कंप्यूटर सॉफ्टवेयर

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एक कम्प्यूटर सिस्टम अनेक इकाइयों का एक समूह होता है, जो एक या अनेक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु बनाया जाता है। उदाहरणार्थ-प्रयोगशाला भी एक सिस्टम है, जिसका लक्ष्य विविध प्रकार के शोध करना है तथा जिसकी अनेक इकाइयाँ; वैज्ञानिक शोधार्थी और वैज्ञानिक उपकरण इत्यादि हैं। इसी प्रकार कम्प्यूटर भी एक सिस्टम है, जिसका लक्ष्य विविध प्रकार के कार्य करना है तथा जिसकी इकाइयाँ हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर हैं।

सॉफ्टवेयर (Software)

सॉफ्टवेयर, प्रोग्रामिग भाषा में लिखे गए निर्देशों अर्थात् प्रोग्रामों की वह श्रृंखला है, जो कम्प्यूटर सिस्टम के कार्यों को नियन्त्रित करता है तथा कम्प्यूटर के विभिन्न हार्डवेयरों के बीच समन्वय स्थापित करता है, ताकि किसी विशेष कार्य को पूरा किया जा सके। इसका प्राथमिक उद्देश्य डेटा को सूचना में परिवर्तित करना है। सॉफ्टवेयर के निर्देशों के अनुसार ही हार्डवेयर कार्य करता है। इसे प्रोग्रामों का समूह भी कहते हैं।

दूसरे शब्दों में, “कम्प्यूटरों में सैकड़ो की संख्या में प्रोग्राम होते हैं, जो अलग- अलग कार्यों के लिए लिखे या बनाए जाते हैं। इन सभी प्रोग्रामों के समूह को सम्मिलित रूप से ‘सॉफ्टवेयर’ कहा जाता है।

सॉफ्टवेयर के प्रकार (Types of Software)

सॉफ्टवेयर को उसके कार्यों तथा संरचना के आधार पर दो प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है

1. सिस्टम सॉफ्टवेयर (System Software)

जो प्रोग्राम कम्प्यूटर को चलाने, उसको नियन्त्रित करने, उसके विभिन्न भागों की देखभाल करने तथा उसकी सभी क्षमताओं का अच्छे से उपयोग करने के लिए लिखे जाते हैं, उनको सम्मिलित रूप से ‘सिस्टम सॉफ्टवेयर’ कहा जाता है। सामान्यतः सिस्टम सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर के निर्माता द्वारा ही उपलब्ध कराया जाता है। वैसे यह बाद में बाजार से भी खरीदा जा सकता है। कम्प्यूटर से हमारा सम्पर्क या संवाद सिस्टम सॉफ्टवेयर के माध्यम से ही हो पाता है। दूसरे शब्दों में कम्प्यूटर हमेशा सिस्टम सॉफ्टवेयर के नियन्त्रण में ही रहता है, जिसकी वजह से हम सीधे कम्प्यूटर से अपना सम्पर्क नहीं बना सकते।

वास्तव में सिस्टम सॉफ्टवेयर बिना कम्प्यूटर से सीधा सम्पर्क नामुमकिन है, इसलिए सिस्टम सॉफ्टफेयर उपयोगकर्ता की सुविधा के लिए ही बनाया जाता है। सिस्टम सॉफ्टवेयर से हमें बहुत सुविधा हो जाती है, क्योंकि वह कम्प्यूटर को अपने नियन्त्रण में लेकर हमारे द्वारा बताए गए कार्यों को कराने तथा प्रोग्रामों का सही-सही पालन करने के दायित्व अपने ऊपर ले लेता है। सिस्टम सॉफ्टवेयर में वे प्रोग्राम शामिल होते हैं, जो कम्प्यूटर सिस्टम को नियन्त्रित (Control) करते हैं और उसके विभिन्न भागों के बीच उचित तालमेल बनाकर कार्य कराते हैं।कार्यों के आधार पर सिस्टम सॉफ्टवेयर को दो भागों में बाँटा गया है-सिस्टम मैनेजमेण्ट प्रोग्राम और डवलपिंग सॉफ्टवेयर 

(i) सिस्टम मैनेजमेन्ट प्रोग्राम (System Management Program)

