गांधी जी ने सत्याग्रह का पहला प्रयोग बिहार के चंपारण में किया।
चंपारण में यूरोपीय बागान मालिक किसानों से जबरन नील की खेती करवाते थे तथा उसका 3/20वाँ हिस्सा अधिशेष के रूप में वसूलते थे।
चंपारण के किसान नेता राज कुमार शुक्ल के आग्रह पर महात्मा गांधी चंपारण गये।
महात्मा गांधी ने वहाँ सत्याग्रह किया जिसमें डॉ० राजेंद्र प्रसाद, मजहरूल हक, महादेव देसाई तथा आचार्य जे०बी० कृपलानी ने उनका साथ दिया।
अंतत: किसानों को तीन कठिया पद्धति (नील की खेती में प्रयुक्त एक प्रणाली) निजात मिली।
खेड़ा सत्याग्रह (1918 ई०)
1918 ई० में गुजरात के ‘खेड़ा’ नामक स्थान पर किसानों ने फसल खराब होने के कारण लगान देने से इंकार कर दिया।
गांधी जी ने यहाँ भी किसानों के समर्थन में सत्याग्रह किया। इस कार्य में उन्हें सरदार वल्लभभाई पटेल का भरपूर सहयोग मिला।
यहाँ भी सरकार को झुकना पड़ा तथा सिर्फ उन किसानों से लगान वसूला गया जो लगान दे सकते थे।
अहमदाबाद मिल-मजदूर सत्याग्रह (1918 ई०)
1918 ई० में अहमदाबाद के कपड़ा मिल में वेतन-वृद्धि के सवाल पर मिल मालिकों एवं मजदूरों में झगड़ा हो गया।
गांधी जी ने मजदूरों के वेतन में 35% तक की बढ़ोत्तरी की मांग के साथ अनशन किया तथा अपनी मांग सरकार से मनवाने में सफल रहे।
रॉलेट सत्याग्रह (1919 ई०)
केंद्रीय विधान मंडल ने ‘सर रॉलेट’ की अनुशंसा पर 18 मार्च, 1919 ई० को आतंकवादी अपराध अधिनियम पारित किया।
इसे रॉलेट एक्ट कहा गया तथा इसके अनुसार राजद्रोहात्मक कार्यों के संदेह मात्र पर ही किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए दो वर्षों के लिए कैद किया जा सकता था या किसी भी स्थान पर नजरबंद किया जा सकता था।
इसे बिना अपील, बिना वकील तथा बिना दलील वाला काला कानून कहा गया है।
6 अप्रैल, 1919 को गांधी जी के नेतृत्व में देशव्यापी हड़ताल का आयोजन किया गया। हड़ताल (Strike) शब्द का प्रयोग भारतीय जन-जीवन में संभवत: पहली बार किया गया।
पंजाब के दो प्रमुख लोकप्रिय नेता डॉ० सत्पाल एवं डॉ० सैफुद्दीन किचलु अमृतसर में गिरफ्तार कर लिये गये।
इस सत्याग्रह का प्रचार करने में यंग इंडिया (पाक्षिक), नवजीवन (अहमदाबाद), बॉम्बे क्रॉनिकल (बंबई), इंडिपेंडेंट (इलाहाबाद), अखतव (लखनऊ) जैसे राष्ट्रवादी प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।