ऑपरेटिंग सिस्टम कुछ विशेष प्रोग्रामों का ऐसा व्यवस्थित समूह है जो किसी कम्प्यूटर के सम्पूर्ण क्रियाकलापों को नियन्त्रित करता है। यह कम्प्यूटर के साधनों के उपयोग पर नज़र रखने और व्यवस्थित करने में हमारी सहायता करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम आवश्यक होने पर अन्य प्रोग्रामों को चालू करता है। वास्तव में यह उपयोगकर्ता और कम्प्यूटर के हार्डवेयर के बीच इण्टरफेस का कार्य करता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम की परिभाषाएँ (Definition of Operating System)
ऑपरेटिंग सिस्टम प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं
ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों का समूह है जो मानव, एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर और कम्प्यूटर हार्डवेयर के बीच संवाद स्थापित करता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा प्रोग्राम है, जो कम्प्यूटर के विभिन्न अंगो को निर्देश देता है कि किस प्रकार से प्रोसेसिंग का कार्य सफल होगा।
ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा सॉफ्टवेयर है, जो यूजर एवं कम्प्यूटर हार्डवेयर के बीच एक माध्यम (Interface) की भाँति कार्य करता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रमुख कार्य (Main Functions of Operating System)
ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर के सफल संचालन की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके प्रमुख कार्य चार प्रकार के होते हैं
1. प्रोसेसिंग प्रबन्धन (Processing Management)
कम्प्यूटर के सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट के प्रबन्धन का कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है। यह प्रबन्धन इस प्रकार से होता है कि सभी प्रोग्राम एक-एक करके निष्पादित होते हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम सभी प्रोग्रामों के समय को सी पी यू के लिए विभाजित कर देता है।
2. मैमोरी प्रबन्धन (Memory Management)
प्रोग्राम के सफल निष्पादन के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम मैमोरी प्रबन्धन का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण कार्य करता है। जिसके अन्तर्गत कम्प्यूटर मैमोरी में कुछ स्थान सुरक्षित रखे जाते हैं। जिनका विभाजन प्रोग्रामों के मध्य किया जाता है। तथा साथ ही यह भी ध्यान में रखा जाता है कि प्रोग्रामों को मैमोरी के अलग-अलग स्थान प्राप्त हो सके।
किसी भी प्रोग्राम को इनपुट एवं आउटपुट करते समय आँकड़ों एवं सूचनाओं को अपने निर्धारित स्थान में संग्रहीत करने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम का है।
3. इनपुट-आउटपुट युक्ति प्रबन्धन (Input-Output Device Management)
डेटा को इनपुट यूनिट से पढ़कर मैमोरी में उचित स्थान पर संग्रहीत करने एवं प्राप्त परिणाम को मैमोरी से आउटपुट यूनिट तक पहुँचाने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम का ही होता है। प्रोग्राम लिखते समय कम्प्यूटर को केवल यह बताया जाता है कि हमें क्या इनपुट करना है और क्या आउटपुट लेना है, बाकी का कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है।
4. फाइल प्रबन्धन (File Management)
ऑपरेटिंग सिस्टम फाइलों को एक सुव्यवस्थित ढंग से किसी डायरेक्टरी में संग्रहीत करने की सुविधा प्रदान करता है। किसी प्रोग्राम के निष्पादन के समय इसे सेकण्डरी मैमोरी से पढ़कर प्राइमरी मैमोरी में डालने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है।
