कम्प्यूटर और मनुष्य के मध्य सम्पर्क (Communication) स्थापित करने के लिए इनपुट-आउटपुट युक्तियों का प्रयोग किया जाता है। इनपुट युक्तियों का प्रयोग कम्प्यूटर को डेटा और निर्देश प्रदान करने के लिए किया जाता है। इनपुट डेटा को प्रोसेस करने के बाद, कम्प्यूटर आउटपुट युक्तियों के द्वार प्रयोगकर्ता को आउटपुट प्रदान करता है। कम्प्यूटर मशीन से जुडी हुई सभ इनपुट-आउटपुट यूक्तियों को पेरीफेरल युक्तियाँ भी कहते हैं।
इनपुट युक्तियाँ (Input Devices)
वे युक्तियाँ, जिनका प्रयोग उपयोगकर्ता के द्वारा कम्प्यूटर को डेटा और निर्देश प्रदान करने के लिए किया जाता है, इनपुट युक्तियाँ कहलाती हैं। इनपुट युक्तिय उपयोगकर्ता से इनपुट लेने के बाद इसे मशीनी भाषा (Machine Language में परिवर्तित करती हैं और इस परिवर्तित मशीनी भाषा को सीपीयू के पास भेज देती हैं।
कुछ प्रमुख इनपुट युक्तियाँ निम्न हैं
1. कीबोर्ड (Keyboard)
कीबोर्ड एक प्रकार की मुख्य इनपुट डिवाइस है। कीबोर्ड का प्रयो कम्प्यूटर को अक्षर और अंकीय रूप में डेटा और सूचना देने के लि करते हैं। कीबोर्ड एक सामान्य टाइपराइटर की तरह दिखता है, किन इसमें टाइपराइटर की अपेक्षा कुछ ज्यादा कुंजियाँ (Keys) होती हैं। जन कोई कुंजी कोबोर्ड पर दबाई जाती है तो कीबोर्ड, कीबोर्ड कण्ट्रोलर औ कीबोर्ड बफर से सम्पर्क करता है।
कीबोर्ड कण्ट्रोलर, दबाई गई कुंजी के कोड को कीबोर्ड बफर में स्टो करता है और बफर में स्टोर कोड सी पी यू के पास भेजा जाता है। स पी यू इस कोड को प्रोसेस करने के बाद इसे आउटपुट डिवाइस प प्रदर्शित करता है। कुछ विभिन्न प्रकार के कीबोर्ड जैसे कि QWERTY DVORAK और AZERTY मुख्य रूप से प्रयोग किए जाते हैं।5 कीबोर्ड में कुंजियों के प्रकार (कीबोर्ड पर कुंजियों के प्रकार)- कीबोर्ड में निम्न प्रकार की कुंजियाँ होती हैं
(i) अक्षरांकीय कुंजियाँ (Alphanumeric Keys) इसके अन्तर्गत अक्षर कुंजियाँ (A, B,…….z, a, b, c,……, z) और अंकीय कुंजियाँ (0, 1, 2, ……9) आती हैं।
(ii) अंकीय कुंजियाँ (Numeric Keys) ये कुंजियाँ कीबोर्ड पर दाएँ तरफ होती हैं। ये कुंजियाँ अंको (0, 1, 2, 9) और गणितीय ऑपरेटरों (Mathematical operators) से मिलकर बनी होती है।
(iii) फंक्शन कुंजियाँ (Function Keys) इन्हें प्रोग्रामेबल कुंजियाँ भी कहते हैं। इनके द्वारा कम्प्यूटर से कुछ विशिष्ट कार्य करवाने के लिए निर्देश दिया जाता है। ये कुंजियाँ अक्षरांकीय कुंजियों के ऊपर F1, F2, ….. F12 से प्रदर्शित की जाती हैं।
(iv) कर्सर कण्ट्रोल कुंजियाँ (Cursor Control Keys) इसके अन्तर्गत चार तीर के निशान वाली कुंजियाँ आती हैं जो चार दिशाओं (दाएँ, बाएँ, ऊपर, नीचे) को दर्शाती हैं। ये कुंजियाँ अक्षरांकीय कुंजियों और अंकीय कुंजियों के मध्य उल्टे T आकार में व्यवस्थित होती हैं, इनका प्रयोग कर्सर को ऊपर, नीचे, दाएँ या बाएँ ले जाने के लिए करते हैं। इन चारों कुंजियों के अतिरिक्त चार कुंजियाँ और होती हैं, जिनका प्रयोग कर्सर को कण्ट्रोल करने के लिए करते हैं। ये कुंजियाँ निम्न हैं
(a) होम (Home) इसका प्रयोग लाइन के प्रारम्भ में या डाक्यूमेण्ट के प्रारम्भ में कर्सर को वापस भेजने के लिए करते हैं।
(b) एण्ड (End) इसका प्रयोग कर्सर को लाइन के अन्त में भेजने के लिए करते हैं।
(c) पेज अप (Page Up) जब इस कुंजी को दबाया जाता है तो पेज का व्यू (View) एक पेज ऊपर हो जाता है और कर्सर पिछले पेज पर चला जाता है।
(d) पेज डाउन (Page Down) जब ये कुंजी दबाई जाती है तो पेज का व्यू एक पेज नीचे हो जाता है और कर्सर अगले पेज पर चला जाता है।
कीबोर्ड की अन्य कुंजियाँ कुछ अन्य कुंजियाँ निम्नलिखित हैं
कण्ट्रोल कुंजियाँ (Control Keys-Ctrl)
ये कुंजियाँ, अन्य कुंजियों के साथ मिलकर किसी विशेष कार्य को करने के लिए प्रयोग की जाती हैं। जैसे Ctrl + S डॉक्यूमेण्ट को सुरक्षित करने के लिए प्रयोग होती हैं।
एण्टर कुंजी (Enter Key)
इसे कीबोर्ड की मुख्य कुर्जा भी कहते हैं। इसका प्रयोग उपयोगकर्ता द्वारा टाइप किए गए निर्देश को कम्प्यूटर को भेजने के लिए किया जाता है। एण्टर कुंजी टाइप करने के बाद निर्देश कम्प्यूटर के पास जाता है और निर्देश के अनुसार कम्प्यूटर आगे का कार्य करता है।
शिफ्ट कुंजी (Shift Keys)
कीबोर्ड में कुछ कुंजी ऐसी होती हैं, जिनमें ऊपर-नीचे दो संकेत छपे होते हैं। उनमें से ऊपर के संकेत को टाइप करने के लिए उसे शिफ्ट कुंजी के साथ दबाते हैं। इसे कॉम्बीनेशन-की भी कहा जाता है।
एस्केप कुंजी (Escape Key)
इसका प्रयोग किसी भी कार्य को समाप्त करने या बीच में रोकने के लिए करते हैं। यदि Ctrl Key दबाए हुए, एस्केप कुंजी दबाते हैं तो यह स्टार्ट मेन्यू (Start Menu) को खोलता हैं।
बैक स्पेस कुंजी (Back Space Keys)
इसका प्रयोग टाइप किए गए डेटा या सूचना को समाप्त करने के लिए करते हैं। यह डेटा को दाएँ से बाएँ दिशा की ओर समाप्त करता है।
डिलीट कुंजी (Delete Keys)
इस कुंजी का प्रयोग कम्प्यूटर की मेमोरी से सूचना और स्क्रीन से अक्षर को समाप्त करने के लिए करते हैं। किन्तु यदि इसे शिफ्ट की के साथ दबाते हैं तो चुनी हुई फाइल कम्प्यूटर की मेमोरी से स्थायी रूप से समाप्त हो जाती हैं।