ये वे प्रोग्राम होते हैं, जो सिस्टम का प्रबन्धन (Management) करने के काम आते हैं। इन प्रोग्राम्स का प्रमुख कार्य इनपुट आउटपुट तथा मैमोरी युक्तियों और प्रोसेसर के विभिन्न कार्यों का प्रबन्धन करना है। ऑपरेटिंग सिस्टम, डिवाइस ड्राइवर्स तथा सिस्टम यूटिलिटिज, सिस्टम मैनेजमेण्ट

प्रोग्राम्स के प्रमुख उदाहरण हैं।

(a) ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System)

इसमें वे प्रोग्राम शामिल होते हैं जो कम्प्यूटर के विभिन्न अवयवों के कार्यों को नियन्त्रित करते हैं, उनमें समन्वय स्थापित करते हैं तथा उन्हें प्रबन्धित (Manage) करते हैं। इसका प्रमुख कार्य उपयोगकर्ता (User) तथा हार्डवेयर के मध्य एक समन्वय स्थापित करना है।

ऑपरेटिंग सिस्टम कुछ विशेष प्रोग्रामों का ऐसा व्यवस्थित समूह है, जो किसी कम्प्यूटर के सम्पूर्ण क्रियाकलापों को नियन्त्रित रखता है। यह कम्प्यूटर के साधनों के उपयोग पर नजर रखने और उन्हें व्यवस्थित करने में हमारी सहायता करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम आवश्यक होने पर अन्य प्रोग्रामों को चालू करता है, विशेष सेवाएँ देने वाले प्रोग्रामों का मशीनी भाषा में अनुवाद करता है और उपयोगकर्ताओं की इच्छा के अनुसार आउटपुट निकालने के लिए डेटा का प्रबन्धन करता है। वास्तव में यह प्रोग्रामों को कार्य करने के लिए एक आधार उपलब्ध कराता है। उदाहरण एम एस डॉस, विण्डोज XP/2000/98, यूनिक्स, लाइनेक्स इत्यादि ऑपरेटिंग सिस्टम के कुछ उदाहरण हैं।

– ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य (Functions of Operating System)

1. कम्प्यूटर (संचार) स्थापित करना।

तथा उसके उपयोगकर्ता के बीच संवाद

2. कम्प्यूटर के सभी उपकरणों को नियन्त्रण में रखना तथा उनसे काम लेना।

3. उपयोगकर्ता द्वारा दिए प्रोग्रामों का पालन कराना।

4. सभी प्रोग्रामों के लिए आवश्यक साधन (मैमोरी, सीपीयू, प्रिण्टर आदि) उपलब्ध कराना।

5. ऊपर बताए गए कार्यों में सहायक, दूसरे छोटे-छोटे कार्य करना या उनकी व्यवस्था करना।

(b) डिवाइस ड्राइवर (Device Driver)

ये एक विशेष प्रकार का सॉफ्टवेयर होता है, जो किसी युक्ति (Device) के प्रचालन (Operation) को समझाता है। ये सॉफ्टवेयर किसी युक्ति तथा उपयोगकर्ता के मध्य इण्टरफेस (Interface) का कार्य करते हैं। किसी भी युक्ति को सुचारू रूप से चलाने के लिए चाहे वो प्रिण्टर, माउस, मॉनीटर या की-बोर्ड ही हो, उसके साथ एक ड्राइवर प्रोग्राम जुड़ा होता है। यह ऑपरेटिंग सिस्टम के निर्देशों (Commands) को कम्प्यूटर के विभिन्न भागों के लिए उनकी भाषा में परिवर्तित करता है। डिवाइस ड्राइवर्स निर्देशों का ऐसा समूह होता है जो हमारे कम्प्यूटर का परिचय उससे जुड़ने वाले हार्डवेयर्स से करवाते हैं।

(ii) सिस्टम यूटिलीज़ (System Utilites)

