अलंकार (Figure of Speech) : Alankar in Hindi
परिभाषा: अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है- ‘आभूषण; जिस प्रकार स्त्री की शोभा आभूषण से उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार से होती है अर्थात जो किसी वस्तु को अलंकृत करे वह अलंकार कहलाता है।
अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है- “अलम + कार“, यहाँ पर अलम का अर्थ होता है- ‘आभूषण‘, जबकि कार का अर्थ- ‘करने वाला‘। इसी लिए कहा गया है- “अलंकरोति इति अलंकार“, अर्थात ‘जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।’
मानव समाज बहुत ही सौन्दर्योपासक है उसकी प्रवृत्ति ने ही नए अलंकारों को जन्म दिया गया है। अलंकार, कविता- कामिनी के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले तत्व होते हैं। भारतीय साहित्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, अनन्वय, यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, संदेह, अतिशयोक्ति, वक्रोक्ति आदि प्रमुख अलंकार हैं।
आचार्य केशवदास जी ने “कवि-प्रिया” में अलंकार को समझाते हुए लिखा है-
“यदपि सुजाति सुलक्षणी, सुवरनसरस सुवृत्त।
भूषण बिन न विराजई, कविता वनिता मित्त ।।”
भावार्थ- कविता यद्यपि उच्चकोटि की (सुजाति), अच्छे लक्षणों वाली (सुलक्षण), अच्छे रसीले अक्षरों से युक्त (सुवरनसरस) और अच्छे छन्दो वाली (सुवृत्त) हो, तो भी बिना भूषण (अलंकार) के अच्छी नहीं लगती। ठीक उसी तरह, जिस तरह से स्त्री अच्छे वंश की (सुजाति), अच्छे लक्षणो वाली (सुलक्षणी) अच्छे रंग की या गौरवर्ण तथा रसीली (सुवरनसरस) और अच्छा बोलने वाली (सुवृत्त) हो, तो भी बिना भूषण या गहनों के अच्छी नहीं लगती।
संक्षेप में हम कह सकते हैं- “काव्यशरीर अर्थात् भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले चमत्कारपूर्ण मनोरंजक ढंग को अलंकार कहते है।”
अलंकार के भेद
अलंकार को व्याकरण शास्त्रियों ने उनके गुणों के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया हैं- शब्दालंकार, अर्थालंकार और उभयालंकार। हमारे पाठ्यक्रम में शब्दालंकार और अर्थालंकार तथा उनके उपभेदों का अध्ययन किया जाता है।
शब्दालंकार (Shabd Alankar)
जिस अलंकार में शब्दों को प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी शब्द को रखने से वो चमत्कार समाप्त हो जाये वहाँ शब्द अलंकार (Shabd Alankar शब्दालंकार) होता है।
शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है- शब्द अलंकार, शब्द के दो रूप होते हैं ध्वनी और अर्थ, ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टी होती है। जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और उस शब्द की जगह पर कोई और पर्यायवाची शब्द के रख देने से उस शब्द का अस्तित्व न रहे उसे शब्दालंकार कहते हैं।
शब्दालंकार के भेद
1. अनुप्रास अलंकार
2. यमक अलंकार
3. पुनरुक्ति अलंकार
4. विप्सा अलंकार
5. वक्रोक्ति अलंकार
6. श्लेष अलंकार
अनुप्रास अलंकार
अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है अनु प्रास, यहाँ पर अनु का अर्थ है- बार-बार और प्रास का अर्थ होता है – वर्ण। जब किसी वर्ण की बार बार आवर्ती हो तब जो चमत्कार होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं। जैसे-
जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप।
विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।
अनुप्रास के उपभेद
1. छेकानुप्रास अलंकार
2. वृत्यानुप्रास अलंकार
3. लाटानुप्रास अलंकार
4. अन्त्त्यानुप्रास अलंकार
5. श्रुत्यानुप्रास अलंकार
छेकानुप्रास अलंकार Alankar
जहाँ पर स्वरुप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृति एक बार हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है। जैसे-
Example
रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठे।
सीसँ भरि आँसू भरि कहत दई दई।
वृत्यानुप्रास अलंकार Alankar
जब एक व्यंजन की आवर्ती अनेक बार हो वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं। जैसे-
Example:
चामर-सी, चन्दन – सी, चंद सी, चाँदनी चमेली चारु चंद- सुघर है।
लाटानुप्रास अलंकार Alankar
लाटानुप्रास अलंकार होता है। अथार्त जब एक शब्द या वाक्य खंड की आवर्ती उसी अर्थ में हो वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है। जैसे-
Example:
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ, तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।
अन्त्यानुप्रास अलंकार Alankar
जहाँ अंत में तुक मिलती हो वहाँ पर अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है। जैसे-
Example
लगा दी किसने आकर आग। कहाँ था तू संशय के नाग ?
