नदियों द्वारा लाये गये अवसादों के कारण मैदानों का निर्माण होता है।
भारत के मैदानों की तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
1. पूर्वी घाट के मैदान
2. पश्चिमी घाट के मैदान
3. उत्तर भारत का मैदान
1. पूर्वी घाट के मैदान
- आकार में ये उत्तर भारत के मैदान से छोटा तथा पश्चिमी घाट के मैदान से बड़ा है। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदी के पास मैदानों की चौड़ाई अधिक है।
- इसके चौड़ाई उत्तर से दक्षिण की तरफ बढ़ती है। औसत चौड़ाई 100 कि०मी० से 130 कि०मी० तक है।
- पश्चिम बंगाल की हुगली नदी से लेकर तमिलनाडु तक फैला हुआ है।
- उड़ीसा से आन्ध्र प्रदेश की तरफ का मैदान उत्कल तट कहलाता है।
- आन्ध्र प्रदेश का तट कलिंग तट कहलाता है। इसी तट को उत्तरी सरकार तट के नाम से भी जाना जाता है। आन्ध्र प्रदेश से लेकर तमिलनाडु तक के मैदान को कोरामण्डल तट कहा जाता है।
- भारत की कई प्रमुख नदियों के डेल्टा इसी मैदान में बनते है। इन नदियों में मुख्य नदियां
अग्रलिखित हैं –
- महानदी
- गोदावरी
- कृष्णा
- कावेरी
2. पश्चिमी घाट के मैदान
- दमन से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ है।
- आकार में पूर्वी तथा उत्तर भारत के मैदानों से छोटा है। इसकी औसत चौड़ाई 50 कि०मी०
- गुजरात से गोठा तक के तट को र्कोकण तट कहा जाता है। इसमें महाराष्ट्र का पूरा तट आ जाता है।
- गोवा से मंगलौर तक के तट को कन्नड़ तट कहा जाता है।
- कर्नाटक से केरल तक के तट को मालाबार तट कहा जाता है।
- इसकी चौड़ाई कम होने के कारण यहां पर ढाल अधिक है। जिस कारण से यहां पर नदियों में तीत बाल से चलती है और झरने बनाती है।
- नदियों में गत्ति अधिक होने के कारण नदियां डेल्टा नहीं बना पाती है।
- मछली पालन के लिए आदर्श स्थिति बनती है।
3. उत्तरी भारत का विशाल मैदान
- भारत के सभी मैदानों में से पे सबसे विशाल है। इसकी औसत चौड़ाई 240 कि०मी० से 320 कि०मी० है।
- इस मैदान की समुद्र तल से ऊँचाई कम होने के कारण यहां पर नदियों की गति काफी धीमी हो जाती है। अतः नदियां अपने साथ लाये हुए
- अवसाद को यहां जमा कर देती है, जोकि इस मैदान की विशालता का प्रमुख कारण है। इसको समझने के लिए 4 भागों में बाँटा गया है –
भाबर प्रदेश
- शिठालिक हिमालय से 12 कि०मी० तक के क्षेत्र जिसमें कंकड़ पत्थर अधिक होते है को भाबर प्रदेश कहा जाता है।
- शिवालिक हिमालय के बाद नदियों की गति कम हो जाती है। इसलिए वो अपने साथ लाये अवसाद को यहां जमा कर देती है।
- यहां आकर नदियां विलुप्त हो जाती हैं। ये नदियां फिर आगे जाकर वापस धरती पर प्रकट हो जाती है।
तराई प्रदेश
- भाबर के नीचे वाले दलदली क्षेत्र को तराई क्षेत्र कहा जाता है।
- यहां पर जंगल में अजगर, मगरमच्छ आदि के साथ अन्य वन्य जीव भी पाये जाते हैं, अतः कोई जनजाति नहीं रहती।
- वर्तमान में तराई की अधिकांश भूमि को कृषि योग्य बना लिया गया है।
बांगर प्रदेश
- नदी के दूर वाला क्षेत्र जो नदी द्वारा लाई गई मिट्टी से पाटा गया है, बांगर प्रदेश कहलाता है।
- ये प्रदेश मैदान के ऊँचाई वाले क्षेत्र होते हैं।
- इस प्रदेश में बाड़ नहीं आती है। जिस कारण यहां की मिट्टी का नवीकरण नहीं हो पाता है।
- इस प्रदेश में पुरानी जलोढ़ मृदा पायी जाती है।
खादर प्रदेश
- नदी के पास वाला क्षेत्र जहां पर बाड़ आती रहती है, खादर क्षेत्र कहलाता है।
- लगभग हर वर्ष बाड़ आने के कारण यहां की मृदा का नवीकरण होता रहता है।
- इसी कारण ये प्रदेश उपजाऊ बना रहता है।
- इसकी ऊँचाई बांगर प्रदेश से कम होती है।
- इसका निर्माण नई जलोढ़ मृदा से हुआ है।