कैप्स लॉक कुंजी (Caps Lock Key)
इसका प्रयोग वर्णमाला (Alphabet) को बड़े अक्षरों (Capital letters) में टाइप करने के लिए करते हैं। जब ये की सक्रिय (Enable) होती है तो बड़े अक्षर में टाइप होता हैं। यदि यह कुंजी निष्क्रिय (Disable) होती है तो छोटे अक्षर (Small Letter) में टाइप होता है।
स्पेसबार कुंजी (Spacebar Key)
इसका प्रयोग दो शब्दों या अक्षरों के बीच स्पेस बनाने या बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह कीबोर्ड की सबसे लम्बी कुंजी होती हैं।
नम लॉक की (Num Lock Key)
इसका उपयोग सांख्यिक की-पैड (Numeric Key pad) को सक्रिय या निष्क्रिय करने के लिए किया जाता है। यदि ये कुंजी सक्रिय होती है तो अंक टाइप होता है और यदि ये कुंजी निष्क्रिय होती है तो अंक टाइप नहीं होता हैं।
विण्डो कुंजी (Window Key)
इसका प्रयोग स्टार्ट मेन्यू को खोलने के लिए करते हैं।
टैब कुंजी (Tab Key)
इसका प्रयोग कर्सर को एक बार में पाँच स्थान आगे ले जाने के लिए किया जाता है। कर्सर को पुनः पाँच स्थान वापस लाने के लिए टैब कुंजी को शिफ्ट कुंजी के साथ दबाया जाता है। इसका प्रयोग पैराग्राफ इण्डेंट करने के लिए भी किया जाता है।
इन्हें भी जानें
एण्टर कुंजी (Enter Key)
ओके बटन (OK Button) दबाने का एक वैकल्पिक (Alternative) तरीका है।
शिफ्ट कुंजी (Shift Key)
इस कुंजी (Key) को दूसरी कुंजियों के साथ प्रयोग किया जाता है, इसलिए इसे संयोजन कुंजी (Combination) भी कहते हैं।
कैप्स लॉक (Caps Lock) और नम लॉक (Num Lock)
इस को टोगल कुंजी (Toggle Keys) कहते हैं क्योंकि जब ये दबाए जाते हैं तो इनकी अवस्थाएँ Bies) परिवर्तित होती रहती हैं।
QWERTY कीबोर्ड में कुल 104 कुँजी होती हैं।
2. प्वॉइण्टिंग युक्तियाँ (Pointing Devices)
प्वॉइण्टिग डिवाइसेज का प्रयोग मॉनीटर के स्क्रीन पर कर्सर या प्वॉइण्टर को एक स्थान-से-दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए किया जाता है। कुछ मुख्य रूप से प्रयोग में आने वाली प्वॉइन्टिंग युक्तियाँ; जैसे- माउस, ट्रैकबॉल, जॉयस्टिक, लाइट पेन और टच स्क्रीन आदि हैं।
(i) माउस (Mouse)
माउस एक प्रकार की प्वॉइष्टिग युक्ति है। इसका प्रयोग कर्सर (टेक्स्ट में आपकी पोजिशन दर्शाने वाला ब्लिकिंग प्वॉइण्ट) या प्वाइण्टर को एक स्थान-से-दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए करते हैं। इसके अतिरिक्त माउस का प्रयोग कम्प्यूटर में ग्राफिक्स (Graphics) की सहायता से कम्प्यूटर को निर्देश देने के लिए करते हैं।
इसका आविष्कार वर्ष 1963 में स्टैण्डफोर्ड रिसर्च सेण्टर डगलस-सी एंगलबर्ट ने किया था। इसमें सामान्यतः दो या तीन बटन होते हैं। एक बटन को बायाँ बटन (Left Button) और एक बटन को दायाँ बटन (Right Button) कहते हैं। दोनों बटनों के बीच में एक स्क्रॉल व्हील (Wheel) होता है, जिसका प्रयोग किसी फाइल में ऊपर या नीचे के पेज पर कर्सर को ले जाने के लिए करते हैं।
माउस सामान्यतः तीन प्रकार के होते हैं।
(a) वायरलेस माउस (Wireless Mouse)
(b) मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse)
(c) ऑप्टिकल माउस (Optical Mouse)
माउस के चार प्रमुख कार्य हैं
(a) क्लिक या लैफ्ट क्लिक (Click or Left Click) यह स्क्रीन पर किसी एक Object को चुनता है।
(b) डबल क्लिक (Double Click) इसका प्रयोग एक डॉक्यूमेण्ट या प्रोग्राम को खोलने के लिए करते हैं।
(c) तायाँ क्लिक (RightClickk) यह स्क्रीन पर आदेशों की एक सूची दिखाता है। दायाँ क्लिक का प्रयोग किसी चुने हुए Object के गुण को एक्सेस (Access) करने के लिए करते हैं।
(d) ड्रैग और ड्रॉप (Drag and Drop) इसका प्रयोग किसी Object को स्क्रीन पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए करते हैं।
(ii) ट्रैकबॉल (Trackball)
ट्रैकबॉल एक प्रकार की प्वॉइण्टिग युक्ति है जिसे माउस की तरह प्रयोग किया जाता है। इसमें एक बॉल ऊपरी सतह पर होती है। इसका प्रयोग कर्सर के मूवमेण्ट (Movement) को कण्ट्रोल करने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग निम्नलिखित कार्यों में किया जाता है।
(a) CAD वर्कस्टेशनों (Computer Aided Design Workstations में
(b) CAM वर्कस्टेशनों (Computer Aided Manufacturing Workstations) में
(c) कम्प्यूटरीकृत वर्कस्टेशनों (Computerised Worstations) जैसे कि एयर-ट्रैफिक कण्ट्रोल रूम (Air-traffic Control Room) रडार कण्ट्रोल्स (Radar Controls) में
(d) जहाज पर सोनार तन्त्र (Sonar System) में
(iii) जॉयस्टिक (Joystick)
जॉयस्टिक एक प्रकार की प्वॉइण्टिग युक्ति होती है जो सभी दिशाओं में मूव करती है और कर्सर के मूवमेण्ट को कण्ट्रोल करती है। जॉयस्टिक का प्रयोग फ्लाइट सिम्युनेटर (Flight simulator), कम्प्यूटर गेमिंग, CAD/CAM सिस्टम जॉयस्टिक में किया जाता है। इसमें एक हैण्डल (Handle) लगा होता है, जिसकी सहायता से कर्सर के मूवमेण्ट को कण्ट्रोल करते हैं। जॉयस्टिक और माउस दोनों एक ही तरह से कार्य करते हैं किन्तु दोनों में यह अन्तर है कि कर्सर का मूवमेण्ट माउस के मूवमेण्ट पर निर्भर करता है, जबकि जॉयस्टिक में, प्वॉइण्टर लगातार अपने पिछले प्वॉइण्टिग दिशा की ओर मूव करता रहता है और उसे जॉयस्टिक की सहायता से कण्ट्रोल किया जाता है।
