नासुरुद्दीन मुहम्मद हुमायुँ बाबर का सबसे बडा पुत्र था, बाबर की मृत्यु के तीन दिन पश्चात हुमायुँ का राज्याभिषेक 30 दिसम्बर 1530 आगरा के किले में समपन्न हुआ
हुमायुँ का जन्म
हुमायुँ का जन्म 6 मार्च 1508 को काबुल में हुआ था हुमायुँ के तीन भाई कमरान, असकरी व हिंदाल थे तथा बहन गुलबदन बेगम थी
हुमायुँ की माता
हुमायुँ की माता माहम बेगम (शिया मतावलंबी) हिरातके हुसैन बेकरा की पुत्री थी
ये थी हुमायुँ की सबसे बडी भूल
हुमायुँ ने गद्दी पर बैठने के बाद अपना सारा साम्राज्य अपने भाईयों के बीच बाँट दिया ये इसकी सबसे बडी प्रशासनिक भूल भी थी
ज्योतिष में विश्वास
हुमायुँ ज्योतिष में बहुत विश्वास रखता था वह सातों दिन सात रंग के कपडे पहनता था
कोहिनूर हीरा
बाबर के काल में ही हुमायुँ ने आगरा को जीता और बाबर के आगरा पहुँचने पर कोहिनूर हीरा बाबर को सौंपा
विभिन्न तथ्य
प्रसिध्द इतिहासकार रसब्रुक विलियम्स के अनुसार – “मुगल शासक बाबर ने अपने पुत्र के लिए ऐसा साम्राज्य छोडा जो केवल युध्द की परिस्थितियों में ही संगठित रखा जा सकता था और शांति के समय के लिए निर्बल, रचना विहीन एवं आधार विहीन था
बाबर का वजीर मीर निजामुद्दीन खलीफा मुगल साम्राज्य का मेंहदी ख्वाजा (बाबर की बडी बहन का पति) को सौंपना चाहता था लेकिन बाद में वजीर ने हुमायुँ को ही शासन तंत्र चलाने को कहा
हुमायुँ का विवाह
हुमायुँ का विवाह हमीदा बानो से 1541 में हुआ ये उस वक्त निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहा था हमीदा बानो बेगम फार्स के शिया मतावलंवी मीर अकबर अली जामी की पुत्री थी
शेर खां का आत्मसमर्पण
1532 ई. मे हुमायुँ ने चुनारगढ का किला जीता वह किला शेर खां के अधीन था शेर खां ने आत्मसमर्पण कर दिया और किले को शेर खां के आधिपत्य में ही रहने दिया
दौहरिया युद्ध
हुमायूं को कालिंजर आक्रमण गुजरात के शासक की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने के लिए करना पड़ा. कालिंजर का आक्रमण हुमायूं का पहला आक्रमण था. ये हुमायूं का पहला युद्ध था. जहां हुमायूं समझौते के बाद जौनपूर की ओर बढ़ गया था.
जौनपूर पर महमूद लोदी का राज था. 1532 ई में दौहरिया नामक स्थान पर महमूद लोदी और हुमायूं के बीच युद्ध हुआ था. जिसमें महमूद लोदी की पराजय हुई थी. इस युद्ध में अफगान सेना का नेतृत्व महमूद लोदी ने किया था.
चुनार का घेरा
चुनार का दुर्ग शेर खां के अधिकार में था. शेर खां कुशल कूटनीतिज्ञ था. वे मुगलों के साथ प्रत्यक्ष युद्ध कर अपनी सैन्य शक्ति को खत्म करना नहीं चाहता था. इसलिए उसने हुमायूं के साथ समझौता कर लिया.
हुमायूं भी गुजरात के शासक बहादुरशाह की शक्ति दबाना चाहता था. और जब संधि के लिए शेर खां की ओर से पहल की गई तो हुमायूं ने उसे स्वीकार कर लिया. चुनार का दुर्ग शेर खां को सौंप दिया गया.