इन्हें भी जानें
समस्त हार्डवेयर संसाधनों की क्षमता के पर्याप्त उपयोग को सुनिश्चित करने हेतु ऑपरेटिंग सिस्टम एक साधन प्रबन्धक की भाँति कार्य करता है।
हार्डवेयर की क्षमता का समुचित उपयोग सुनिश्चित करना भी ऑपरेटिंग सिस्टम का ही कार्य है।
ऑपरेटिंग सिस्टम उपयोगकर्ता को एक आसान-सा इंटरफेस प्रदान करता है, ताकि वह कम्प्यूटर का प्रयोग सरलतापूर्वक कर सके।
कम्प्यूटर पर कार्य करने वाले उपयोगकर्ता का लेखा-जोखा व्यवस्थित रखने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है एवं इस बात का ध्यान रखता है कि उपयोगकर्ता के कितने समय के लिए कम्प्यूटर पर कार्य किया है।
ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार (Types of Operating System)
1. बैच प्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Batch Processing Operating System)
इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में एक प्रकार के सभी कार्यों को एक (Batch) के रूप में संगठित करके साथ में क्रियान्वित किया जाता है। इस कार्य के लिए बैच मॉनीटर सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग ऐसे कार्यों के लिए किया जाता है, जिनमें उपयोगकर्ता के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती। इस ऑपरेटिंग सिस्टम में किसी प्रोग्राम के क्रियान्वन के लिए कम्प्यूटर के सभी संसाधन उपलब्ध रहते हैं, इसलिए समय प्रबन्धन (Time Management) की
आवश्यकता नहीं होती। ये ऑपरेटिंग सिस्टम संख्यात्मक विश्लेषण (Numerical Analysis), बिल प्रिण्टिग, पेरोल आदि में उपयोग किए जाते है।
2. सिंगल यूज़र ऑपरेटिंग सिस्टम (Single User Operating System)
इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में एक बार में केवल एक उपयोगकर्ता को ही कार्य करने की अनुमति होती है। यह सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है। उदाहरण के लिए-विण्डोज 95/NT/2000 आदि।
3. मल्टी यूज़र ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi User Operating System)
मल्टी-यूज़र ऑपरेटिंग सिस्टम एक समय में एक से अधिक उपयोगकर्ता को कार्य करने की अनुमति देता है। ये ऑपरेटिंग सिस्टम सभी उपयोगकर्ता के मध्य सन्तुलन बनाकर रखता है। प्रत्येक प्रोग्राम की संसाधन सम्बन्धी जरूरत को पूरा करता है। साथ-ही-साथ ये इस बात की भी निगरानी करता है कि किसी एक उपयोगकर्ता के साथ होने वाली समस्या दूसरे उपयोगकर्ताओं पर प्रभाव न डालें। ये ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर के संसाधनों का सर्वाधिक उपयुक्त प्रयोग करता है। उदाहरण के लिए-यूनिक्स, वीएमएस (VMS) आदि।
4. सिंगल टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Single Tasking Operating System)
सिंगल टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम में एक समय में केवल एक प्रोग्राम को ही चलाया (Run) जा सकता है। उदाहरण के लिए-पॉम (Palm) कम्प्यूटर में प्रयोग किया जाने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम।
5. मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi Tasking Operating System)
मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम में एक समय में एक से अधिक कार्यों को सम्पन्न करने की क्षमता होती है, इसमें उपयोगकर्ता आसानी से दो कार्यों के मध्य स्विच (Switch) कर सकता है। मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम को दो भागों में विभाजित किया गया है।