(iv) प्रकाशीय कलम (Light Pen)
प्रकाशीय कलम एक हाथ से चलाने वाली इलेक्ट्रोऑप्टिकल प्वॉइण्टिग युक्ति है, जिसका प्रयोग ड्रॉइंग्स (Drawings) बनाने के लिए, ग्राफिक्स बनाने के लिए और मेन्यू चुनाव के लिए करते हैं। पेन में छोटे ट्यूब (Small Tube) के अन्दर एक फोटोसेल (Photocell) होता है।
यह ऐन स्क्रीन के पास जाकर प्रकाश को लेन्स (Sense) करता है तथा उसके बाद पल्स उत्पन्न करता है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से पर्सनल डिजिटल असिस्टेण्ट (Personal Digital Assistant-PDA) में करते हैं। इसका प्रयोग स्क्रीन पर किसी विशिष्ट स्थिति (Location) को पहचानने (Identify) के लिए करते हैं। यदि यह स्क्रीन के किसी रिक्त स्थान पर रखा जाता है तो यह किसी भी प्रकार की सूचना नहीं देता है।
(v) टच स्क्री (Touch Screen)
टच स्क्रीन एक प्रकार की इनपुट युक्ति है जो उपयोगकर्ता से तब इनपुट लेता है जब उपयोगकर्ता अपनी अंगुलियों को कम्प्यूटर स्क्रीन पर रखता है। टच स्क्रीन का प्रयोग सामान्यतः निम्न अनुप्रयोगों (Applications) में किया जता है
(i) ए टी एम (ATM) में
(ii) एयरलाइन आरक्षण (Air-Line Reservation) में
(iii) बैंक (Bank) में
(iv) सुपर मार्केट (Super Market) में
(v) मोबाइल (Mobile) में
(vi) डिजिटाइजर्स और ग्राफिक टैबलेट्स (Digitizers and Graphic Tablets)
ग्राफिक टैबलेट के पास एक विशेष कमाण्ड होती है जो ड्राइंग, फोटो आदि को डिजिटल सिगनल्स में परिवर्तित करती है। यह कलाकार (Artist) को हाथ से इमेज और ग्राफिक इमेज बनाने की अनुमति प्रदान करता है।
3. बार कोड रीडर (Bar Code Reader)
यह एक इनपुट युक्ति होती है, जिसका प्रयोग किसी उत्पाद (Product)
पर छपे हुए बार कोड (यूनिवर्सल प्रोडक्ट कोड) को पढ़ने के लिए किया जाता है। बार कोड रीडर से प्रकाश की किरण निकलती है; फिर उस किरण को बार कोड इमेज पर सखते हैं। बार कोड रीडर में एक लाइट सेन्सिटिव डिटेक्टर होता है जो बार कोड इमेज को दोनों तरफ से पहचानता है। एक बार ये कोड पहचानने के बाद 1 इसे सांख्यिक कोड (Numeric Code) में परिवर्तित करता है। बार कोड रीडर का ज्यादा प्रयोग सुपर मार्केट में किया जाता है, जहां पर बार कोड रीडर के द्वारा आसानी से किसी उत्पाद का मूल्य रीड किया जाता है। बार कोड गाढ़ी और हल्की स्याही की उर्ध्वाधर रेखाएँ हैं जो सूचना के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। तथा मशीन इसे आसानी से पढ़ लेती है।
4. ऑप्टिकल मार्क रीडर
ऑप्टिकल मार्क रीडर एक प्रकार की इनपुट डिवाइस है, जिसका प्रयोग किसी कागज पर बनाए गए चिन्हों को पहचानने के लिए किया जाता है। यह कागज पर प्रकाश की किरण छोड़ता है और प्रकाश की किरण जिस चिह्न पर ऑप्टिकल मार्क रीडर पड़ती है उस चिह्न को OMR रीड (read) करके कम्प्यूटर को इनपुट दे देता है। OMR की सहायता से किसी वस्तुनिष्ठ प्रकार (Objective Type) की प्रयोगात्मक परीक्षा की उत्तर पुस्तिका की जाँच की जाती है। इसकी सहायता से हजारों प्रश्नों का उत्तर बहुत ही कम समय में आसानी से जाँचा जा सकता है।
5. ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्नीशन (Optical Character Recognition-OCR)
यह ओ एम आर (OMR) का ही कुछ सुधरा हुआ रूप होता है। यह केवल साधारण चिह्नों को ही नहीं, बल्कि छापे गए या हाथ से साफ- साफ लिखे गए अक्षरों को भी पढ़ लेता है। यह प्रकाश स्रोत की सहायता से कैरेक्टर की शेप को पहचान लेता है। इस तकनीक को ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्नीशन (Optical Character Recognition) कहा जाता है। इसका उपयोग पुराने दस्तावेजों को पढ़ने में किया जाता है।
इसका प्रयोग कई अनुप्रयोगों; जैसे-कि टेलीफोन, इलेक्ट्रीसिटी बिल, बीमा प्रीमियम आदि को पढ़ने में किया जाता है। OCR की अक्षरों को पढ़ने की गति 1500 से 3000 कैरेक्टर प्रति सेकण्ड होती है। 6. मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रीडर (Magnetic Ink कैरेक्टर रीडर-एमआईसीआर)
MICR सूचनाओं का मैट्रिक्स के रूप में उनके आकार का परीक्षण करता है, उसके बाद उसे रीड करता है और रीड करने के बाद सूचनाओं को कम्प्यूटर में भेजता है। सूचनाओं में कैरेक्टर एक विशेष इंक से छपे होते हैं, जिसमें आयरन कण (Iron Particles) होते हैं और उन कणों को मैग्नेटाइज (Magnetize) किया जा सकता है। इस प्रकार की स्याही को चुम्बकीय स्याही कहते हैं।
इसका प्रयोग बैंको में चेक में नीचे छपे मैग्नेटिक इनकोडिंग संख्याओं को पहचानने और प्रोसेस करने के लिए किया जाता है।
7. स्मार्ट कार्ड रीडर (Smart Card Reader)
स्मार्ट कार्ड रीडर एक डिवाइस है, जिसका प्रयोग किसी स्मार्ट कार्ड के माइक्रोप्रोसेसर को एक्सेस (Access) करने के लिए किया जाता है। स्मार्ट कार्ड दो प्रकार के होते हैं