ये प्रोग्राम कम्प्यूटर के रख-रखाव से सम्बन्धित कार्य करते हैं। ये प्रोग्राम्स कम्प्यूटर के कार्यों को सरल बनाने, उसे अशुद्धियों से दूर रखने तथा सिस्टम के विभिन्न सुरक्षा कार्यों के लिए बनाए जाते हैं। यूटिलिटी प्रोग्राम कई ऐसे कार्य करते हैं, जो कम्प्यूटर का उपयोग करते समय हमें कराने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए, कोई यूटिलिटी प्रोग्राम हमारी फाइलों का बैकअप किसी बाहरी भण्डारण साधन पर लेने का कार्य कर सकता है। ये सिस्टम सॉफ्टवेयर के अनिवार्य भाग नहीं होते, परन्तु सामान्यतः उसके साथ ही आते हैं और कम्प्यूटर के निर्माता द्वारा ही उपलब्ध कराए जाते हैं। कुछ यूटिलिटी सॉफ्टवेयर निम्न हैं

(a) डिस्क कम्प्रेशन (Disk Compression) ये हार्ड डिस्क पर उपस्थित सूचना पर दबाव डालकर उसे संकुचित (Compressed) कर देता है, ताकि हार्ड डिस्क पर अधिक-से-अधिक सूचना स्टोर की जा सके। यह यूटिलिटी स्वयं अपना कार्य करती रहती है तथा जरूरी नहीं कि उपयोगकर्ता को इसकी उपस्थिति की जानकारी हो।

(b) डिस्क फ्रेग्मेण्टर (Disk Fragmenter) यह कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क पर विभिन्न जगहों पर बिखरी हुई फाइलों को खोजकर उन्हें एक स्थान पर लाता है। इसका प्रयोग फाइलों तथा हार्ड डिस्क की खाली पड़ी जगह को व्यवस्थित करने में होता है।

(c) बैकअप यूटिलिटीज (Backup Utilites) यह कम्प्यूटर की डिस्क पर उपस्थित सारी सूचना की एक कॉपी रखता है तथा जरूरत पड़ने पर कुछ जरूरी फाइलें या पूरी हार्ड डिस्क की सामग्री वापस रिस्टोर (Restore) कर देता है।

(d) डिस्क क्लीनर्स (Disk Cleaners) ये उन फाइलों को ढूँढकर डिलीट (Delete) करता है, जिनका बहुत समय से उपयोग नहीं हुआ है। इस प्रकार ये कम्प्यूटर की गति को भी तेज करता है।

(e) एण्टी वायरस स्कैनर्स एण्ड रीमूवर्स (Anti-virus Scanners and Removers) ये ऐसे यूटिलिटी प्रोग्राम्स है, जिनका प्रयोग कम्प्यूटर के वायरस ढूँढने और उन्हें डिलीट करने में होता है।

2. एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software)

एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर उन प्रोग्रामों को कहा जाता है, जो हमारा वास्तविक का कराने के लिए लिखे जाते हैं; जैसे कार्यालय के कर्मचारियों के वेतन की गणना करना, सभी लेन-देन तथा खातों का हिसाब-किताब रखना, विभिन्न प्रकार की रिपोर्ट छापना, स्टॉक की स्थिति का विवरण देना, पत्र-दस्तावेज तैयार करना इत्यादि। कम्प्यूटर वास्तव में इन्हीं कार्यों के लिए खरीदे या बनाए जाते हैं।

ये कार्य हर कम्पनी या उपयोगकर्ता के लिए अलग-अलग प्रकार के होते हैं, इसलिए हमारी आवश्यकता के अनुसार इनके लिए प्रोग्राम हमारे द्वारा नियुक्त प्रोग्रामर द्वारा लिखे जाते हैं। हालाँकि आजकल ऐसे प्रोग्राम सामान्य तौर पर सबके लिए एक जैसे लिखे हुए भी आते हैं, जिन्हें रेडीमेड सॉफ्टवेयर (Readymade Software) या पैकेज (Package) कहा जाता है, जैसे-एमएस-वर्ड, एमएस-एक्सल, टैली, कोरल ड्रॉ, पेजमेकर, फोटोशॉप आदि।

सामान्यतः एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर दो प्रकार के होते हैं

(i) सामान्य उद्देशीय सॉफ्टवेयर (General Purpose Software)

प्रोग्रामों का वह समूह, जिन्हें उपयोगकर्ता अपनी आवश्यकतानुसार अपने सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उपयोग में लाते हैं, सामान्य उद्देश्य के सॉफ्टवेयर कहलाते हैं; उदाहरणार्थ-ग्रॉफिक्स सॉफ्टवेयर। जिसके प्रयोग द्वारा उपयोगकर्ता निर्मित डेटा का चित्रपूर्ण ग्राफिक्स प्रस्तुतिकरण करता है।

