रणजीत सिंह कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बावजूद पंजाब में एक स्थायी सिख राज्य स्थापित नहीं कर सका |
रणजीत सिंह ने अपने पीछे 40000 सैनिकों का जत्था छोड़ा था, जिसने पंजाब में अराजकता फैलायो।
सैनिकों ने खालसा पंचायत का गठन किया तथा उसी के द्वारा सारे निर्णय करने लगे।
सैनिकों ने राजाओं को गद्दी पर बैठाने एवं उतारने की भूमिका अपना ली।
सितंबर 1843 ई० में महाराजा रणजीत सिंह के अल्पवयस्क पुत्र दलीप सिंह को महाराजा घोषित कर दिया गया।
दलीप सिंह की माता रानी जिन्दां को उसका संरक्षक एवं हीरा सिंह को वजीर नियुक्त किया गया। रानी जिन्दा एक विलासितापूर्ण अय्याश महिला थी।
1843 ई० में मेजर ब्रॉडफुट की लुधियाना में कंपनी के एजेंट के रूप में नियुक्ति हुई।
1844 ई० में गवर्नर जेनरल बनकर लॉर्ड हार्डिज भारत आया तथा उसने नेजर ब्रॉडफुट को पेशावर से पंजाब तक ब्रिटिश नियंत्रण स्थापित करने का स्पष्ट निर्देश दिया।
13 दिसंबर, 1845 को सिखों एवं अंग्रेजों में प्रथम संघर्ष मुदकी (पंजाब में फिरोजपुर के पास) में हुआ।
उपरोक्त भिड़त में सिख जीत सकते थे परंतु लाल सिंह एवं तेजसिंह के विश्वासघात के कारण हार गये।
निर्णायक भिड़त 10 फरवरी, 1846 ई० को सबराओ में हुई, इसमें भी विश्वासघात के कारण हार गये।
अंग्रेजों ने लाहौर पर अधिकार कर लिया तथा सिखों को लाहौर की संधि (9 मार्च, 1846 ई०) करने के लिए बाध्य कर दिया |
सतलज पार के सिखों के समस्त प्रदेश अंग्रेजों को सौंप दिये गये।
अल्पवयस्क दलीप सिंह को महाराजा, रानी जिंदां को उसका संरक्षक तथा लाल सिंह को उसका वजीर नियुक्त किया गया।
आंग्ल-सिख युद्ध -द्वितीय (1848-49 ई०)
पंजाब काउंसिल के अध्यक्ष हेनरी लॉरेंस ने बड़ी संख्या में सिख सेना को भंग किया, परिणामस्वरूप पंजाब में भयानक अराजकता छा गई। इस अराजकता. ने दूसरे आंग्ल-सिख युद्ध-1 के लिए पृष्ठभूमि तैयार की। जबकि मुल्तान के विद्रोह जिसे दबाया. न जा सका ने तात्कालिक कारण उपस्थित किये
13 जनवरी 1849 ई० को शेर सिंह के नेतृत्व में सिखों एवं कमांडर गफ के नेतृत्व में अंग्रेजों के बीच चिलियानवाला का युद्ध हुआ। इस युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला परंतु, अंग्रेजों को अपार क्षति हुई।
इस युद्ध के 48 घंटे बाद कमांडर गफ को हटाकर चार्ल्स नेपियर को कमान सौंपी गयी।
आंग्ल-सिख युद्ध – तृतीय (1849 ई०)
तीसरा आंग्ल-सिख युद्ध 21 फरवरी, 1849 ई० को लड़ा गया जिसमें सिख बुरी तरह पराजित हो गए तथा चार्ल्स नेपियर की सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। तत्कालीन गवर्नर जेनरल लॉर्ड डलहौजी ने 29 मार्च 1849 ई० को पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया। हेनरी लॉरेंस ने पंजाब विलय के खिलाफ त्यागपत्र दे दिया।