(i) मैमोरी कार्ड
स्मार्ट कार्ड रीडर
(ii) माइक्रोप्रोसेसर कार्ड
वीज़ा photo aayega
मैमोरी कार्ड में नॉन-वॉलेटाइल मैमोरी स्टोरेज कम्पोनेण्ट होता है जो डेटा को स्टोर करता है। माइक्रोप्रोसेसर कार्ड में वॉलेटाइल मैमोरी और माइक्रोप्रोसेसर कम्पोनेण्ट्स दोनों होते हैं। कार्ड सामान्यतः प्लास्टिक से बना होता है। स्मार्ट कार्ड का प्रयोग बड़ी कम्पनियों और संगठनों में सुरक्षा के उद्देश्य से किया जाता है।
8. बायोमैट्रिक सेन्सर (Bio-metric Sensor)
बायोमैट्रिक सेन्सर एक प्रकार की डिवाइस है, जिसका प्रयोग किसी व्यक्ति की अंगुलियों के निशान को पहचानने के लिए करते हैं। बायोमैट्रिक सेन्सर का मुख्य प्रयोग सुरक्षा के उद्देश्य से करते हैं।
इसका प्रयोग किसी संगठन में कर्मचारियों या संस्थान में विद्यार्थियों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए किया जाता है। बायोमैट्रिक बहुत शुद्धतापूर्वक एवं दक्षतापूर्वक कार्य करता है, इसीलिए इसका प्रयोग सुरक्षा के उद्देश्य से ज्यादा होता है।
9. स्कैनर (Scanner)
स्कैनर का प्रयोग पेपर पर लिखे हुए डेटा या छपे हुए चित्र (Image) को डिजिटल रूप में परिवर्तित करने के लिए करते हैं। यह एक ऑप्टिकल इनपुट डिवाइस है जो इमेज को इलेक्ट्रॉनिक रूप में बदलने के लिए प्रकाश को इनपुट की तरह प्रयोग करता है
और फिर चित्र को डिजिटल रूप में बदलने के बाद कम्प्यूटर में भेजता है। स्कैनर का प्रयोग किसी दस्तावेज (Documents) को उसके वास्तविक रूप में स्टोर करने के लिए किया जा सकता है, जिससे उसमें आसानी से कुछ बदलाव किया जा सके। स्कैनर निम्न प्रकार के होते हैं
(i) हैण्ड हेल्ड स्कैनर (Hand Held Scanner) ये आकार में काफी छोटे और हल्के होते हैं, जिन्हें आसानी से हाथ में रखकर भी डॉक्यूमेण्ट को स्कैन किया जा सकता है। यदि किसी डॉक्यूमेण्ट को स्कैन करना हो तो डॉक्यूमेण्ट के अलग-अलग भागों को स्कैन करना पड़ता है। लेकिन आकार में छोटा और हल्का होना इसका एक महत्वपूर्ण फायदा है।
(ii) फ्लैटबेड स्कैनर्स (Flatbed Scanner) ये काफी बड़े और- महँगे स्कैनर होते हैं तथा काफी उच्च गुणवत्ता के चित्र उत्पन्न करते हैं। इसमें एक समतल पटल (Flat Surface) होता है जिस पर डॉक्यूमेण्ट को रखकर स्कैन किया जाता है। यह बिल्कुल उसी तरह कार्य करता है जिस तरह फोटोकॉपी मशीन पर पेज रखकर फोटोकॉपी करते है। यह एक बार में पूरा एक पेज स्कैन करता है।
(iii) ड्रम स्कैनर (Drum Scanner) ये माध्यम आकार (Medium Size) के स्कैनर होते हैं। इनमें एक घूमने वाला ड्रम होता है। पेपर या शीट को स्कैनर में इनपुट देते हैं और स्कैनर में लगा ड्रम पूरे पेज पर घूमता है, जिससे पूरा पेज स्कैन हो जाता है। यह बिल्कुल फैक्स मशीन की तरह कार्य करता है।
10. माइक्रोफोन (Microphone-Mic)
माइक्रोफोन एक प्रकार का इनपुट डिवाइस है, जिसका प्रयोग कम्प्यूटर को साउण्ड के रूप में इनपुट देने के लिए किया जाता है। माइक्रोफोन आवाज को प्राप्त करता है तथा उसे कम्प्यूटर के फॉर्मेट (Format) में परिवर्तित करता है, जिसे डिजिटाइज्ड साउण्ड या डिजिटल ऑडियो भी कहते हैं। माइक्रोफोन में आवाज को डिजिटल रूप में परिवर्तित करने के लिए एक सहायक हार्डवेयर की आवश्यकता पड़ती है। इस सहायक हार्डवेयर को साउण्ड कार्ड कहते हैं। माइक्रोफोन को कम्प्यूटर के साथ जोड़ा जाता है, जिससे आवाज कम्प्यूटर में रिकॉर्ड हो जाती है। आजकल माइक्रोफोन का प्रयोग स्पीच रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर (Speech Recognition Software) के साथ भी किया जाता है अर्थात् इसकी सहायता से हमें कम्प्यूटर टाइप करने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि जो बोला जाता है वो डॉक्यूमेण्ट में छप जाता है।
11. वेबकैम या वेबकैमरा (Webcam or Web Camera)
वेबकैम एक प्रकार की वीडियों कैम्चरिंग (Capturing) डिवाइस है। यह एक डिजिटल कैमरा है जिसे कम्प्यूटर के साथ जोड़ा जाता है। इसका प्रयोग वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग और ऑनलाइन चैटिंग (Chatting) आदि कार्यों के लिए किया जाता है।
इसकी सहायता से चित्र भी बना सकते हैं। यदि दो लोगों के कम्प्यूटर में वेबकैमरा लगा है और कम्प्यूटर इण्टरनेट से जुड़ा हुआ है तो हम आसानी से एक-दूसरे को देखकर बातचीत कर सकते हैं।
इन्हें भी जानें
ऑप्टिकल माउस का आविष्कार माइक्रोसॉफ्ट ने वर्ष 1999 में किया था।
स्कैनर ग्रे स्केल (Gray scale) और कलर मोड (Colour mode) दोनों में इमेज (Image) को स्टोर कर सकता है।
ड्रैग तथा डोर का तात्पर्य है कि माउस के बाएँ बटन को क्लिक किए रखना और न। उस प्वॉइण्टर को किसी दूसरे स्थान पर ले जाकर बाएँ बटन को छोड़ देना है।
OCR टेक्नोलॉजी का विकास अधिक शुद्धता से अक्षरों को पहचानने के लिए किया गया है। इसीलिए इसे इण्टेलिजेन्स करैक्टर रिकॉग्निशन (Intelligence Character Recognition-ICR) भी कहते हैं।
स्पीच रिकॉग्निशन सिस्टम, बोले हुए शब्दों को मशीन के पढ़ने लायक इनपुट में बदल देता है। इसका प्रयोग हवाई जहाज कॉकपिट में, Voice डायलॉग, सरल डेटा प्रविष्टि, स्पीच से टेक्स्ट प्रोसेसिंग में होता