ये सॉफ्टवेयर विशेष कार्यों से सम्बन्धित होते हैं, परन्तु इनका उद्देश्य केवल सामान्य कार्य करने के लिए होता है। जिसके कारण ये सॉफ्टवेयर लगभग हर क्षेत्र, हर संस्था तथा कार्यालय में दैनिक रूप से उपयोग में लाए जाते हैं।

उदाहरण के लिए स्प्रेड शीट (Spread Sheet), डेटाबेस प्रबन्धन प्रणाली (Data base Management System), ग्रॉफिक्स सॉफ्टवेयर (Graphics Software), शब्द संसाधन (Word Processing), कोरल डॉ (Coral Draw), पेण्ट (Paint), एमएस पॉवर प्वॉइण्ट (MS- Power point) ।

(a) वर्ड प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर (Word Processing Software)

वर्ड प्रोसेसर एक विशेष प्रकार का सॉफ्टवेयर है, जिसकी सहायता से टेक्स्ट या दस्तावेज (Document) को संचालित किया जाता है। यह सॉफ्टवेयर डॉक्यूमेंट प्रीप्रेशन सिस्टम के नाम से भी जाना जाता है। यह सॉफ्टवेयर प्रिंट होने वाले मैटीरियल की कंपोजीशन, एडीटिंग, फॉर्मेटिंग और प्रिंटिंग आदि के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

इस सॉफ्टवेयर में बनाए गए डॉक्यूमेण्टस को बनाकर उन्हें भविष्य में उपयोग करने के लिए सुरक्षित (Save) कर दिया जाता है। तथा भविष्य में भी इन डॉक्यूमेण्ट्स में बदलाव किया जा सकता है। वर्ड प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर, आज के समय में सर्वाधिक प्रयोग होने वाला सॉफ्टवेयर है।

उदाहरण के लिए माइक्रोसॉफ्ट वर्ड, वर्ड परफेक्ट (केवल Windows के लिए), एप्पल वर्क्स (केवल Apple के लिए), Openoffice Word आदि।

(b) इलेक्ट्रॉनिक स्प्रेडशीट्स (Electronic Spread Sheets)

इस सॉफ्टवेयर के द्वारा उपयोगकर्ता अपने डेटा को ‘रो’ तथा ‘कॉलम’ (Rows and Columns) के रूप में व्यवस्थित कर सकते हैं। ये रो और कॉलम्स सामूहिक रूप से स्प्रेडशीट कहलाते हैं। इन सॉफ्टवेयरों में अधिकतर स्प्रेडशीट बनाने, उन्हें सेव, एडिट और फॉर्मेट करने के फीचर होते हैं। उदाहरण के लिए माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल, कोरेल क्वाटरों प्रो, लोटस 1-2-3 आदि।

(c) डेटाबेस मैनेजमेण्ट सिस्टम (Database Management System)

आर्गेनाइज्ड डेटा का ऐसा संग्रह (Collection), जिसमें जरूरत पड़ने पर डेटा को एक्सेस (Access), रिट्रीव (Retrieve) तथा फॉर्मेट (Format) किया जा सके, डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम कहलाता है। इस सॉफ्टवेयर का कार्य डेटाबेस को क्रिएट, एक्सेस और मैनेज करना होता है। इस सॉफ्टवेयर का प्रयोग करके डेटाबेस में डेटा को जोड़ा जा सकता है, सुधारा जा सकता है और डिलीट किया जा सकता है। साथ-ही-साथ डेटा को व्यवस्थित तथा रिट्रीव (Sort and Retrieve) भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए माइक्रोसॉफ्ट एक्सीस, कोरेल पैराडॉक्स, लॉटस एप्रोच आदि।

(d) डेस्कटॉप पब्लिशिंग सॉफ्टवेयर (Desktop Publishing Sofware)

इन साफ्टवेयरर्स का प्रयोग ग्राफिक डिजाइनरों द्वारा किया जाता है। इन सॉफ्टवेयरों का प्रयोग डेस्कटॉप प्रिंटिंग तथा ऑन स्क्रीन इलेक्ट्रॉनिक पब्लिशिंग के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए क्वार्क एक्सप्रेस, एडोब पेजमेकर, 3B2, कोरेल ड्रॉ आदि।