शेर खां ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली और 500 अफगान सैनिकों के साथ अपने बेटे कुतुब खां को हुमायूं की सेवा के लिए भेज दिया. हुमायूं शेर खां की चाल समझ नहीं पाया. शेर खां अपनी शक्ति बचाकर बंगाल-विजय करने में सफल हो गया. चुनार का दुर्ग शेर खां को सौंपना हुमायूं की एक बड़ी भूल मानी जाती है
चौसा का युध्द (war of chausa)
आगे चलकर शेर खां ने अपनी स्थिति बहुत मजबूत कर ली और 26 जून 1539 को चौसा का युध्द हुमायुँ से किया चौसा के युध्द में हुमायुँ की पराजय हुई और चौसा का युध्द हुमायुँ के पतन का कारण बना
चौसा के युध्द के बाद हुमायुँ को निजाम नामक भिश्ती ने बचाकर आगरा पहुँचाया इस भिश्ती को हुमायुँ ने एक दिन का राजा भी बनाया था
शेर खां ने शेरशाह की उपाधि कब ग्रहण की
चौसा का युध्द जीतने के बाद शेर खां ने शेरशाह की उपाधि ग्रहण की व अपने नाम का खुतवा पढवाया व सिक्के चलवाये
कन्नौज का युध्द
हुमायुँ व शेरशाह के बीच फिर एक युध्द हुआ 17 मई 1540 को कन्नौज या बिलग्राम युध्द हुआ जिसमें हुमायुँ पराजित होकर निर्वासित जीवन जीने के लिए विवश हुआ
हुमायुँ ने 1540 ई. से 1555 ई. तक निर्वासित जीवन व्यतीत किया इस निर्वासित जीवन में उसके साथ उसका छोटा भाई हिंदाल उसके साथ था
हुमायुँ ने ईरान के शाह तहमास्प की सहायता पाकर भारत को पुन: जीतने का प्रयास किया
हुमायूं को फिर मिला दिल्ली का तख्त
22 जून. 1555 ई में एक युद्ध हुआ जिसे सरहिंद का युद्ध भी कहा जाता है जहां अफगान सेना का नेतृत्व सुल्तान सिकन्दर सूर और मुगल सेना का नेतृत्व बैरम खां ने किया.
इस युद्ध में अफगानों की पराजय हुई. 23 जुलाई 1555 ई में एक फिर दिल्ली के तख्त पर हुमायूं को बैठने का सौभाग्य मिला. और एक बार फिर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई.
शेरशाह की मृत्यु
1545 में शेरशाह की मृत्यु हो गई और 1553 में शेरशाह के पुत्र इस्लाम शाह की भी मृत्यु हो गई जिससे हुमायुँ का मनोबल बढ गया और वह भारत जीतने को प्रयासरत हुआ
मच्छीवाडा युध्द (war of machchiwada)
12 मई 1555 ई. को मच्छीवाडा के युध्द में हुमायुँ ने सिकंदर सूर को पराजित कर दूसरी बार मुगल साम्राज्य की स्थापना की
हुमायुँ ने दिल्ली में पुन: अपने को भारत का बादशाह घोषित किया
हुमायुँ की मृत्यु
24 मई 1556 ई. को दीनपहनाह पुस्तकालय की सीढियों से उतरते वक्त फिसल कर गिरने के कारण हुमायुँ की मृत्यु हो गई |
” लेनपूल के शब्दों में “हुमायुँ जीवन भर लुढकता रहा”
प्रमुख तथ्य
हुमायूँ का जन्म 6 मार्च, 1508 ई० को माहिम बेगम के गर्भ से हुआ।
1520 ई० में मात्र 12 वर्ष की आयु में हुमायूँ को बदख्शां के सूबेदार के पद पर नियुक्त किया गया।
बाबर की मृत्यु के बाद 30 दिसंबर, 1530 ई० को हुमायूँ मुगलों की गद्दी पर आरूढ़ हुआ।
हुमायूँ ने सिंहासनारूढ़ होने के पश्चात अपने साम्राज्य के विभिन्न हिस्से अपने तीन भाईयों को बांट दिये-कामरान-काबुल, कंधार एवं पंजाब, अस्करी-सम्भल एवं हिन्दाल-मेवाड़ एवं अलवर।
हुमायूँ द्वारा अपने चचेरे भाई सुलेमान मिर्जा को बदख्शां का सूबेदार बनाया गया।
अफगान शासक शेर खाँ ने हुमायूँ को चौसा (25 जून, 1539 को) एवं बिलग्राम या कन्नौज (10 मई, 1540 ई०) के युद्धों में बुरी तरह परास्त किया एवं आगरा तथा दिल्ली पर अधिकार कर लिया।
उपरोक्त पराजयों के पश्चात 15 वर्षों तक हुमायूँ को निर्वासित जीवन जीना पड़ा। उसी दौरान उसने हमीदन बेगम से 29 अगस्त, 1541 ई० को निकाह किया।
हमीदन बेगम से 1542 ई० में उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम उसने जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर रखा।
1555 ई० में मच्छिवारा (लुधियाना से 9 मील पूर्व) के युद्ध में सिकंदर सूर को परास्त कर दिल्ली की गद्दी पर पुनः कब्जा कर लिया।
हुमायूँ द्वारा 1533 ई० में दीनपनाह नामक एक नये भवन की स्थापना की गई।
27 जनवरी, 1556 ई० को दीनपनाह भवन की सीढ़ियों से गिरकर हुमायूँ की मृत्यु हो गई।
गुलबदन बेगम (हुमायूँ की बहन) ने हुमायूँनामा की रचना की।