भारत में देवी-देवताओं के चित्रों के साथ सिक्के बनाने की एक लंबी परंपरा है। तीसरी शताब्दी ईस्वी तक शासन करने वाले कुषाणों ने सबसे पहले अपने सिक्कों पर देवी लक्ष्मी के चित्र का उपयोग किया था।
पंचमार्क (आहात) सिक्के:
7वीं-6वीं शताब्दी ईसा पूर्व तथा पहली शताब्दी ईस्वी के बीच जारी ‘पंचमार्क’ सिक्कों को पहला प्रलेखित सिक्का माना जाता है।
इन सिक्कों को उनकी निर्माण तकनीक के कारण ‘पंचमार्क’ सिक्के कहा जाता है। ये अधिकतर चांदी के हैं एवं इन पर कई प्रतीक बनें हैं, जिनमें से प्रत्येक को एक अलग पंच (ठप्पा) द्वारा बनाया गया था।
इन्हें सामान्य तौर पर दो अवधियों में वर्गीकृत किया गया है:
- पहली अवधि का श्रेय जनपदों या छोटे स्थानीय राज्यों को दिया जाता है।
- दूसरी अवधि का श्रेय शाही मौर्य काल को जाता है।
- इन सिक्कों पर पाए जाने वाले रूपाँकन ज़्यादातर प्रकृति जैसे सूर्य, विभिन्न जानवरों के रूपांकनों, पेड़ों, पहाड़ियों आदि से लिये गए थे।
राजवंशीय सिक्के:
- ये सिक्के सबसे प्राचीन हिंद-यूनानी, शक-पहलवों और कुषाणों से संबंधित हैं। ये सिक्के आमतौर पर दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व तथा दूसरी शताब्दी ईस्वी के बीच प्रचलन में थे।
हिंद-यवन:
- हिद-यवन के चांदी के सिक्के हेलेनिस्टिक परंपरा की विशेषता हैं, जिनमें ग्रीक देवी-देवताओं को प्रमुखता से चित्रित किया गया है, इसके अलावा इनमें जारी करने वालों के चित्र भी हैं।
शक:
- पश्चिमी क्षत्रपों के शक सिक्के शायद सबसे पुराने दिनांकित सिक्के हैं, जो कि 78 ईस्वी में शुरू हुये शक युग से संबंधित हैं।
शक युग से भारतीय गणराज्य का आधिकारिक कैलेंडर प्रेरित है।
कुषाण:
- मध्य एशियाई क्षेत्र के कुषाणों ने अपने सिक्के में ओशो (शिव), चंद्र देवता मिरो और बुद्ध को चित्रित किया।
- सबसे पुराने कुषाण सिक्के का श्रेय आमतौर पर विम कडफिसेस को दिया जाता है।
- कुषाण सिक्कों में आमतौर पर ग्रीक, मेसोपोटामिया, जोरोस्ट्रियन और भारतीय पौराणिक कथाओं से लिये गए प्रतीकात्मक रूपों को दर्शाया गया है।
- शिव, बुद्ध और कार्तिकेय चित्रित किये जाने वाले प्रमुख भारतीय देवता थे।
सातवाहन:
- उनके सत्ता में आने की तिथियाँ विवादास्पद हैं और विभिन्न रूप से 270 ईसा पूर्व से 30 ईसा पूर्व के बीच रखी गई हैं।
- उनके सिक्के मुख्यतः तांबे और सीसे के थे, हालाँकि चाँदी के मुद्दों को भी जाना जाता है।
- इन सिक्कों में हाथी, शेर, बैल, घोड़े आदि जैसे जीव-जंतुओं के रूपांकन होते थे, जिन्हें अक्सर प्रकृति के रूपांकनों जैसे- पहाड़ियों, पेड़ आदि के साथ जोड़ा जाता था।
- सातवाहनों के चांदी के सिक्कों में चित्र और द्विभाषी किंवदंतियाँ थीं, जो क्षत्रप प्रकारों से प्रेरित थीं।
पश्चिमी क्षत्रप:
- सिक्कों पर किंवदंतियाँआमतौर पर ग्रीक में थीं और ब्राह्मी, खरोष्ठी का भी इस्तेमाल किया गया था।
- पश्चिमी क्षत्रप के सिक्कों को तारीखों वाले सबसे पुराने सिक्के माना जाता है।
- आम तांबे के सिक्के ‘बैल और पहाड़ी’ तथा ‘हाथी एवं पहाड़ी’ प्रकार हैं।
गुप्तकालीन सिक्के:
- गुप्तकालीन सिक्के (चौथी-छठी शताब्दी ईस्वी) कुषाणों की परंपरा का पालन करता है, जिसमें राजा को अग्रभाग पर और एक देवता को पीछे की ओर दर्शाया गया है; देवता भारतीय थे और किंवदंतियाँ ब्राह्मी में थीं।
- सबसे पुराने गुप्तकालीन सिक्के का श्रेय समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय और कुमारगुप्त को दिया जाता है तथा उनके सिक्के अक्सर राजवंशीय उत्तराधिकार महत्त्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं, जैसे- विवाह गठबंधन, घोड़े की बलि या शाही सदस्यों की कलात्मक और व्यक्तिगत उपलब्धियों (गीतकार,धनुर्धर, सिंह आदि) को दर्शाते हैं।
विदेशी सिक्के
यूरोपीय सिक्के:
- मद्रास प्रेसीडेंसी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने थ्री स्वामी पैगोडा के रूप में लेबल किये गए सिक्कों को ढाला, जिसमें भगवान बालाजी को श्रीदेवी और भूदेवी के दोनों ओर दिखाया गया है।
अन्य सिक्के:
- प्राचीन भारत का मध्य-पूर्व, यूरोप (ग्रीस और रोम) के साथ-साथ चीन के साथ मज़बूत व्यापारिक संबंध था। यह व्यापार आंशिक रूप से रेशम मार्ग से और आंशिक रूप से समुद्री व्यापार के माध्यम से भूमि मार्ग द्वारा किया जाता था।
- दक्षिण भारत में जहाँ समुद्री व्यापार ले मामले में संपन्न था, रोमन सिक्के भी अपने मूल रूप में परिचालित हुए, हालाँकि कई बार विदेशी संप्रभुता की घुसपैठ के विरोध में इनके परिचालन में कटौती भी की गई।