(e) ग्राफिक्स सॉफ्टवेयर (Graphics Software)

ये सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर पर पड़ी इमेज में बदलाव करने और उन्हें सुन्दर बनाने की अनुमति देते हैं। इन सॉफ्टवेयरर्स के द्वारा इमेजिस (Images) को रीटच (Retouch), कलर एडजस्ट (Colour adjust), एनहैन्स (Enhance) शैडो (Shadow) व ग्लो (Glow) जैसे विशेष इफैक्ट्स दिए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए एडोब फोटोशॉप, पिज़ाप (Pizap) आदि

(f) मल्टीमीडिया सॉफ्टवेयर (Multimedia Software)

टेक्स्ट (Text), ऑडियो (Audio), वीडियो (Video), इमेज़िस (Images) तथा एनीमेशन (Animation) आदि के संयोजन को ‘मल्टीमीडिया’ कहते हैं। वे सॉफ्टवेयर जो ये सारी सुविधा प्रदान करते हैं। मल्टीमीडिया सॉफ्टवेयर कहलाते हैं।

प्रजेण्टेशन सॉत्रेयर (Presentation Software)

प्रजेण्टेशन का अर्थ है अपने विचार, संदेश तथा अन्य सूचना को एक ऐसे सरल रूप में किसी ग्रुप के सामने प्रस्तुत करना, जिससे उस ग्रुप को वह सूचना आसानी से समझ आ सके। प्रेजेण्टेशन सॉफ्टवेयर इसी उद्देश्य के लिए प्रयोग किया जाता है जो सूचना को स्लाइड के रूप में प्रदर्शित करता है। इसके तीन मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

  • यह एक टेक्स्ट एडीटर प्रदान करता है जो टेक्स्ट को इन्सर्ट तता फॉर्मेट अनुमति देता है।
  • ग्राफिक चित्रों को इन्सर्ट तथा अपने हिसाब से बदलने की सुविधा प्रदान करता है।
  • सामग्री को प्रदर्शित करने के लिए एक स्लाइड शो (Slide-Show) प्रणाली प्रदान करता है।
  • इस सॉफ्टवेयर का प्रयोग करके उपयोगकर्ता अपनी प्रजेण्टेशन को अधिक आकर्षक बना सकता है।
  • उदहारण के लिए माइक्रोसॉफ्ट पावरपाइण्ट, कोरेल प्रजेण्टेशन्स इत्यादि।
(ii) विशिष्ट उद्देशीय सॉफ्टवेयर

ये सॉफ्टवेयर किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु बनाए जाते हैं। इस प्रकार के सॉफ्टवेयर का अधिकांशतः केवल एक उद्देश्य होता है। सामान्य रूप से उपयोग किए जाने वाले कुछ विशिष्ट उद्देशीय सॉफ्टवेयर निम्न हैं

(a) इनवेंटरी मैनेजमेण्ट सिस्टम एण्ड परचेजिंग सिस्टम (Inventory

Management System and Purchasing System) इस प्रकार के सॉफ्टवेयर अधिकतर जनरल स्टोरर्स या ऐसे संस्थानों में उपयोग किए जाते हैं, जिनमें भौतिक संसाधनों (Physical Resources) की आवश्यकता होती है।

किसी स्टॉक में उपस्थित वस्तुओं (Goods and Material) की सूची को ‘इनवेण्टरी’ कहते हैं।

(b) पेरौल मैनेजमेण्ट सिस्टम (Payroll Management System)

आधुनिक समय में लगभग प्रत्येक संस्थान के द्वारा अपने कर्मचारियों के वेतन तथा अन्य भत्तो का हिसाब रकने के लिए इस सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता है। यह सॉफ्टवेयर कर्मचारियों के वेतन, भत्ते इत्यादि का हिसाब-किताब रखता है।

(c) होटल मैनेजमेण्ट सिस्टम (Hotel Management System)

होटलों के विभिन्न कार्यों को व्यवस्थित करना ही होटल मैनेजमेण्ट कहलाता है। इसकें अन्तगर्त मार्केटिंग, हाउसकीपिंग, बिलिंग, एडमिनिस्ट्रेशन (Administration) जैसे कार्य आते है।

(d) रिजर्वेशन सिस्टम (Reservation System)