श्रुत्यानुप्रास अलंकार Alankar
जहाँ पर कानों को मधुर लगने वाले वणों की आवर्ती हो उसे श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं। जैसे-
Example:
दिनान्त था, थे दीननाथ डुबते, सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।
यमक अलंकार Alankar
यमक शब्द का अर्थ होता है दो। जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर बार अर्थ अलग-अलग आये वहाँ पर यमक अलंकार होता है। जैसे-
कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय। वा खाये बौराए नर, वा पाये बौराये।
पुनरुक्ति अलंकार Alankar
पुनरुक्ति अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है- पुनः +उक्ति। जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाता है वहाँ पर पुनरुक्ति अलंकार होता है। जैसे-
Example
ठुमुकि-ठुमुकि रुनझुन धुनि-सुनि,
कनक अजिर शिशु डोलता
विप्सा अलंकार Alankar
जब आदर, हर्ष, शोक, विस्मयादिबोधक आदि भावों को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए शब्दों की पुनरावृत्ति को ही विप्सा अलंकार कहते हैं। जैसे-
Exemple
मोहि-मोहि मोहन को मन भयो राधामय। राधा मन मोहि-मोहि मोहन मयी-मथी।
वक्रोक्ति अलंकार Alankar
जहाँ पर वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का श्रोता अलग अर्थ निकाले उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते हैं।
वक्रोक्ति अलंकार के भेद Alankar
1. काकु वक्रोक्ति अलंकार
2. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार
काकु वक्रोक्ति Alankar
जब वक्ता के द्वारा बोले गये शब्दों का उसकी कंठ ध्वनी के कारण श्रोता कुछ और अर्थ निकाले वहाँ पर काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है। जैसे-
Example
मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।
श्लेष वक्रोक्ति अलंकार Alankar
जहाँ पर श्लेष की वजह से वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अलग अर्थ निकाला जाये वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है। जैसे-
Example:
को तुम हौ इत आये कहाँ घनस्याम हो तौ कितहूं बरसो । चितचोर कहावत है हम तौ तहां जाहूं जहाँ धन सरसों ।।
श्लेष अलंकार Alankar
जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है। जैसे-
Example:
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानस चून।।
अर्थालंकार Alankar
जहाँ पर अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार होता हो वहाँ अर्थालंकार होता है।
अर्थालंकार के भेद
1. उपमा अलंकार
2. रूपक अलंकार
3. उत्प्रेक्षा अलंकार
4. द्रष्टान्त अलंकार
5. संदेह अलंकार
6. अतिश्योक्ति अलंकार
7. उपमेयोपमा अलंकार
8. प्रतीप अलंकार
9. अनन्वय अलंकार
10. भ्रांतिमान अलंकार
11. दीपक अलंकार
12. अपहृति अलंकार
13. व्यतिरेक अलंकार
14. विभावना अलंकार
15. विशेषोक्ति अलंकार
16. अर्थान्तरन्यास अलंकार
17. उल्लेख अलंकार
18. विरोधाभाष अलंकार
19. असंगति अलंकार
20. मानवीकरण अलंकार
21 अन्योक्ति अलंकार
22. काव्यलिंग अलंकार
23. स्वभावोक्ति अलंकार
24. कारणमाला अलंकार
25. पर्याय अलंकार
26. स्वभावोक्ति अलंकार
27. समासोक्ति अलंकार
उपमा अलंकार Alankar
उपमा शब्द का अर्थ होता है तुलना। जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरे यक्ति या वस्तु से की जाए वहीं पर उपमा अलंकार होता है। जैसे-
Example
सागर -सा गंभीर हृदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।
उपमा अलंकार के अंग Alankar
- उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं उपमेय, उपमान, वाचक शब्द और साधारण धर्म। उपमेयः उपमेय का अर्थ होता है- उपमा देने के योग्य। अगर जिस वस्तु की समानता किसी दूसरी वस्तु से की जाये वहाँ पर उपमेय होता है।