आउटपुट डिवाइस (Output Device)
आउटपुट डिवाइस का प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त परिणाम को देखने अथवा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। आउटपुट डिवाइस आउटपुट को हार्ड कॉपी अथवा सॉफ्ट कॉपी के रूप में प्रस्तुत करते है। सॉफ्ट कॉपी वह आउटपुट होता है जो उपयोगकर्ता को कम्प्यूटर के मॉनीटर पर दिखाई देता है अथवा स्पीकर में सुनाई देता है। जबकि हार्ड कॉपी वह आउटपुट होता है जो उपोयगकर्ता को पेपर पर प्राप्त होता है।
कुछ प्रमुख आउटपुट डिवाइसेज निम्न हैं जो आउटपुट को हार्ड कॉपी या साफ्ट कॉपी के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
1. मॉनीटर (Monitor)
मॉनीटर को विजुअल डिस्प्ले डिवाइस (Visual Display Device VDU) भी कहते है। मॉनीटर कम्प्यूटर से प्राप्त परिणाम को सॉफ्ट कॉपी के रूप में दिखाता है। मॉनीटर दो प्रकार के होते हैं; मोनोक्रोम मॉनीटर डिस्प्ले और कलर डिस्प्ले मॉनीटर। मोनोक्रोम डिस्प्ले मॉनीटर टेक्स्ट को डिस्प्ले करने के लिए एक ही रंग का प्रयोग करता है और कलर डिस्प्ले मॉनीटर एक समय में 256 रंगो को दिखा सकता है। मॉनीटर पर चित्र छोटे-छोटे बिन्दुओं (Dots) से मिलकर बनता है। इन बिन्दुओं को पिक्सल (Pixels) के नाम से भी जाना जाता है। किसी चित्र की स्पष्टता (Clarity) तीन तथ्यों पर निर्भर करती है।
(1) स्क्रीन का रिजोल्यूशन (Resolution of Screen) किसी मॉनीटर का रिजोल्यूशन उसके क्षैतिज (Horizontal) और ऊर्ध्वाधर (Vertical) पिक्सल्स की संख्या के गुणनफल के बराबर होता है। किसी मॉनीटर की रिजोल्यूशन जितनी अधिक होगी, उसके पिक्सल उतने ही नजदीक होंगे और चित्र उतना ही स्पष्ट होगा।
(II) डॉट पिच (Dot Pitch) दो कलर्ड पिक्सल के विकर्णों के बीच की दूरी को डॉट पिच (Dot Pitch) कहते हैं। यदि किसी मॉनीटर की डॉट पिच कम-से-कम हो तो उसका रिजोल्यूशन अधिक होगा तथा उस मॉनीटर में चित्र काफी स्पष्ट होगा।
III) रिफरेश रेट (Refresh Rate) एक सेकण्ड में कम्प्यूटर का मॉनीटर जितनी बार रिफरेश होता है, वह संख्या उसकी रिफरेश रेट कहलाती है। ज्यादा-से-ज्यादा रिफरेश करने पर स्क्रीन पर चित्र ज्यादा अच्छे और स्पष्ट दिखाई देते है।
कुछ प्रमुख प्रयोग में आने वाले मॉनीटर निम्न हैं
(i) कैथोड रे ट्यूब (Cathode Ray Tube-CRT)
यह एक आयताकार बॉक्स की तरह दिखने वाला मॉनीटर होता है। इसे डेस्कटॉप कम्प्यूटर के साथ आउटपुट देखने के लिए प्रयोग करते हैं। यह आकार में बड़ा तथा भारी होता है।
इसकी स्क्रीन में पीछे की तरफ फॉस्फोरस की एक परत लगाई जाती है। इसमें एक इलेक्ट्रॉन गन (Electron gun) होती है। CRT में एनालॉग डेटा को इलेक्ट्रॉन गन के द्वारा मॉनीटर की स्क्रीन पर भेजा जाता है। इलेक्ट्रॉन गन एनालॉग डेटा को इलेक्ट्रॉन्स में परिवर्तित करता है तथा इलेक्ट्रॉन ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज प्लेट्स के बीच में होते हुए फॉस्फोरस स्क्रीन पर टकराती है। इलेक्ट्रॉन स्क्रीन पर जिस जगह टकराती है उस जगह का फॉस्फोरस चमकने लगता है और चित्र दिखाई देने लगता है।
(ii) एलसीडी (Liquid Crystal Display-LCD)
LCD एक प्रकार की अधिक प्रयोग में आने वाली आउटपुट डिवाइस है। यह CRT की अपेक्षा काफी हल्का किन्तु महँगा आउटपुट डिवाइस है। इसका प्रयोग लैपटॉप में, नोटबुक में, पर्सनल कम्प्यूटर में, डिजिटल घड़ियों आदि में किया जाता
एलसीडी
है। LCD में दो प्लेट होती हैं। इन प्लेटों के बीच में एक विशेष प्रकार का द्रव (Liquid) भरा जाता है। है तो प्लेट्स के अन्दर के द्रव जिससे चित्र दिखाई देने लगता है। जब प्लेट के पीछे से प्रकाश निकलता एलाइन (Align) होकर चमकते हैं,
(iii) एलईडी (Liquid/Light Emitted Diode) LED एक प्रकार की
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है। यह एक आउटपुट डिवाइस है जिसका प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त आउटपुट को देखने के लिए करते हैं। यह आजकल घरों में टेलीविजन की तरह प्रयोग किया जाता है। इसके अन्दर छोटे-छोटे LEDs (Light Emitted Diodes) लगे होते हैं।
एलईडी मॉनीटर
जब विद्युत धारा इन LEDs से गुजरती है तो ये LEDs चमकने लगते हैं और चित्र LED के स्क्रीन पर दिखाई देने लगता है। LEDs मुख्य रूप से लाल प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। किन्तु आजकल LEDs लाल, हरा और नीला (Red, Green and Blue (RGB)) प्रकाश भी उत्पन्न करते हैं। यह सफेद प्रकाश भी उत्पन्न कर सकते हैं। इन सभी रंगो के संयोग से विभिन्न रंग के चित्र LED में दिखाई देते हैं।
कंप्यूटर
(iv) 3D मॉनीटर 3D मॉनीटर एक आउटपुट डिवाइस है, जिसका प्रयोग आउटपुट को तीन डायमेन्शन (Three Dimension-3D) में देखने के लिए करते हैं। यह दो डायमेन्शन (Two Dimension-2D) मॉनीटर की अपेक्षा ज्यादा स्पष्ट और साफ चित्र दिखाता है।
यदि चित्र को 3D मॉनीटर में देखते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि यह चित्र बिल्कुल वास्तविक चित्र हैं।