(i) प्रीम्पटिव ऑपरेटिंग सिस्टम (Preemptive Operating System)
इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम को कई कम्प्यूटर प्रोग्रामस तथा हार्डवेयर डिवाइसेस शेयर (Share) करते हैं तथा उनका प्रयोग करते हैं। यह अपने समस्त कम्प्यूटेशन टाइम (Computation Time) को कार्यों के मध्य बाँट देता है तथा एक पूर्वनिर्धारित मापदंड (Predefined Criteria) के आधार पर ही किसी नए कार्य का निष्पादन पूर्व कार्य के निष्पादन रोककर भी प्रारम्भ हो जाता है उदाहरण OS/2, Windows95/NT आदि।
(ii) कोऑपरेटिव मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम(सहकारी मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम)
मल्टी टास्किंग का एक सरलतम रूप होता है। इस आपरेटिंग
सिस्टम में एक प्रोग्राम तब तक CPU का प्रयोग करता है जब तक उसे आवश्यकता होती है। यदि कोई प्रोग्राम CPU का प्रयोग नहीं कर रहा है तो वह दूसरे प्रोग्राम को अस्थाई रूप से CPU को प्रयोग करने की अनुमति दे देता है। उदाहरण Mac OS, MS-Window 3-X आदि।
6. टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Time Sharing Operating System)
इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में, एक साथ एक से अधिक उपयोगकर्ता या प्रोग्राम कम्प्यूटर के संसाधनों का प्रयोग करते हैं। इस कार्य में, कम्प्यूटर अपने संसाधनों के प्रयोग हेतु प्रत्येक उपयोगकर्ता या प्रोग्राम को समय का एक छोटा भाग आवण्टित करता है जिसे टाइम स्लाइस या क्वांटम कहते है। इस टाइम स्लाइस में यदि कोई उपयोगकर्ता या प्रोग्राम किसी संसाधन का प्रयोग कर रहा है तो दूसरा उपयोगकर्ता या प्रोग्राम उस संसाधन के प्रयोग हेतु प्रतीक्षा करता है, लेकिन यह समय इतना छोटा होता है कि अगले उपयोगकर्ता या प्रोग्राम को यह महसूस नहीं होता कि उसने प्रतीक्षा की है। उपयोगकर्ता यह समझता है कि वही एक मात्र उपयोगकर्ता है जो कम्प्यूटर का प्रयोग कर रहा है। उदाहरण के रूप में मेन फ्रेम कम्प्यूटर जिसमें एक समय में एक ही कम्प्यूटर पर एक से अधिक उपयोगकर्ता कार्य करते है, लेकिन फिर भी प्रत्येक व्यक्ति यही समझता है कि वही एक मात्र उपयोगकर्ता है।
इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में सयम प्रबन्धन (Time Management) की आवश्यकता होती है। इस ऑपरेटिंग सिस्टम में मैमोरी का सही प्रबन्ध आवश्यक होता है, क्योंकि कई प्रोग्राम एक साथ मुख्य मैमोरी में उपस्थित होते हैं इस व्यवस्था में सभी प्रोग्राम टाइम स्लाइस के आधार पर मुख्य मैमोरी में बारी-बारी से लाए जाते हैं तथा टाइम स्लाइस पूर्ण होने पर मैमोरी में भेज दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया को स्वैपिंग (Swaping) कहते हैं। यदि किसी प्रोग्राम के सम्पन्न होने में टाइम स्लाइस से अधिक समय लगता है। तो उसे रोककर अन्य प्रोग्राम्स को क्रियान्वित (Execute) किया जाता है।
7. रीयल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम (Real Time Operating System)
रीयल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम होता है, जिसमें रीयल टाइम एप्लीकेशन्स का क्रियान्वन किया जाता है। जैसे-एयरक्रॉफ्टों में प्रयोग होने वाला ऑटो पायलेट मैकेनिज़्म (Auto Pilot Mechanism)। इसमें एक प्रोग्राम के आउटपुट को दूसरे प्रोग्राम के आउटपुट की तरह प्रयोग किया जा सकता है, इस कारण पहले प्रोग्राम के क्रियान्वयन में देरी से दूसरे प्रोग्राम का क्रियान्वयन और परिणाम रूक सकता है। रीयल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम में किसी भी दिए गए कार्य को पूरा करने की एक डेडलाइन दी गई होती है तथा इसी निर्धारित समय में उस कार्य को पूरा करना होता है। रीयल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम को दो भागों में बाँटा गया है