रिजर्वेशन सिस्टम या सेण्ट्रल रिज़र्वेशन सिस्टम एक ऐसा कम्प्यूटराइज्ड सिस्टम है, जिसके प्रयोग से उपयोगकर्ता ट्रेन या वायु यातायात के बारे में विभिन्न जानकारी प्राप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त इस सॉफ्टवेयर के द्वारा ट्रेन या हवाई जहाज आदि में उपलब्ध सीटों, बर्थो (Births) या टिकटों के बारे में विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त की जी सकती है।

(e) रिपोर्ट कार्ड जनरेटर (Report Card Generateor)

इस प्रकार के साफ्टवेयर्स का प्रयोग विभिन्न स्कूलों या कॉलेजों के एग्जामिनेशन (Examination) विभाग द्वारा विद्यार्थियों के परिक्षाफल (Results) तैयार करने में किया जाता है। ये साफ्टवेयर विभिन्न गणितीय गणनाएँ (Mathematical Calculations) करता है और जाँच करता है, कि विद्यार्थी (Students) अपनी कक्षा की परीक्षा में पास हुआ या फेल।

(f) एकाउण्टिंग सॉफ्टवेयर (Accounting Software)

ये सॉफ्टवेयर एक ऐसा एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर है, जो विभिन्न खातों के लेन-देन का लेखा-जोखा रखता है। यह सॉफ्टवेयर लेखांकन (Accounting) की जानकारियाँ रखता है।

लेखांकन सॉफ्टवेयर कई प्रकार के होते हैं।

(i) देय खाता सॉफ्टवेयर (Accounts Payabale Software)

(ii) बैंक समाधान सॉफ्टवेयर (Bank Reconciliation Software)

(iii) बजट प्रबन्धन सॉफ्टवेयर (Budget Management Software)

(g) बिलिंग सिस्टम (Billing System)

ये एक प्रकार का सॉफ्टवेयर है। जो बिलों (Bills) क़ी प्रक्रिया को पूरा करता है। ये उन वस्तुओं तथा सेवाओं (Services) के मूल्य की जाँच करता है, जो किसी ग्राहक को प्रदान किए जाते है

1. सिस्टम सॉफ्टवेयर

कम्प्यूटर सिस्टम के लिए सिस्टम सॉफ्टवेयर होना अति आवश्यक है।

  1. सिस्टम सॉफ्टवेयर को विकसित करना अधिक जटिल होता है। यह हार्डवेयर को संचालित कर एप्लीकेशन को रन करता है।
  2. सिस्टम सॉफ्टवेयर महँगे होते हैं।
  3. सिस्टम सॉफ्टवेयर को कस्टमाइज नहीं किया जा सकता।

2. एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर

  1. कम्प्यूटर सिस्टम के लिए एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर का होना आवश्यक नहीं है।
  2. एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को विकसित करना जटिल नहीं होता।
  3. यह प्रयोगकर्ता द्वारा दिए गए कार्य को ही करता है।
  4. एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर सस्ते होते हैं। एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को कस्टमाइज किया जा सकता है।

प्रोग्रामिंग भाषाएँ (Programming Languages)

कम्प्यूटर एक मशीन है तथा हमारी सामान्य बोलचाल की भाषाओं मे लिखे प्रोग्रामों को नहीं समझ सकता। इसलिए कम्प्यूटर के लिए विशेष प्रकार की भाषाओं में प्रोग्राम लिखे जाते हैं। इन भाषाओं को प्रोग्रामिग भाषाएँ कहते हैं। इन भाषाओं की अपनी एक अलग व्याकरण (Grammar) होती है और प्रोग्राम लिखते समय उनके व्याकरण का पालन करना आवश्यक है। आजकल ऐसी सैकड़ों भाषाएँ प्रचलन में हैं। ये भाषाएँ कम्प्यूटर और प्रोग्रामर के बीच सम्पर्क या संवाद बनाती है। कम्प्यूटर उनके माध्यम से दिए गए निर्देशों के समझकर उनके अनुसार कार्य करता है। ये निर्देश इस प्रकार दिए जाते हैं, कि उनका क्रमशः पालन करने से कोई कार्य पूरा हो जाए। प्रोग्रामिंग भाषाओं को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है- निम्न स्तरीय भाषाएँ, मध्य स्तरीय भाषाएँ और उच्च स्तरीय भाषाएँ