3D मॉनीटर
(v) TFT (Thin-Film-Transistor) TFT और एक्टिव मैट्रिक्स LCD (AMLCD) एक प्रकार की आउटपुट डिवाइस है। TFT में एक पिक्सल को कण्ट्रोल करने के लिए एक से चार ट्रांजिस्टर लगे होते हैं। ये ट्रांजिस्टर पैसिव मैट्रिक्स की अपेक्षा स्क्रीन को काफी तेज, चमकीला, ज्यादा कलरफुल बनाते हैं। इस आउटपुट डिवाइस की मुख्य बात ये हैं कि हम इसमें बने चित्र को विभिन्न कोणों (Angles) से भी देख सकते हैं। जबकि अन्य मॉनीटर में यदि विभिन्न कोणों (Angles) से चित्र देखने पर चित्र स्पष्ट दिखाई नहीं देते हैं। TFT अन्य मॉनीटर्स की अपेक्षा महँगा, लेकिन काफी अच्छी क्वालिटी का चित्र डिस्प्ले (Display) करने वाला आउटपुट डिवाइस है।
2. प्रिण्टर्स (Printers)
प्रिण्टर्स एक प्रकार का आउटपुट डिवाइस है। इसका प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त डेटा और सूचना को किसी कागज पर प्रिण्ट करने के लिए करते हैं। यह ब्लैक और ह्वाइट (Black and White) के साथ-साथ कलर डॉक्यूमेण्ट को भी प्रिण्ट कर सकता है। किसी भी प्रिण्टर की क्वालिटी उसकी प्रिण्टिग की क्वालिटी पर निर्भर करती है अर्थात् जितनी अच्छी प्रिण्टिग क्वालिटी होगी, प्रिण्टर उतनी ही अच्छा माना जाएगा। किसी प्रिण्टर की गति कैरेक्टर प्रति सेकण्ड (Character Per Second- CPS) में, लाइन प्रति मिनट (Line Per Minute-LPM) में और पेजेज प्रति मिनट (Pages Per Minute-PPM) में मापी जाती है।
किसी प्रिण्टर की क्वालिटी डॉट्स प्रति इंच (Dots Per Inch-DPI) में मापी जाती है। अर्थात् पेपर पर एक इंच में जितने ज्यादा-से-ज्यादा बिन्दु होंगे, प्रिण्टिग उतनी ही अच्छी होगी।
प्रिण्टर को दो भागों में बाँटा गया है।
(i) इम्पैक्ट प्रिण्टर (Impact Printer)
(ii) नॉन-इम्पैक्ट प्रिण्टर (Non-Impact Printer)
(i) इम्पैक्ट प्रिण्टर (Impact Printer) यह प्रिण्टर टाइपराइटर की तरह कार्य करता है। इसमें अक्षर छापने के लिए छोटे-छोटे पिन या हैमर्स होते हैं। इन पिनों पर अक्षर बने होते हैं। ये पिन स्याही से लगे हुए रिबन (Ribbon) और उसके बाद पेपर पर प्रहार करते है, जिससे अक्षर पेपर पर छप जाते हैं। इम्पैक्ट प्रिण्टर एक बार में एक कैरेक्टर या एक लाइन प्रिण्ट कर सकता है। इस प्रकार के प्रिण्टर ज्यादा अच्छी क्वालिटी की प्रिण्टिग नहीं करते हैं।
ये प्रिण्टर दूसरे प्रिंण्टर्स की तुलना में सस्ते होते हैं और प्रिण्टिग के दौरान आवाज अधिक करते हैं, इसलिए इनका प्रयोग कम होता है।
इम्पैक्ट प्रिण्टर चार प्रकार के होते हैं
(a) डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर्स (Dot Matrix Printers) डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर में पिनो की एक पंक्ति होती है जो कागज के ऊपरी सिरे पर रिबन पर प्रहार करते हैं। जब पिन रिबन पर प्रहार करते हैं तो डॉट्स (Dots) का एक समूह एक मैट्रिक के रूप में कागज पर पड़ता है, जिससे अक्षर या चित्र छप जाते हैं। इस प्रकार के प्रिण्टर को पिन प्रिण्टर भी कहते हैं। डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर एक बार में एक डॉट्स मैट्रिक्स प्रिण्टर्स ही कैरेक्टर प्रिण्ट करता है। यह अक्षर या चित्र को डॉट्स के पैटर्न (Pattern) में प्रिण्ट करते हैं अर्थात कोई केरेक्टर या चित्र बहुत सारे डॉट्स को मिलाकर प्रिण्ट किए जाते हैं। ये काफी धीमी गति से प्रिण्ट करते हैं। तथा ज्यादा आवाज करते हैं। जिससे इसे कम्प्यूटर के साथ कम प्रयोग करते हैं।
b) डेजी व्हील प्रिण्टर्स (Daisy Wheel Printers) (डेजी व्हील प्रिण्टर्स में कैरेक्टर की छपाई टाइपराइटर की तरह होती है। यह डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर की अपेक्षा अधिक रिजोल्यूशन की प्रिण्टिग करता है तथा इसका आउटपुट, डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर की अपेक्षा ज्यादा विश्वसनीय (Reliable) होता है।
(c) लाइन प्रिण्टर्स (Line Printers) इस प्रकार के प्रिण्टर के द्वारा एक बार में पूरी एक लाइन प्रिण्ट होती है। भी एक प्रकार के इम्पैक्ट प्रिण्टर होते हैं जो कागज पर दाब डालकर एक बार में पूरी एक लाइन प्रिण्ट करते हैं, इसीलिए इन्हें लाइन प्रिण्टर कहते हैं। इनकी प्रिण्टिंग की क्वालिटी ज्यादा अच्छी नहीं होती है, लेकिन प्रिण्टिग की गति काफी तेज होती है।
d) ड्रम प्रिंटर ये एक प्रकार के लाइन प्रिंटर होते हैं, जिनमें एक बेलनाकार ड्रम लगातार घूमता रहता है रहता है। इस ड्रम में अक्षर उभरे हुए होते हैं। ड्रम और कागज के बीच में एक स्याही से लगी हुई रिबन होती हैं। जिस स्थान पर अक्षर छापना होता है, उस स्थान पर हैमर कागज के साथ- साथ रिबन पर प्रहार करता है। रिबन पर प्रहार होने से रिबन ड्रम में लगे अक्षर पर दबाव डालता है, जिससे अक्षर कागज पर छप जाता है। >