(i) हार्ड रीयल टाइम सिस्टम ये सिस्टम किसी महत्वपूर्ण कार्य को समय पर पूरा करने की गारण्टी देता है। समय पर कार्य पूरा न होने की स्थिति में प्रोग्राम का निष्पादन फेल हो जाता है। उदाहरण के लिए- एयरक्रॉफ्ट कण्ट्रोल सिस्टमस, पेसमेकर्स आदि।
(ii) सॉफ्ट रीयल टाइम सिस्टम इस सिस्टम में भी किसी कार्य को पूरा करने के लिए एक डेडलाइन दी जाती है, किन्तु इस प्रकार के सिस्टम में कार्य का निष्पादन डेडलाइन से पहले और बाद में भी पूरा हो सकता है परन्तु इस स्थिति में कार्य का निष्पादन फेल नहीं होता।
कुछ महत्वपूर्ण ऑपरेटिंग सिस्टम (Some Important Operating System)
यूनिक्स (Unix)
यूनिक्स एक मल्टी टास्किंग व मल्टी उपयोगकर्ता ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसे वर्ष 1969 में विकसित किया गया। इसे वर्ष 1973 में सी (C) भाषा में लिखा गया है,
किन्तु प्रारम्भ में इसे असेम्बली भाषा में लिखा गया था इसे वर्ष 1969 में AT&T Bell प्रयोगशाला में विकसित किया गया था। इसका पूरा नाम यूनिप्लेकस इन्फॉर्मेशन कम्प्यूटर सिस्टम है। इस ऑपरेटिंग सिस्टम को सर्वर तथा वर्क-स्टेशन दोनों में प्रयोग किया जा सकता है। इसमें डेटा प्रबन्धन का कार्य कर्नल (Kernal) द्वारा होता है। इस ऑपरेटिंग सिस्टम को इंस्टॉल व सेटअप करना कठिन होता है, किन्तु इस ऑपरेटिंग सिस्टम के इंस्टॉल होने पर कम्प्यूटर की क्षमता (Performance) बहुत बढ़ जाती है।
लाइनक्स (Linux)
यह ऑपरेटिंग सिस्टम वर्ष 1991 में लाइन्स टोरवॉल्डस (Lines Torvalds) द्वारा विकसित किया गया था। इसका प्रयोग मुख्यतः सर्वर के लिए होता है। ये ऑपरेटिंग सिस्टम यूनिक्स पर आधारित है। ये एक ऑपन सोर्स सॉफ्टवेयर है तथा सभी प्रकार के कम्प्यूटर पर चल सकता है।
सोलेरिस (Solaris)
इस ऑपरेटिंग सिस्टम का विकास सन माइक्रोसिस्टम द्वारा वर्ष 1993 में किया गया था। किन्तु बाद में वर्ष 2010 में इस कम्पनी को ओरेकल (Oracle) कॉर्पोरेशन के द्वारा अधिगृहीत कर लिया गया, जिसके बाद इस सोलेरिस को ओरेकल सोलेरिस के नाम से जाना जाने लगा है। ये ऑपरेटिंग सिस्टम, सिस्टम मैनेजमेण्ट तथा नेटवर्क के कार्यों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
भारत ऑपरेटिंग सिस्टम सॉल्यूशंस (भारत ऑपरेटिंग सिस्टम सॉल्यूशंस-बीओएसएस)
इस ऑपरेटिंग सिस्टम को C-DAC (Centre of Development of Advanced Computing) द्वारा विकसित किया गया था। ये ऑपन सॉर्स सॉफ्टवेयर है। इस ऑपरेटिंग सिस्टम को विशेष तौर पर भारतीय क्षेत्र में प्रयोग करने के लिए बनाया गया है। जीएनयू/लाइनक्स वर्ज़न 5.0 (GNU Linux Version 5.0) इस ऑपरेटिंग सिस्टम का सबसे नवीनतम संस्करण है।
एम एस डॉस (MS DOS-Microsoft Disk Operating System)
यह एक सिंगल यजर ऑपरेटिंग सिस्टम है। यह माइक्रोसॉफ्ट द्वारा विकसित ऑपरेटिंग सिस्टम यह एक नॉन ग्राफिकल (गैर-सुचित्रित), कमाण्ड लाइन ऑपरेटिंग सिस्टम है। यह ऑपरेटिंग सिस्टम यूज़र फ्रेंडली नहीं होता, क्योंकि इसमें कमाण्ड याद रखनी होती है। अब डॉस ज्यादा प्रयोग में नहीं आता, क्योंकि यह ग्राफिकल सुविधा प्रदान नहीं करता।
एम एस विण्डोज़ (MS Windows)
यह माइक्रोसॉफ्ट द्वारा विकसित ग्राफिकल यूज़र इण्टरफेस OS है। इसके विभिन्न संस्करण; जैसे- विण्डोज़- 95/98/XP/Vista आदि बाज़ार में उपलब्ध हैं। यह एक यूज़र फ्रेंडली ऑपरेटिंग सिस्टम है तथा इसमें कार्य करना अत्यन्त सरल है।
