ब्रिटिश गवर्नर जेनरल लॉर्ड ऑकलैंड ने रूस के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अफगानिस्तान पर आक्रमण करने की आवश्यकता अनुभव की।
ऑकलैंड अफगानिस्तान में अपनी सेनाएँ भेजने के लिए सिंध से एक मार्ग चाहता था।
अंग्रेजों, महाराजा रणजीत सिंह एवं अफगानिस्तान के शाह शुजा बीच फरवरी, 1838 ई० को एक त्रिपक्षीय संधि हुई।
कंपनी की सहायक सेनाएँ शिकारपुर एवं भक्कर में रखने के उद्देश्य से फरवरी, 1839 ई० में सिंध पर एक और संधि लादी गई।
चार्ल्स नेपियर ने 1843 ई० में सिंध पर आक्रमण कर इमामगढ़ का दुर्ग जीत लिया।
1843 ई० के अंत तक संपूर्ण सिंध का ब्रिटिश राज में विलय हो गया।
रजवाड़ों का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय
लॉर्ड डलहौजी के भारत आने के पूर्व भी किसी न किसी बहाने एक-एक करके भारतीय रियासतों के विलय हुए। भरतपुर किला (1826 ई०), कछार (1832 ई०), कुर्ग (1834ई०) एवं सिक्किम (1850 ई०) आदि।
भारत की उत्तराधिकार की परंपरागत प्रथा को अंग्रेजों ने तोड़कर कई राज्यों का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय किया। ये विलय लॉर्ड डलहौजी के व्यपगत सिद्धांत (doctrine of lapse) के तहत किया गया-सतारा (1848 ई०), बघात (1850 ई०), उदयपुर (1852 ई०), नागपुर (1854 ई०), झांसी (1853 ई०), अवध (1856 ई०)।
1848 ई० में कर्नल सलीमन को लखनऊ (अवध) का ब्रिटिश रेजीडेंट नियुक्त किया गया।
सलीमन ने अवध में कुशासन (misgoverned) का आरोप लगाया।
1854 ई० में सलीमन के स्थान पर आउट्रम आया उसने भी उपरोक्त आरोप को दुहराया।
13 फरवरी, 1856 को अवध के ब्रिटिश राज में पूर्ण विलय की घोषणा कर दी गई तथा नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी छोड़ने पर विवश कर दिया गया। इस प्रकार अब अंग्रेजों के अधीन समस्त भारत वर्ष था।