स्वतन्त्रता आंदोलन का द्वितीय चरण

स्वतन्त्रता आंदोलन का द्वितीय चरण

  • इस काल को उग्रवादी राष्ट्रीयता का युग कहा जाता है !
  • 1892 ई० में पारित ‘इंडिया काउंसिल एक्ट’ सुधारों के दृष्टिकोण से अपूर्ण एवं अपर्याप्त थे।
  • 1876 ई० से 1900 ई० तक पड़े 18 अकालों के प्रति असंतोषजनक नीतियाँ वायसरायों द्वारा अपनाई गई।
  • 1897-98 ई० में पूना के आस-पास प्लेग के कारण 1 लाख 73 हजार लोगों की मौत हो गयी।
  • महान राष्ट्रवादी एवं ‘केसरी’ नामक पत्रिका के संपादक बाल गांगाधार तिलक को सरकार विरोधी भावनाएँ उभारने के आरोप में 18 माह का कठोर कारावास दिया गया।
  • 1892-1904 ई० तक इंगलैंड में कंजरवेटिव पार्टी (अनुदार दल) का शासन रहा, वह भारतीयों को किसी प्रकार का राजनीतिक अधिकार दिये जाने के पक्ष में नहीं था।
  • अबसीनिया एवं जापान ने क्रमश: 1896 ई० एवं 1905 ई० में इटली तथा रूस जैसे देशों को हराया। इससे यूरोपीय महाशक्तियों के अजेयता की धारणा टूटी।
  • लॉर्ड कर्जन ने कलकत्ता के निगम पर सरकारी नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से कलकत्ता कॉरपोरेशन एक्ट-1899 पारित कर निगम के गैर-मनोनीत सदस्यों की संख्या में 25 अंकों की कमी कर दी।
  • कलकत्ता कॉरपोरेशन एक्ट के विरोध में निगम के 28 भारतीय सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया।
  • उच्च शिक्षा पर सरकारी नियंत्रण स्थापित करने उद्देश्य से लॉर्ड कर्जन ने इंडियन यूनीवर्सिटीज एक्ट-1904 पारित किया। इससे शिक्षित वर्ग में असंतोष एवं क्षोभ उत्पन्न हुआ।
  • लॉर्ड कर्जन ने ऑफसियल सीक्रेट्स एक्ट 1904 पारित किया, जिससे समाचार पत्रों को मात्र सरकार समर्थक बातें ही छापने का दबाव पड़ा।
  • उपरोक्त कृत्यों का कांग्रेस के युवा वर्ग ने विरोध किया तथा कांग्रेस के अंदर एक नयी विचार धारा उग्रवाद का उदय हुआ।
  • उग्रवादी विचार धारा के प्रमुख नेता थे-बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय तथा अरविंदो घोष।
  • लॉर्ड कर्जन के प्रतिगामी नीतियों का चरमोत्कर्ष ‘बंगाल विभाजन में दिखता है।

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