- उपमानः उपमेय की उपमा जिससे दी जाती है उसे उपमान कहते हैं। अथार्त उपमेय की जिस के साथ समानता बताई जाती है उसे उपमान कहते हैं।
- वाचक शब्दः जब उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है तब जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है उसे वाचक शब्द कहते हैं।
- साधारण धर्म: दो वस्तुओं के बीच समानता दिखाने के लिए जब किसी ऐसे गुण या धर्म की मदद ली जाती है जो दोनों में वर्तमान स्थिति में हो उसी गुण या धर्म को साधारण धर्म कहते हैं।
उपमा अलंकार के भेद Alankar
1. पूर्णोपमा अलंकार
2. लुप्तोपमा अलंकार
पूर्णोपमा अलंकार Alankar
इसमें उपमा के सभी अंग होते हैं उपमेय, उपमान, वाचक शब्द, साधारण धर्म आदि अंग होते हैं वहाँ पर पूर्णोपमा अलंकार होता है। जैसे –
सागर -सा गंभीर हृदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।
लुप्तोपमा अलंकार Alankar
इसमें उपमा के चारों अगों में से यदि एक या दो का या फिर तीन का न होना पाया जाए वहीं पर लुप्तोपमा अलंकार होता है। जैसे –
कल्पना सी अतिशय कोमल।
स्पष्टीकरण: जैसा हम देख सकते हैं कि इसमें उपमेय नहीं है तो इसलिए यह लुप्तोपमा का उदहारण है।
रूपक अलंकार Alankar
जहाँ पर उपमेय और उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे वहाँ रूपक अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर उपमेय और उपमान के बीच के भेद को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता है वहाँ पर रूपक अलंकार होता है। जैसे-
उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विगसे संत- सरोज सब, हरषे लोचन भ्रंग।
ध्यान रखे इस अलंकार में: उपमेय को उपमान का रूप देना, वाचक शब्द का लोप होना, उपमेय का भी साथ में वर्णन होना।
रूपक अलंकार के भेद Alankar
1. सम रूपक अलंकार
2. अधिक रूपक अलंकार
3. न्यून रूपक अलंकार
सम रूपक अलंकार Alankar
इसमें उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है वहाँ पर सम रूपक अलंकार होता है। जैसे
बीती विभावरी जागरी, अम्बर – पनघट में डुबा रही. तारघट उषा – नागरी।
अधिक रूपक अलंकार Alankar
जहाँ पर उपमेय में उपमान की तुलना में कुछ न्यूनता का बोध होता है वहाँ पर अधिक रूपक अलंकार होता है।
न्यून रूपक अलंकार Alankar
इसमें उपमान की तुलना में उपमेय को न्यून दिखाया जाता है वहाँ पर न्यून रूपक अलंकार होता है। जैसे-
Example:
जनम सिन्धु विष बन्धु पुनि, दीन मलिन सकलंक सिय मुख समता पावकिमि चन्द्र बापुरो रंक।
उत्प्रेक्षा अलंकार Alankar
जहाँ पर उपमान के न होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए। अथार्त जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाए वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जैसे-
Example
सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल, बाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
1. वस्तुप्रेक्षा अलंकार
2. हेतुप्रेक्षा अलंकार
3. फलोत्प्रेक्षा अलंकार
वस्तुप्रेक्षा अलंकार Alankar
जहाँ पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत की संभावना दिखाई जाए वहाँ पर वस्तुप्रेक्षा अलंकार होता है। जैसे-
Example:
सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल। बाहर लसत मनो पिये, दावानल की ज्वाल
हेतुप्रेक्षा अलंकार Alankar
जहाँ अहेतु में हेतु की सम्भावना देखी जाती है। अथार्त वास्तविक कारण को छोड़कर अन्य हेतु को मान लिया जाए वहाँ हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है।
फलोत्प्रेक्षा अलंकार Alankar
इसमें वास्तविक फल के न होने पर भी उसी को फल मान लिया जाता है वहाँ पर फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जैसे-
Example:
खंजरीर नहीं लखि परत कुछ दिन साँची बात।
बाल द्रगन सम हीन को करन मनो तप जात। </>
दृष्टान्त अलंकार Alankar