बूटिंग (Booting)
कम्प्यूटर को स्टार्ट या रीस्टार्ट करने की प्रक्रिया को बूटिंग कहते हैं। वास्तव में बूटिंग वह प्रक्रिया है जब ऑपरेटिंग सिस्टम हार्ड डिस्क से कम्प्यूटर की रैम मे ‘लोड (Load) होता है।
बूटिंग के प्रकार (Types of Booting)
बूटिंग दो प्रकार की होती हैं वार्म बूटिंग और कोल्ड बूटिंग।
जब कम्प्यूटर को स्टार्ट किया जाता है तो उसे कोल्ड (Cold) बूटिंग तथा जब पहले से ही स्टार्ट कम्प्यूटर को रीस्टार्ट करते हैं तो उसे वार्म (Warm) बूटिंग कहा जाता है।
मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम
कम्प्यूटर के अतिरिक्त ऑपरेटिंग सिस्टम मोबाइल्स में भी प्रयोग किए जाते है। इस प्रकार स्मार्ट फोन, टेबलेट्स और डिजिटल मोबाइल युक्तियों में प्रयुक्त होने वाले ऑपरेटिंग सिस्टम, मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाते है।
मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम मोबाइल युक्तियों (Devices) के साथ-साथ इसके विभिन्न फीचर्स (Features) को भी नियंत्रित करता है।
कुछ मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम का विवरण निम्नलिखित हैं
1. एंड्रॉइड
इस ऑपरेटिंग सिस्टम को गूगल द्वारा 2007 में प्रस्तुत किया गया था। ये लाइनक्स पर आधारित ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसे प्रमुख रूप से टच स्क्रीन मोबाइलों जैसे- टैबलेट, स्मार्ट फोन आदि के लिए बनाया गया है। एन्ड्रॉइड का नवीनतम संस्करण किटकैट है, जिसे जनवरी 2014 में प्रस्तुत किया गया है।
2. सिम्बियन (Symbian)
यह ऑपरेटिंग सिस्टम सिम्बियन लिमिटेडके द्वारा प्रस्तुत किया गया है। यह स्मार्ट फोनस् के लिए डिजाइन किया गया ऑपन सोर्स ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसका प्रयोग मोटोरोला, सोनी, नोकिया, सैमसंग आदि कम्पनियों के विभिन्न सेटों (Phone Sets) में किया जा रहा है।
3. आईओएस
यह एप्पल इनकॉपेरिशन के द्वारा निर्मित एक बहुत लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से एप्पल के आई-फोन (i-phone), आई-पॉड (ipod), आई-पैड (i-pad) इत्यादि में किया जाता है।
4. ब्लैकबैरी (Blackberry)
यह सबसे सुरक्षित माने जाने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है, जिसका प्रयोग ब्लैकबैरी कम्पनी के द्वारा ब्लैकबैरी फोनस् में किया जाता है। यह वैप 1.2 (WAP 1.2) को भी सपोर्ट करता है। इसका नवीनतम संस्करण ब्लैकबैरी 10 है।
एमएस डॉस (MS-DOS)
एमएस-डॉस का पूर्ण रूप है- माइक्रोसॉफ्ट डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम (Microsoft Disk Operating System)। प्रारम्भ में, एम एस-डॉस ऑपरेटिंग सिस्टम 86-DOS कहलाता था। जुलाई, 1981 में माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी ने 86-DOS मोड (Mode) के सारे राइट्स IBM से खरीद लिए और इसका नाम परिवर्तित करके एमएस-डॉस रख दिया तथा इसमें कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गये और एक नया डिस्क डायरेक्ट्री स्ट्रक्चर बनाया गया, जिसमें फाइल्स से सम्बन्धित सूचनाएँ अपडेट की गई थी। यह एक सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम है जो कमाण्ड लाइन इंटरफेस पर आधारित हैं। कुछ मुख्य कार्य (जो एम एस-डॉस को आदेश देकर कराए जा सकते हैं)
निम्नलिखित हैं (i) नई फाइलें बनाना, पुरानी फाइलों को हटाना, फाइलों के नाम रखना आदि।
(ii) सभी फाइलों की सूची (list) बना कर देना।