1. निम्न स्तरीय भाषाएँ (Low Level Languages)

निम्न स्तरीय भाषाएँ कम्प्यूटर की आन्तरिक कार्यप्रणाली के अनुसार बनाई जाती है तथा ऐसी भाषाओं में लिखे गए प्रोग्रामों के पालन करने की गति अधिक होती है, क्योंकि कम्प्यूटर उसके निर्देशों का सीधे ही पालन कर सकता है। इनके दो प्रमुख उदाहरण हैं। मशीनी भाषाएँ तथा असेम्बली भाषाएँ।

a) मशीनी भाषाएँ (Machine Languages)

ये भाषा केवल बाइनरी (अंको (0 या 1) से बनी होती है। प्रत्येक कम्प्यूटर के लिए उसकी अलग मशीनी भाषा होती है। मशीनी भाषा का प्रयोग प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटरों में किया जाता था तथा इनमें त्रुटियों का पता लगाना एवं उन्हें ठीक करना लगभग असम्भव होता है।

(b) असेम्बली भाषाएँ (Assembly Languages)

ये भाषाएँ पूरी तरह मशीनी भाषाओं पर आधारित होती है, परन्तु इनमें 0 से 1 की श्रृंखलाओं के स्थान पर अंग्रेजी के अक्षरों और कुछ गिने चुने शब्दों को कोड के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन भाषाओं में लिखे गए प्रोग्रामों में त्रुटि का पता लगाना एवं उन्हें ठीक करना सरल होता है।

2. मध्य स्तरीय भाषाएँ (Medium Level Languages) ये

भाषा निम्न स्तरीय तथा उच्च स्तरीय भाषाओं के मध्य पुल का कार्य करती है। C भाषा को मध्य स्तरीय भाषा कहा जाता है, क्योंकि इसमें उच्च स्तरीय तथा निम्न स्तरीय दोनों भाषाओं के गुण है। उच्च स्तरीय भाषाएँ (High Level Languages) ये 3. भाषाएँ  कम्प्यूटर की आन्तरिक कार्यप्रणाली पर आधारित नहीं होती है। इन भाषाओं में अंग्रेजी के कुछ चुने हुए शब्दों और साधारण गणित में प्रयोग किए जाने वाले चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। इनमें त्रुटियों का पता लगाना और उन्हें ठीक करना सरल होता है, किन्तु इन भाषाओं में लिखे प्रोग्राम्स को मशीनी भाषा में कम्पाइलर या इण्टरप्रेटर के द्वारा अनुवादित (Translated) कराया जाना आवश्यक होता है।

लिंकर (Linker)

जब वास्तविक भाषा में लिखे प्रोग्राम को मशीनी भाषा में अनुवादित किया जाता है, तो इस प्रकार प्राप्त होने वाले आउटपुट को ऑब्जेक्ट प्रोग्राम (Object Program) या ऑब्जेक्ट फाइल (Object File) कहा जाता है। जिसके बाद लिंकर (Linker) नामक प्रोग्राम सभी आब्जेक्ट फाइल को मिलाकर एक वास्तविक एक्जीक्यूटेबल फाइल (Executable File) बना देता है।

लोडर (Loader)

लोडर एक प्रकार का सिस्टम सॉफ्टवेयर है, जो किसी एक्जीक्यूटेबल प्रोग्राम को मेन मैमोरी में लोड करने (डालने) का कार्य करता है। यह एक निर्देशों की श्रृंखला होती है, जो प्रोग्राम को हार्ड डिस्क या फ्लॉपी से मैमोरी में भेजती है। ये ऑपरेटिंग सिस्टम का वह हिस्सा है, जो डिस्क पर पड़ी एक्जीक्यूटेबल फाइल को मेन मैमोरी पर लोड करता है और इसका क्रियान्वयन शुरू करता है।

भाषा अनुवादक (Language Translators)

ये ऐसे प्रोग्राम हैं, जो विभिन्न प्रोग्रामिंग भाषाओं में लिखे गए प्रोग्रामों का अनुवाद कम्प्यूटर की मशीनी भाषा (Machine Language) में करते हैं। यह अनुवाद कराना इसलिए आवश्यक होता है, क्योंकि कम्प्यूटर केवल अपनी मशीनी भाषा में लिखे हुए प्रोग्राम का ही पालन कर सकता है।