जहाँ दो सामान्य या दोनों विशेष वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता हो वहाँ पर दृष्टान्त अलंकार होता है। इस अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती-जुलती बात उपमान रूप में दूसरे वाक्य में होती है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है। जैसे-
एक म्यान में दो तलवारें, कभी नहीं रह सकती हैं। किसी और पर प्रेम नारियाँ, पति का क्या सह सकती है।
संदेह अलंकार Alankar
जब उपमेय और उपमान में समता देखकर यह निश्चय नहीं हो पाता कि उपमान वास्तव में उपमेय है या नहीं। जब यह दुविधा बनती है, तब संदेह अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर संशय बना रहे वहाँ संदेह अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है। जैसे-
यह काया है या शेष उसी की छाया, क्षण भर उनकी कुछ नहीं समझ में आया।
ध्यान रखे इस अलंकार में: विषय का अनिश्चित ज्ञान, यह अनिश्चित समानता पर निर्भर हो, अनिश्चय का चमत्कारपूर्ण वर्णन हो।
अतिश्योक्ति अलंकार Alankar
जब किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करने में लोक समाज की सीमा या मर्यादा टूट जाये उसे अतिश्योक्ति अलंकार कहते हैं। जैसे-
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि। सगरी लंका जल गई, गये निसाचर भागि।
उपमेयोपमा अलंकार Alankar
इस अलंकार में उपमेय और उपमान को परस्पर उपमान और उपमेय बनाने की कोशिश की जाती है इसमें उपमेय और उपमान की एक दूसरे से उपमा दी जाती है। जैसे-
तौ मुख सोहत है ससि सो
अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो।
प्रतीप अलंकार Alankar
इसका अर्थ होता है उल्टा। उपमा के अंगों में उल्ट फेर करने से अथार्त उपमेय को उपमान के समान न कहकर उलट कर उपमान को ही उपमेय कहा जाता है वहाँ प्रतीप अलंकार होता है। इस अलंकार में दो वाक्य होते हैं एक उपमेय वाक्य और एक उपमान वाक्य। लेकिन इन दोनों वाक्यों में सदृश्य का साफ कथन नहीं होता, क व्यंजित रहता है। इन दोनों में साधारण धर्म एक ही होता है परन्तु उसे अलग-अलग ढंग से कहा जाता है। जैसे-
नेत्र के समान कमल है।
अनन्वय अलंकार Alankar
जब उपमेय की समता में कोई उपमान नहीं आता और कहा जाता है कि उसके समान वही है, तब अनन्वय अलंकार होता है। जैसे-
यद्यपि अति आरत – मारत है,
भारत के सम भारत है।
भ्रांतिमान अलंकार Alankar
जब उपमेय में उपमान के होने का भ्रम हो जाये वहाँ पर भ्रांतिमान अलंकार होता है अथार्त जहाँ उपमान और उपमेय दोनों को एक साथ देखने पर उपमान का निश्चयात्मक भ्रम हो जाये मतलब जहाँ एक वस्तु को देखने पर दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाए वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी अंग माना जाता है। जैसे-
पायें महावर देन को नाईन बैठी आय। फिरि-फिरि जानि महावरी, एडी भीड़त जाये।
दीपक अलंकार Alankar
जहाँ पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही धर्म स्थापित किया जाता है वहाँ पर दीपक अलंकार होता है। जैसे-
चंचल निशि उदवस रहें, करत प्रात वसिराज। अरविंदन में इंदिरा, सुन्दरि नैनन लाज।
अपहृति अलंकार
अपहति का अर्थ होता है छिपाव। जब किसी सत्य बात या वस्तु को छिपाकर उसके स्थान पर किसी झूठी वस्तु की स्थापना की जाती है वहाँ अपहृति अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है। जैसे-
सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला, बन्धु न होय मोर यह काला।
व्यतिरेक अलंकार Alankar
व्यतिरेक का शाब्दिक अर्थ होता है आधिक्य। व्यतिरेक में कारण का होना जरुरी है। अतः जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो वहाँ पर व्यतिरेक अलंकार होता है। जैसे-
का सरवरि तेहि देउं मयंकू। चांद कलंकी वह निकलंकू।। मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ?