ड्रम प्रिंटर (ii) नॉन-इम्पैक्ट प्रिण्टर (Non-Impact Printer) ये प्रिण्टर कागज पर प्रहार नहीं करतें, बल्कि अक्षर या चित्र प्रिण्ट करने के लिए स्याही की फुहार कागज पर छोड़ते हैं। नॉन-इम्पैक्ट प्रिण्टर प्रिण्टिग में इलेक्ट्रोस्टैटिक केमिकल और इंकजेट तकनीकी का प्रयोग करते हैं। इसके द्वारा उच्च क्वालिटी के ग्राफिक्स और अच्छी किस्म के अक्षरों को छापा जाता है। ये प्रिण्टर इम्पैक्ट की तुलना में महँगे होते हैं, किन्तु इनकी छपाई इम्पैक्ट प्रिण्टर की अपेक्षा ज्यादा अच्छी होती है।
नॉन-इम्पैक्ट प्रिण्टर निम्न प्रकार के होते हैं
(a) इंकजेट प्रिण्टर (Inkjet Printer) इंकजेट प्रिण्टर में कागज पर स्याही की फुहार द्वारा छोटे- छोटे बिन्दु डालकर छपाई की जाती है, इनकी छपाई की गति 1 से 4 पेज प्रति मिनट होती है। इनकी छपाई की गुणवत्ता भी अच्छी होती है।
ये विभिन्न प्रकार के रंगो द्वारा अक्षर और चित्र
छाप सकते हैं। इन प्रिण्टरों में छपाई के लिए A4 आकार के पेपर का प्रयोग करते हैं। इंकजेट प्रिण्टर में रीबन के स्थान पर गीली स्याही से भरा हुआ कार्टिज (Cartridge) लगाया जाता है। यह कार्टिज एक जोड़े के रूप में होता है। एक में काली (Black) स्याही भरी जाती है तथा दूसरे में मैजेण्टा (Magenta), पीली (Yellow) और सियान रंग (Green-Bluish) की स्याही भरी जाती है। काट्रिज ही इस प्रिण्टर का हेड (Head) होता है जो कागज पर स्याही की फुहार छोड़कर छपाई करता है। इंकजेट प्रिण्टर को प्रायः समानान्तर पोर्ट (Parallel Port) के माध्यम से कम्प्यूटर से जोड़ा जाता है। वैसे आजकल USB पोर्ट वाले इंकजेट प्रिण्टर प्रयोग किए जाते हैं। इसमें रोज एक या दो पेज प्रिण्ट करना चाहिए, जिससे इसका काट्रिज गीला रहता है और बेकार नहीं होता है।
(b) थर्मल प्रिण्टर (Thermal Printer) यह पेपर पर अक्षर छापने के लिए ऊष्मा का प्रयोग करता है। ऊष्मा के द्वारा स्याही को पिघलाकर कागज पर छोड़ते हैं, जिससे अक्षर या चित्र छपते हैं। फैक्स मशीन भी एक प्रकार का थर्मल प्रिण्टर है। यह अन्य प्रिन्टर की अपेक्षा धीमा और महँगा होता है और इसमें प्रयोग करने के लिए एक विशेष प्रकार के पेपर की जरूरत पड़ती है जो केमिकली ट्रीटेड पेपर (Chemically Treated Paper) होता है।
(सी) लेजर प्रिंटर
लेजर प्रिण्टर के द्वारा उच्च गुणवत्ता (Quality) के अक्षर और चित्र छापे जाते है। ये विभिन्न प्रकार के और विभिन्न स्टाइल के अक्षर को छाप सकते हैं।
इसकी छपाई की विधि फोटोकॉपी मशीन से मिलती-जुलती है। इसमें
कम्प्यूटर से भेजा गया डेटा लेजर किरणों की सहायता से इसके ड्रम पर चार्ज उत्पन्न कर देता है। इसमें एक टोनर होता है जो चार्ज के कारण ड्रम पर चिपक जाता है। जब यह ड्रम घूमता है और इसके नीचे से कागज निकलता है, तो टोनर कागज पर अक्षरों या चित्रों का निर्माण करता है। ये प्रिण्टर अपनी क्षमता के अनुसार, 1 इंच में 300 से 1200 बिन्दुओं की सघनता (Density) द्वारा छपाई कर सकते हैं। ये एक मिनट में 5 से 24 पेज तक छाप सकते हैं। ये इम्पैक्ट प्रिण्टर से ज्यादा महँगे होते हैं।
(d) इलेक्ट्रो मैग्नेटिक प्रिण्टर (Electro Magnetic Printer) इलेक्ट्रो मैग्नेटिक प्रिण्टर या इलेक्ट्रो फोटोग्राफिक प्रिण्टर बहुत तेज गति से छपाई करते हैं। ये प्रिण्टर्स, पेज प्रिण्टर (जो एक बार में पूरा पेज प्रिण्ट करते हों) की श्रेणी में आते हैं। ये प्रिण्टर किसी डॉक्यूमेण्ट में एक मिनट के अन्दर 20,000 लाइनें प्रिण्ट कर सकते हैं अर्थात् 250 पेज प्रति मिनट की दर से छपाई कर सकते हैं। इसका विकास पेपर कॉपियर तकनीक के माध्यम से किया गया था।
(e) इलेक्ट्रो स्टैटिक प्रिण्टर (Electro Static Printer) इस प्रिण्टर का प्रयोग सामान्यतः बड़े फॉर्मेट को प्रिण्टिंग के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग ज्यादातर बड़े प्रिटिंग प्रेस में किया जाता है, क्योंकि इनकी गति काफी तेज होती है तथा प्रिण्ट करने में खर्च कम आता है।
3. प्लॉटर (Plotter)
प्लॉटर एक आउटपुट डिवाइस है, जिसका प्रयोग बड़ी ड्राइंग या चित्र जैसे कि कंन्स्ट्रक्शन प्लान्स (Construction Plans), मैकेनिकल वस्तुओं की ब्लूप्रिण्ट, AUTOCAD, CAD/CAM आदि के लिए करते हैं। इसमें ड्रॉइंग बनाने के लिए पेन,
प्लॉटर
पेन्सिल, मार्कर आदि राइटिंग टूल का प्रयोग होता है। यह प्रिण्टर की तरह होता है। इसमें एक समतल चौकोर सतह पर कागज लगाया जाता है। इस सतह से कुछ ऊपर एक ऐसी छड़ (Rod) होती है, जो कागज के एक सिरे से दूसरे सिरे तक चल सकती है। इस छड़ पर अलग-अलग रंगों के दो या तीन पेन लगे होते हैं, जो छड़ पर आगे-पीछे सरक सकते हैं। इस प्रकार छड़ और पेनों की सम्मिलित हलचल से समतल सतह के किसी भी भाग में कागज पर चिन्ह या चित्र बनाया जा सकता है। इनके द्वारा छपाई अच्छी होती है, परन्तु ये बहुत धीमे होते हैं तथा मूल्य भी अपेक्षाकृत अधिक होता है। लेजर प्रिण्टरों के आ जाने के बाद इनका प्रयोग लगभग समाप्त हो गया है।
प्लॉटर दो प्रकार के होते है।
(i) फ्लैट बैड प्लॉटर (Flat Bed Plotter) ये प्लॉटर साइज में छोटे होते हैं तथा इसे आसानी से मेज पर रखकर प्रिण्टिंग की जा सकती है। इसमें जो पेपर प्रयोग होता है, उनका आकार (Size) सीमित होता है।
(ii) ड्रम प्लॉटर (Drum Plotter) ये साइज में काफी बड़े होते हैं तथा इसमें प्रयुक्त पेपर की लम्बाई असीमित होती है। इसमें पेपर का एक रोल (Roll) प्रयोग किया जाता है।