भाषा अनुवादकों को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है

1. असेम्बलर (Assembler)

यह एक ऐसा प्रोग्राम होता है, जो असेम्बली भाषा (Assembly Language) में लिखे गए किसी प्रोग्राम को पढ़ता है और उसका अनुवाद मशीनी भाषा में कर देता है। असेम्बली भाषा के प्रोग्राम को सोर्स प्रोग्राम (Source Program) क़हा जाता है। इसका मशीनी भाषा में अनुवाद करने के बाद जो प्रोग्राम प्राप्त होता है, उसे ऑब्जेक्ट प्रोग्राम (Object Program) कहा जाता है।

2. कम्पाइलर (Compiler)

यह एक ऐसा प्रोग्राम होता है, जो किसी प्रोग्रामर द्वारा उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा (High-level Programming Language) में लिखे गए सोर्स प्रोग्राम का अनुवाद मशीनी भाषा में करता है। कम्पाइलर सोर्स प्रोग्राम के प्रत्येक कथन या निर्देश का अनुवाद करके उसे मशीनी भाषा के निर्देशों में बदल देता है। प्रत्येक उच्चस्तरीय भाषा के लिए एक अलग कम्पाइलर की आवश्यकता होती है।

3. इण्टरप्रेटर (Interpreter)

यह किसी प्रोग्रामर द्वारा उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा (High-level Programming Language) में लिखे गए सोर्स प्रोग्राम का अनुवाद मशीनी भाषा में करता है, परन्तु यह एक बार में सोर्स प्रोग्राम के केवल एक कथन को मशीनी भाषा में अनुवाद करता है और उनका पालन कराता है। इनका पालन हो जाने के बाद ही वह सोर्स प्रोग्राम के अगले कथन का मशीनी भाषा में अनुवाद करता है। मूलतः कम्पाइलर और इण्टरप्रेटर का कार्य समान होता है, अन्तर केवल यह है कि कम्पाइलर जहाँ ऑब्जेक्ट प्रोग्राम बनाता है, वहाँ वहीं इण्टरप्रेटर कुछ नहीं बनाता। इसलिए इण्टरप्रेटर का उपयोग करते समय हर बार सोर्स प्रोग्राम की आवश्यकता पड़ती है।

इन्हें भी जानें

  • विज़ुअल बेसिक एक इण्टरप्रीटिड (Interpreted) भाषा है।
  • फर्मवेयर (Firmware) ये हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का संयोजन (Combination) होता है। उदाहरण के लिए, रोम (ROM), प्रोम (PROM) और ईप्रोम (EPROM) आदि।
  • फ्रीवेयर (Freeware) ये अधिकांशतः कॉपीराइटेड (Copyrighted) सॉफ्टवेयर होते है। ये सॉफ्टवेयर इनके बनाने वालों के द्वारा बिना किसी शुल्क के (Free) उपलब्ध कराए जाते हैं। उदाहरण के लिए, इन्स्टेण्ट मेसेजिंग, गूगल टूलबार, आदि।
  • स्यूडो कोड (Pseudocode) यह एक प्रोग्रामिंग भाषा नहीं है, किन्तु किसी प्रोग्राम को समझाने का अनौपचारिक तरीका है। दूसरे शब्दों में, स्यूडो कोड किसी प्रोग्राम की रूपरेखा है, जो इस तरह से लिखी जाती है, कि जरूरत पड़ने पर इसे प्रोग्राम में तब्दील किया जा सके।
  • कण्ट्रोल स्ट्रक्चर्स (Control Structures) ये एक कथन (Statement) या एक से अधिक कथनों का एक समूह है, जो प्रोग्रम में निर्देशों के क्रियान्वयन का क्रम से पालन कराता है।
  • लूपिंग (Looping) लूपिंग एक प्रकार का कण्ट्रोल स्ट्रक्चर है, जो किसी प्रोग्राम में किसी विशेष स्थिति (Condition) को बार-बार दोहराता है।
  • Q विशिष्ट प्रतिबंधों के आधार पर सॉफ्टवेयर के प्रयोग का कानूनी अधिकार सॉफ्टवेयर लाइसेन्स के माध्यम से दिया जाता है।

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