विभावना अलंकार Alankar
जहाँ पर कारण के न होते हुए भी कार्य का हुआ जाना पाया जाए वहाँ पर विभावना अलंकार होता है। जैसे-
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।
विशेषोक्ति अलंकार Alankar
काव्य में जहाँ कार्य सिद्धि के समस्त कारणों के विद्यमान रहते हुए भी कार्य न हो वहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होता है। जैसे-
नेह न नैनन को कछु, उपजी बड़ी बलाय। नीर भरे नित-प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाई।
अर्थान्तरन्यास अलंकार Alankar
जब किसी सामान्य कथन से विशेष कथन का अथवा विशेष कथन से सामान्य कथन का समर्थन किया जाये वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है। जैसे-
बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बडाई पाए। कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाए।।
उल्लेख अलंकार Alankar
जहाँ पर किसी एक वस्तु को अनेक रूपों में ग्रहण किया जाए, तो उसके अलग-अलग भागों में बटने को उल्लेख अलंकार कहते हैं। अथार्त जब किसी एक वस्तु को अनेक प्रकार से बताया जाये वहाँ पर उल्लेख अलंकार होता है।
जैसे-
विन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त एक सुर में समस्त संगीत।
विरोधाभाष अलंकार Alankar
जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध न होते हुए भी विरोध का आभाष हो वहाँ पर विरोधाभास अलंकार होता है। जैसे-
आग हूँ जिससे दुलकते बिंदु हिमजल के। शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।
असंगति अलंकार Alankar
जहाँ आपतातः विरोध दृष्टिगत होते हुए, कार्य और कारण का वैयाधिकरन्य रणित हो वहाँ पर असंगति अलंकार होता है। जैसे-
Example:
हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।
मानवीकरण अलंकार Alankar
जहाँ पर काव्य में जड़ में चेतन का आरोप होता है वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है अथार्त जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं और क्रियांओं का आरोप हो वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है। जैसे-
Example:
बीती विभावरी जागरी, अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नगरी।
अन्योक्ति अलंकार Alankar
जहाँ पर किसी उक्ति के माध्यम से किसी अन्य को कोई बात कही जाए वहाँ पर अन्योक्ति अलंकार होता है। जैसे-
Example
फूलों के आस-पास रहते हैं, फिर भी कोटे उदास रहते हैं।
काव्यलिंग अलंकार Alankar
जहाँ पर किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को काव्यलिंग अलंकार कहते हैं अथार्त जहाँ पर किसी बात के समर्थन में कोई-न-कोई युक्ति या कारण जरूर दिया जाता है। जैसे-
Example:
कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय। उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए।
स्वभावोक्ति अलंकार alankar
किसी वस्तु के स्वाभाविक वर्णन को स्वभावोक्ति अलंकार कहते हैं। जैसे-
Example
सीस मुकुट कटी काछनी, कर मुरली उर माल। इहि बानिक मो मन बसौ, सदा बिहारीलाल।
उभयालंकार
ऐसा अलंकार जिसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का योग हो। अर्थात जो अलंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आधारित रहकर दोनों को चमत्कारी करते हैं वहाँ उभयालंकार होता है। जैसे-
Example
कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।
इस अलंकार में शब्द और अर्थ दोनों है।
उभयालंकार के भेद
1. संसृष्टि (Combinationof Figures of Speech)
2. संकर (Fusion of Figures of Speech)
संसृष्टि (Combinationof Figures of Speech)
तिल-तंडुल-न्याय से परस्पर-निरपेक्ष अनेक अलंकारों की स्थिति ‘संसृष्टि‘ अलंकार है (एषां तिलतंडुल न्यायेन मिश्रत्वे संसृष्टिः- रुय्यक: अलंकारसर्वस्व)। जिस प्रकार तिल और तंडुल (चावल) मिलकर भी पृथक दिखाई पड़ते हैं, उसी प्रकार संसृष्टि अलंकार में कई अलंकार मिले रहते हैं, किंतु उनकी पहचान में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती। संसृष्टि में कई शब्दालंकार, कई अर्थालंकार अथवा कई शब्दालंकार और अर्थालंकार एक साथ रह सकते हैं।
दो अर्थालंकारों की संसृष्टि का उदाहरण लें
Example:
भूपति भवनु सुमाय सुहावा। सुरपति सदनु न परतर पावा। मनिमय रचित चारु चौबारे। जनु रतिपति निज हाथ संवारे।।
प्रथम दो चरणों में प्रतीप अलंकार है तथा बाद के दो चरणों में उत्प्रेक्षा अलंकार। अतः यहाँ प्रतीप और उत्प्रेक्षा की संसृष्टि है।
संकर (Fusion of Figures of Speech)
नीर-क्षीर-न्याय से परस्पर मिश्रित अलंकार ‘संकर’ अलंकार कहलाता है। (क्षीर-नीर न्यायेन तु संकर:- रुय्यक : अलंकारसर्वस्व)। जिस प्रकार नीर-क्षीर अर्थात पानी और दूध मिलकर एक हो जाते हैं, वैसे ही संकर अलंकार में कई अलंकार इस प्रकार मिल जाते हैं जिनका पृथक्करण संभव नहीं होता। जैसे-
Example:
सठ सुधरहिं सत संगति पाई। पारस-परस कुधातु सुहाई।
तुलसीदास -पारस-परस’ में अनुप्रास तथा यमक- दोनों अलंकार इस प्रकार मिले हैं कि पृथक करना संभव नहीं है, इसलिए यहाँ ‘संकर‘ अलंकार है।
अलंकार युग्म में अंतर
1. यमक और श्लेष अलंकार में अंतर
2. उपमा और रूपक अलंकार में अंतर
3. उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार में अंतर
4. संदेह और भ्रांतिमान अलंकार में अंतर