स्पीकर (Speaker)
यह एक प्रकार की आउटपुट डिवाइस है जो कम्प्यूटर से प्राप्त आउटपुट को आवाज के रूप में सुनाती है। यह कम्प्यूटर से डेटा विद्युत धारा (Electric Current) के रूप में प्राप्त करता है। इसे सीपी यू (CPU) से जोड़ने के
स्पीकर
लिए साउण्ड कार्ड की जरूरत पड़ती है। यही साउण्ड कार्ड साउण्ड उत्पन्न करता है। इसका प्रयोग गाने सुनने में, संवाद आदि में करते हैं। कम्प्यूटर स्पीकर वह स्पीकर होता है जो कम्प्यूटर में आन्तरिक या बाह्य रूप से लगा होता है।
4. हेड फोन्स (Head Phones)
हेड फोन्स एक प्रकार की आउटपुट डिवाइस है। जिसमें लाउड स्पीकर का एक जोड़ा होता है तथा इसकी बनावट ऐसी होती है कि ये सिर पर बेल्ट की तरह पहना जा सकता है तथा दोनों स्पीकर मनुष्य के कान के ऊपर आ जाते हैं।
हेड फोन
इसीलिए इसकी आवाज सिर्फ इसे पहनने वाला व्यक्ति ही सुन सकता है। किसी-किसी हैड फोन के साथ माइक भी लगा होता है, जिससे सुनने के साथ-साथ बात भी की जा सकती है।
इस उपकरण का प्रयोग प्रायः टेलीफोन ऑपरेटरों, कॉल सेण्टर ऑपरेटरों, कमेण्टेटरों आदि द्वारा किया जाता है। इसे स्टेरियों फोन्स, हेड सेट या कैन्स के नाम से भी जाना जाता है।
5. प्रोजेक्टर (Projector)
यह एक प्रकार का आउटपुट डिवाइस है, जिसका प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त सूचना या डेटा को एक बड़ी स्क्रीन पर देखने के लिए करते हैं। इसकी सहायता से एक समय में बहुत सारे लोग एक समूह में बैठकर कोई परिणाम देख सकते हैं। इसका प्रयोग क्लास रूम ट्रेनिंग या एक बड़े कॉन्फ्रेन्स हॉल जिसमें ज्यादा संख्या में दर्शक हों, जैसी जगहों पर किया जाता है। इसके द्वारा छोटे चित्रों को बड़ा करके सरलतापूर्वक देखा जा सकता है। यह एक प्रकार का अस्थायी आउटपुट डिवाइस है।
इनपुट/आउटपुट पोर्ट (Input/Output-I/O Port)
पेरिफेरल डिवाइसेज को कम्प्यूटर से जोड़ने के लिए जिस माध्यम का प्रयोग होता है, उन्हें इनपुट/आउटपुट पोर्ट (Input/Output Port) कहते हैं। यह एक – बाह्य (External) इण्टरफेस होता है, जिसमें इनपुट/आउटपुट आउटपुट डिवाइस; जैसे- प्रिण्टर, मोडम (Modem) और जॉयस्टिक आदि को कम्प्यूटर से जोड़ते हैं।
इनपुट/आउटपुट पोर्ट निम्न प्रकार के होते हैं
1. पैरेलल पोर्ट (Parallel Port) पैरेलल पोर्ट एक माध्यम होता है, जिसमें आठ या उससे अधिक तारों (Wires) को जोड़ सकते हैं। इसमें आठों तारों से एक साथ डेटा ट्रान्सफर होता है। इसी वजह से इसकी डेटा स्थानान्तरण (Transmission) की स्पीड काफी तेज होती है। इसका प्रयोग कम्प्यूटर से प्रिण्टर को जोड़ने के लिए किया जाता है।
2. सीरियल पोर्ट (Serial Port) सीरियल पोर्ट के द्वारा एक बार में एक ही बिट डेटा भेजा जा सकता है। इसके द्वारा काफी धीमी गति से डेटा स्थानान्तरण होता है। इसका प्रयोग मोडम (Modem), प्लॉटर, बार कोड रीडर आदि को कम्प्यूटर से जोड़ने के लिए करते हैं। इस पोर्ट को कम्यूनिकेशन पोर्ट अथवा कॉम (COM) भी कहा जाता है।
3. यूनिवर्सल सीरियल बस (Universal Serial Bus-USB) यह सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला बाह्य पोर्ट है जो लगभग सभी कम्प्यूटरों में लगा होता है। सामान्यतः दो से चार USB पोर्ट कम्प्यूटर में लगे होते हैं। USB में प्लग (Plug) और प्ले (Play) फीचर होते हैं जो किसी डिवाइस को कम्प्यूटर से जोड़ने तथा चलाने में सहायक होते हैं। एक सिंगल USB पोर्ट में 127 डिवाइसेज को जोड़ा (Connect) जा सकता है।
4.
फायर वायर (Fire Wire) इसका प्रयोग ऑडियों, वीडियो या मल्टीमीडिया डिवाइसेज़ जैसे की वीडियो कैमरा आदि को जोड़ने के लिए किया जाता है। यह एक महँगी तकनीक है, जिसका प्रयोग बड़ी मात्रा में डेटा ट्रान्सफर करने के लिए करते हैं। हार्ड डिस्क ड्राइव और नई DVD ड्राइव को फायर वायर के द्वारा कम्प्यूटर से कनेक्ट किया जाता है। इसके द्वारा 400 MB/सेकण्ड की दर से डेटा स्थानान्तरित किया जा सकता है।
इन्हें भी जानें
- मॉडम (Modem) का प्रयोग डेटा को प्राप्त (Receive) तथा प्रेषित करने में किया जाता है।
- कम्प्यूटर को चलाए जाने के लिए आवश्यक युक्तियों को स्टैण्डर्ड युक्तियाँ कहा जाता है, जैसे-कीबोर्ड, फ्लॉपी ड्राइव, हार्ड डिस्क आदि।
- मॉनीटर की रिफ्रेश रेट हर्ट्ज में नापी जाती है। मजबूत चुम्बकीय क्षेत्र बनने के कारण मॉनीटर की स्क्रीन काली या रंगहीन हो जाती है। जो एक वायरस की तरह कार्य करता है। अतः मॉनीटर का प्रयोग करते समय सभी चुम्बकीय उपकरण हटा देने चाहिए।
- ग्राफिक डिस्प्ले यूनिट मॉनीटर अल्फा न्यूमेरिक अक्षरो के साथ-साथ ग्राफ्स एवं डायग्राम्स को भी प्रदर्शित कर सकते हैं।
- कम्प्यूटर की मैमोरी किसी कम्प्यूटर के उन अवयवों साधनों तथा रिकॉर्ड करने वाले माध्यमों को कहा जाता है, जिनमें प्रोसेसिंग में उपयोग किए जाने वाले अंकीय डेटा (Digital Data) को किसी समय तक रखा जाता है। कम्प्यूटर मैमोरी आधुनिक कम्प्यूटरों केमूल कार्यों में से एक अर्थात् सूचना भण्डारण (Information Retention) की सुविधा प्रदान करती है।