह बनाकर डेटा लिखा जाता है। टेप की एक इंच लम्बाई में 800 से लेकर 6250 बाइटें तक लिखी जा सकती है। टेप की लम्बाई 200 फीट से 3600 फीट तक होती है।
चुम्बकीय टेप काफी धीमा होता है, क्योंकि यह एक क्रमिक (Sequential) माध्यम है। इसका अर्थ यह है कि इसमें डेटा लिखने या पढ़ने का कार्य एक सिरे से दूसरे सिरे तक क्रमशः किया जाता है। हम बीच से लिखना/पढ़ना शुरू नहीं कर सकते। यदि हमें बीच में भरी हुई कोई फाइल पढ़नी हो, तो उससे पहले का सारा टेप धीरे-धीरे छोड़ना पड़ता है। किन्तु इन टेपों की विश्वसनीयता (Reliability) बहुत अधिक होती है और ये सैकड़ो वर्षों तक भी सुरक्षित रह सकते हैं। इसलिए इनका प्रयोग ऐसे डेटा को स्टोर करनें में करते हैं, जिसे लम्बे समय तक सुरक्षित रखना हो।
चुम्बकीय टेप पर डेटा पढ़ने व लिखने का कार्य एक उपकरण के माध्यम से किया जाता है जिसे टेप ड्राइव कहते हैं। इसमें दो धुरी होती हैं, जिनमें दूसरे पर एक खाली चक्का (Spool) स्थाई रूप से लगा होता हैं और पहले पर वह टेप लगाया जाता है जिस पर डेटा लिखना या पढ़ना है। आजकल चुम्बकीय टेप का एक छोटा रूप अधिकांश कम्प्यूटरों में प्रयोग किया जाता है। यह साधारण ऑडियो कैसेट के आकार का होता है, जिसमें टेप की चौडाई 1/4 इंच तथा लम्बाई 600 फीट होते है इसकी क्षमता 40 मेगाबाइट से 100 मेगाबाइट तक होती है।
इन्हें भी जानें
- सेकेण्डरी स्टोरेज मीडिया से हॉर्ड डिस्क में सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों को कॉपी करने की प्रक्रिया इनस्टालेशन कहलाती है।
- यदि उपयोगकर्ता को CPU में तत्काल उपलब्ध सूचना की जरूरत हो तो यह रैम में स्टोर की जानी चाहिए।
- हार्डडिस्क में ट्रैक 0 सबसे भीतरी ट्रैक होता है।