प्रायद्वीपीय भारत के पठार

प्रायद्वीपीय भारत के पठार

प्रायद्वीपीय भारत का शाब्दिक अर्थ होता है कि वह भूमि जो तीन तरफ से जल से घिरी हुयी है।

पश्चिम में अरब सागर
पूर्व में बंगाल की खाड़ी
दक्षिण में हिन्द महासागर

पहाड़ एवं पठार में क्या अंतर होता है ?

पहाड़ का शिखर होता है, जबकि पठार का कोई शिखर नहीं होता है। पठार पहाड़ों की तरह ऊँचे तो होते है परन्तु ये ऊपर से समतल मैदान रूपी होते हैं।
अरवाली पहाड़ियां पूर्वी तथा पश्चिमी घाट पठारों में ही आते है। इसके अलावा भारत के महत्वपूर्ण पठार अग्रलिखित हैं

  • मालवा का पठार
  • बुन्देलखण्ड का पठार
  • छोटा नागपुर का पठार
  • शिलांग का पठार
  • ढक्कन का पठार

मालवा का पठार

तीन राज्यों में फैला हुआ है-
गुजरात
मध्य प्रदेश
राजस्थान

  • निर्माण ग्रेनाइट से हुआ है।
  • काली मिट्टी से ढका हुआ है।
  • कप्यूटर ममारा – सकजरा स्टारण डिवाइस
  • भारत में आंतरिक जत परिवहन
  • ऊँचाई 500-610 मी० है।
  • इसे लावा निर्मित पठार भी कहा जाता है।
  • इसमें कुछ लावा द्वारा बनी पहाड़ियां भी है।
  • यमुना की सहायक चंबल नदी ने इसके मध्य भाग को प्रभावित किया है।
  • पश्चिमी भाग को माही नदी ने प्रभावित किया है। माही नदी अरब सागर में जाकर गिरती है।
  • पूर्वी भाग को बेतवा नदी ने प्रभावित किया है।
  • मालवा का पठार अरावली पर्वत व विन्ध्रयांचल पर्वत के बीच में है।

बुन्देलखण्ड का पठार

  • उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच में फैला हुआ है।
  • इसके निर्माण में नीस और ग्रेनाइट से हुआ है।
  • इसका ढाल दक्षिण से उत्तर और उत्तर पूर्व की तरफ है।
  • यहां कम गुणवत्ता का लौह अयस्क प्राप्त होता है।

छोटा नागपुर का पठार

  • छोटा नागपुर के पठार का महाराष्ट्र के नागपुर जिले से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसका नाम
    पुराने राजा के नाम पर पड़ा है।
  • ये पठार झारखंड में फैला हुआ है। इसका क्षेत्रफल 65००० वर्ग कि०मी० है।
  • रांची का पठार, हजारी बाग का पठार, कोडरमा का पठार सब इसी के अंदर आते हैं।
  • इस पठार की औसत ऊँचाई 700 मी० है।

शिलांग का पठार

  • गोरा, खासी और जयन्ती पहाड़ियां इसी के अंदर आती हैं।
  • इस पठार में कोयला और लौह अयस्क, और चूना पत्थर के भंडार उपलब्ध हैं।

दक्कन का पठार

  • भारत का विशालतम पठार है।
  • दक्षिण के आठ राज्यों में फैला हुआ है।
  • इस पठार का आकार त्रिभुजाकार है।
  • सतपुड़ा और विंध्याचल श्रृंखला इसकी उत्तरी सीमा है तथा पूर्व और पश्चिम में पूर्वी तथा पश्चिमी घाट स्थित हैं।
  • इसकी औसत ऊँचाई 600 मी० है।
  • इस पठार को पुनः तीन भागों में बाँटा जाता है।
  1. महाराष्ट्र का पठार-इसमें काली मृदा की आर्कियन पायी जाती है।
  2. आंध्रप्रदेश का पठार-इसे पुनः दो भागों में विभक्त किया गया है।
  3. तेलंगाना का पठार-इस पठार के लावा द्वारा निर्मित होने के कारण इसे लावा पठार के नाम से भी जाना जाता है।
  4. रायलसीमा का पठार- इसमें आर्कियन चट्टानों की अधिकता पायी जाती है।
  5. कर्नाटक का पठार-इसमें धात्विक खनिज तथा आर्कियन चट्टानों की अधिकता पापी जाती है।

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