1914 ई० में मांडले जेल से रिहा होने के पश्चात बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस के दोनों गुटों तथा कांग्रेस-मुस्लिम लीग समझौता कराने के प्रयास में जुट गये।
कांग्रेस के दोनों घड़े पुनः एक हो गये तथा कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग में भी समझौता हुआ, इसे ही लखनऊ समझौता कहते हैं।
कांग्नेस ने पहली बार साम्प्रदायिक निर्वाचन को स्वीकार किया।
अब कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग के बीच अगले. 3-4 वर्षों के लिए एकता स्थापित हो गई तथा दोनों पक्षों ने संयुक्त रूप से औपनिवेशिक स्वशासन की मांग की।
इस योजना के अंतर्गत कांग्रेस लीग समझौते से मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों तथा जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्यक थे, वहाँ पर उन्हें अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की गई। इसी समझौते को ‘लखनऊ समझौता’ कहते हैं।
लखनऊ की बैठक में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के उदारवादी और अनुदारवादी गुटों का फिर से मेल हुआ। इस समझौते में भारत सरकार के ढांचे और हिन्दू तथा मुसलमान समुदायों के बीच सम्बन्धों के बारे में प्रावधान था।
मोहम्मद अली जिन्नाह और बाल गंगाधर तिलक इस समझौते के प्रमुख निर्माता थे।
बाल गंगाधर तिलक को देश लखनऊ समझौता और केसरी अखबार के लिए याद करता है।