भारत में व्यापारिक यूरोपीय कम्पनियों में फ्रांसिसी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का आगमन सबसे अंत में हुआ
फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना
फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1664 ई. में फ्रांसिसी सम्राट लुई 14वें के मंत्री कोलबर्ट द्वारा की गयी
पहली फैक्ट्री
इस कम्पनी का मूल नाम ‘ कम्पनी द इंद ओरिएंतल’ था इसकी पहली फैक्ट्री 1668 ई. में सूरत में फ्रैंको कैरो के द्वारा स्थापित की गई बाद में मर्कारा ने गोलकुण्डा के सुल्तान से अनुमति ले कर मूसलीपट्टम में 1669 ई. में दूसरी फैक्ट्री स्थापित की
कम्पनीयों का मुख्यालय
भारत में फ्रेंच कम्पनीयों का मुख्यालय पंण्डिचेरी था जहाँ पर फ्रांसिसियों ने 1673 से 74 ई. में फैक्ट्री स्थापित की
बंगाल के क्षेत्र में इनकी प्रमुख फैक्ट्री चंद्र नगर में थी जिसे 1690-91 ई. में स्थापित किया गया था
फ्रेंच व अंग्रेजों के बीच संघर्ष
फ्रेंच कम्पनी के आने से पहले अंग्रेज भारत में आ चुके थे इसलिए दोनों कम्पनियों में अपने प्रभुत्व को लेकर संघर्ष आरम्भ हो गया
मॉरिशियस पर अधिकार
1721 ई. में फ्रांसिसियों ने मॉरिशियस पर अधिकार कर लिया और 1725 ई. में मालावाड तट पर स्थित माही पर भी अधिकार कर लिया
तंजौर के नबाब ने कोरो मण्डल तट पर स्थित कलीकट फ्रांसिसियों को 1639 ई. में उपहार स्वरूप दे दिया
गवर्नरडूप्ले
1742 ई. में डूप्ले गवर्नर बन कर आया तो उसके काल में फ्रांसिसियों की महत्वकांशाए और बढ गयी
दूपले ने भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहा परिणाम स्वरूप फ्रांसिसी और अंग्रेजों के मध्य संघर्ष शुरु हो गया
कर्नाटक क्षेत्र में आंग्ल फ्रांसिसी संघर्ष
इन दोनों कम्पनियों के बीच दक्षिण भारत के कर्नाटक क्षेत्र में कुल तीन संघर्ष हुए जिसे आंग्ल फ्रांसिसी संघर्ष कहा गया
फ्रांसिसियों का अंत
इन तीन संघर्षों में प्रथम तथा अंतिम युध्द का कारण अंतराष्ट्रीय रहा इस तरक वॉन्डिबॉश के निर्णायक परिणाम स्वरूप फ्रांसिसियों का वर्चस्व भारत से समाप्त हो गया और इंग्लिश कम्पनी भारत में चुनौती देने वाला और कोई नहीं बचा