अंग्रेजों और मराठों के मध्य क्रमश: तीन युध्द हुए प्रथम 1775 से 1782 में द्वितीय 1803 से 1806 में तथा तृतीय 1817 से 1818 ई. में
सूरत की संधि
प्रथम युध्द का प्रारम्भ सूरत की संधि के साथ हुआ यह युध्द 1775 से 1782 तक चला
सूरत की संधि को कलकत्ता काउंसलिंग ने मानने से इनकार कर दिया 1776 में अपना एक प्रतिनिधि पूना की सरकार के पास भेजा
पुरंदर की संधि
कलकत्ता काउंसलिंग ने पेशवा के साथ 1776 में पुरंदर की संधि की इसके अनुसार सालसेर द्वीप अंग्रेजों को मिला भडौच के जिले की आय भी कम्पनी को मिलना शुरु हो गयी
10 लाख रु. क्षतिपूर्ति के रूप में अंग्रेजों को मराठों द्वारा दिया जाना तय हुआ तथा नवजात शिशु माधव राय द्वितीय को पेशवा मान लिया गया
यह भी तय हुआ कि अंग्रेज रघुनाथ राव को शरण नहीं देंगें तथा उसे अच्छी पेंशन देकर गुजरात भेज दिया जायेगा
पुरंदर की संधि से बम्बई काउंसिल असंतुष्ट थी उसने गृह सरकार की आज्ञा प्राप्त करके पुरंदर की संधि का उलंघन करते हुए रघुनाथ राव को सूरत में शरण दे दी
मराठों पर आक्रमण
रघुनाथ राव को पेशवा बनाने के उद्देश्य से 1778ई. में ब्रिट्रिश सेना ने मराठों पर आक्रमण कर दिया
बडगाँव की संधि
बालगाँव नामक स्थान पर मराठों ने अंग्रेजों को बुरी तरह परास्त कर दिया और अंग्रेजों को एक अपमान जनक बडगाँव की संधि करनी पडी
बडगाँव की संधि के तहत अंग्रेजों को तमाम प्रदेश मराठों को लौटाने पडे जो उन्होंने 1773 से अब तक जीते थे
बंगाल के गवर्नर वारेंग हेंगस्टिंन ने बडगाँव की संधि की अवहेलना करके 2 सेनायें मराठों पर आक्रमण करने के लिए भेजी
सालबाई की संधि
उसमें से एक ने ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त कर लिया ग्वालियर के मराठा शासक महाद जी सिंघिया को 1782 को सालबाई की संधि करनी पडी
इसके बाद सालसेठ पर अंग्रेजों का अधिकार स्वीकार कर लिया गया यमुना नदी के पश्चिम के प्रदेश पर सिंधिया का अधिकार बना रहा
नारायण राव के पुत्र माधव राव को अंग्रेजों ने पेशवा मान लिया पूना सरकार की ओर से रघुनाथ राव को पेंशन दे दी गयी
युध्द का अंतिम निर्णय
इस प्रकार 7 वर्ष तक चले इस युध्द में कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ और अगले 20 वर्ष तक शांति छायी रही