चक्रवातों की उत्पत्ति

चक्रवातों की उत्पत्ति

भारत में चक्रवात मुख्यतः बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होते हैं तथा पश्चिम से पूर्व की दिशा में गति करते हुए पूर्वी घाट से टकराते है। परिणामस्वरूप पूर्वी घाट में वर्षा तथा विनाश का कारण बनते है।

  • सितंबर माह के अंत तक बंगाल की खाड़ी गरम हो जाती है। खाड़ी की पे ऊष्ण जल सतह उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति के लिए आदर्श दशाएं (conditions) उपलब्ध कराती है।
  • ये चक्रवात पूर्वी जेट धारा की सहायता से पूर्व से पक्षिम की तरफ बढ़ते है। तथा पूर्वी घाट में ओडिशा, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु में वर्षा करते है।
  • ये पूरी प्रक्रिया सितंबर के अंतिम सप्ताह या अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से नवंबर के प्रथम सप्ताह तक होती है।
  • उत्तर भारत के मैदान में बनारस तथा इलाहाबाद तक इन चक्रवातों से प्रभावित होता है।
  • चक्रवात में केंद्र से बाहर की तरफ वायु दाब बढ़ता रहता है। केंद्र में वायुदाब काफी निम्न होता है जिस कारण बाहर से पवनें इसे भरने के लिए अंदर की तरफ आती है। इन पवनों की गति 220 कि०मी० घण्टा तक हो सकता है। ये हवाएँ सीधे केंद्र में प्रवेश नहीं करती है बल्कि चक्राकार रूप में प्रवेश करती है।
  • उत्तरी गोलार्ध में चक्रवात में पवनों की दिशा घड़ी की दिशा के विपरीत तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की विशा के साथ होती है। चक्रवात के केंद्र में ये पवनें एक निश्चित सीमा पर आकर आपस में टकराकर ऊपर की तरण उठने लगती है। इस सीमा को चक्रवात की आँख की दीवार कहते है। तथा चक्रवात के केंद्र में चक्रवात की आँख स्थित होती है। यह एक शान्त क्षेत्र होता है।
  • इसके ऊपर का आसमान साफ होता है, जबकि आँख की दीवार के पास जब हवाएँ आपस में टकराकर ऊपर उठती है तब कपासी मेघों का निर्माण होता है। सबसे अधिक वर्षा चक्रवाल की आँख के सहारे ही होती है।
  • चक्रवात की आँख शान्त क्षेत्र होता है तथा यहां खड़े व्यक्ति को चक्रवात का आभास नहीं होता। चक्रवात की आँख का व्यास 25-30 कि०मी० होता है जबकि पूरे चक्रवात का व्यास 500-600 कि०मी० तक हो सकता है।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात के उत्पन्न होने के लिए सागर की सतह के जल का तापमान 27°C या इससे अधिक होना चाहिए। इससे नीचे वाष्पीकरण की प्रक्रिया नहीं हो पाती है। यहीं कारण है कि ये बक्रवात विषुवत रेखा के पास 10° उत्तरी तथा 10° दक्षिणी अक्षांश पर ही बनते है।
  • चक्रवात विषुवत रेखा पर नहीं बनते क्योंकि वहां पर कोरिपालिस बल का मान शून्य होता है जिस कारण पवनें चक्राकार गति नहीं कर पाती है। कोरियालिस बल का मान अधिकतम ध्रुठों पर होता है पर वहां पर सागर सतह का तापमान कम होता है।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात हमेशा महाद्वीपों के पूर्वी तट पर ही बनते है क्योंकि पूर्वी तटों पर गर्म जलधाराएं प्रवाहित होती है और पश्चिमी तटों पर ठंड़ी।
  • इन चक्रवातों को अलग-अलग देशों में अलग अलग नाम से जाना जाता है-
  • अमेरिका- हरिकेन
  • चीन-टाइकून
  • भारत- चक्रवात (साइक्लोन)
  • ऑस्ट्रेलिया- विल्ली विलिज
  • ऊष्ण चक्रवातों की ऊर्जा का स्रोत संघनन की गुप्त ऊष्मा होती है।
  • चक्रवात की मृत्यु तब होती है जब उसकी आँख को संघनन (Condensation) की गुप्त ऊष्मा प्राप्त होना बंद हो जाए। ऐसा दो कारणों से होता है-
  • जब चक्रवात ध्रुवों की तरफ जाने लगता है।
  • जब चक्रवात स्थलखण्डों की तरफ जाने लगता है।

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