कमाण्ड लाइन इंटरफेस (Command Line Interface)
कमाण्ड लाइन इंटरफेस में कम्प्यूटर या सॉफ्टवेयर के साथ कमाण्डस् (निर्देशों) के द्वारा इंटरेक्शन किया जाता है। एम एस की ही तरह सीएलआई में भी केवल टेक्सट आधारित कमाण्डस् के द्वारा ही कम्प्यूटर को निर्देश दिए जाते हैं। इसे करैक्टर यूजर इंटरफेस (सीयूआई) भी कहा जाता है।
कमाण्ड लाइनों का प्रयोग करने के कारण इसे कमाण्ड लाइन इंटरफेस कहा जाता है। कमाण्ड लाइन, कम्प्यूटर की डिस्प्ले स्क्रीन पर एक ऐसी जगह होती
है जिसमें यूजर के द्वारा निर्देश टाइप (Type) किए जाते हैं। अर्थात् यह कम्प्यूटर और यूजर के मध्य एक ऐसा इंटरफेस होता है जिसमें इनपुट और आउटपुट केवल टेक्स्ट के रूप में होता है।
डॉस की संरचना (Structure of DOS)
इस ऑपरेटिंग सिस्टम तथा कम्प्यूटर के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए निम्नलिखित प्रोग्रामों को आवश्यकता होती हैं
1. बूट रिकार्ड (Boot Record) यह ऑपरेटिंग सिस्टम को मेन मैमोरी में लोड (Load) करता है। यह MS-DOS का मुख्य प्रोग्राम है।
2. इनपुट/आउटपुट सिस्टम (IOS-SYS) यह प्रोग्रामों तथा हार्डवेयर के बीच इण्टरफेस प्रदान करता है।
3. MSDOS.SYS प्रोग्राम यह प्रोग्राम रूटिन (Program Routines) तथा डेटा टेबल का ऐसा समूह होता है जो उच्चस्तत्रीय प्रोग्राम (उदाहरण के लिए एप्लीकेशन प्रोग्राम) प्रदान करता है।
4. Command.Com प्रोग्राम यह उपयोगकर्ता को निर्देशों (Commands) का समूह प्रदान करता है जो उपयोगकर्ता को फाइल प्रबंधन (Management) आदि की सुविधा प्रदान करता है।
कॉन्फिगरिंग डॉस (Configuring DOS)
Config.Sys, Autoexec. Bat तथा फाइल्स आपके कम्प्यूटर की कमाण्ड्स को सैट करने के लिए वातावरण प्रदान करती है
1. Config.Sys यह आपके सिस्टम को कमाण्ड्स के अनुसार एडजैस्ट करती है।
2.Autoexec.Bat यह फाइल ऑटोमैटिकली कमाण्ड लाइन में एक्जीक्यूट हो जाती है, जब सिस्टम को ऑन किया जाता है।
एमएस-डॉस कमाण्ड्स (MS-DOS Commands)
एमएस-डॉस में, प्रत्येक काम के लिए विशेष कमाण्ड होती है, जिसका एक निश्चित नाम भी होता है। वास्तव में कमाण्ड उन छोटे-छोटे प्रोग्रामों का नाम हैं, जो कुछ निश्चित कामों को कराने के लिए ही लिखी गई हैं।
हैं। इसे स कहा एमएस-डॉस कमाण्ड्स दो प्रकार की होती हैं
1. इंटर्नल कमाण्ड्स (Internal Commands)
ये ऐसी कमाण्ड्स होती हैं जो एमएस-डॉस की मुख्य फाइल कमाण्ड प्रोसेसर command.com में पहले से ही स्टोर होती हैं। इन कमाण्ड्स के द्वारा हम मेन रूट की डायरेक्ट्रीज और फाइल्स देख सकते हैं।
कुछ इंटरनल कमाण्ड्स हैं- DATE, TIME, VER, VOL, DIR, COPY आदि।
2. एक्सटर्नल कमाण्ड्स (External Commands)
ये ऐसी कमाण्ड्स होती हैं जो कम्प्यूटर की मुख्य मैमोरी में उपलब्ध नहीं रहतीं, बल्कि अलग प्रोग्राम फाइलों के रूप में डिस्क पर स्टोर रहती हैं। कुछ एक्सटर्नल कमाण्ड्स हैं- CHKDSK, Tree, Attrib, Diskcopy आदि।
इन्हें भी जानें
ऑपन सोर्स सॉफ्टवेयर ऐसा सॉफ्टवेयर होता है, जिसका सोर्स कोड (Source code) मुफ्त या बहुत कम धनराशि में सभी के लिए उपलब्ध होता है। इस प्रकार के सॉफ्टवेयर के सोर्स कोड में आसानी से बदलाव (Modification) किए जा सकते हैं।
ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा सीधे हैण्डल नही किए जाने वाले अधिकांश कार्य जैसे कि डिस्क कम्प्रेशन, डिस्क डिफ्रेग्मेण्टेशन आदि यूटिलिटीज सॉफ्टवेयर की मदद से किए जाते हैं।
करनल (kernel) ऑपरेटिंग सिस्टम का वह भाग है जो सीपीयू में होने वाले कार्यों को निर्देशित करता हैं।