हर्षवर्द्धन की मृत्यु के बाद भारत में तीन प्रमुख शक्तियों पाल, प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट वंशों का उदय हुआ, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में लंबे समय तक शासन किया।
कन्नौज पर प्रभुत्व के सवाल पर उपरोक्त तीनों राजवंशों के बीच ‘8वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में एक ‘त्रिपक्षीय संघर्ष’ आरंभ हुआ जो 200 वर्षों तक चला।
कन्नौज गंगा व्यापार मार्ग पर स्थित था और रेशम मार्ग से जुड़ा था। इससे कन्नौज रणनीतिक और व्यावसायिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण बन गया था।
कन्नौज उत्तर भारत में हर्षवर्धन के साम्राज्य की तत्कालीन राजधानी भी थी।
यशोवर्मन ने कन्नौज में 730 ईस्वी के आसपास साम्राज्य स्थापित किया।
वह वज्रायुध, इंद्रायुध और चक्रायुध नाम के तीन राजाओं का अनुगामी बना जिन्होंने कन्नौज पर 8वीं सदी के अंत से 9वीं शताब्दी के पहली तिमाही तक राज किया था।
दुर्भाग्य से, ये शासक कमजोर साबित हुए और कन्नौज की विशाल आर्थिक और सामरिक क्षमता का लाभ लेने के लिए कन्नौज के शासक, भीनमल (राजस्थान) के गुर्जर-प्रतिहार, बंगाल के पाल और बिहार तथा मान्यखेत (कर्नाटक) के राष्ट्रकूट एक दूसरे के खिलाफ युद्ध करते रहे।
इस संघर्ष में भाग लेने वाले पहले शासकों में वत्सराज (प्रतिहार वंश), ध्रुव (राष्ट्रकूट वंश) एवं धर्मपाल (पाल वंश) थे।
यह संघर्ष प्रतिहार शासक द्वारा बंगाल-विजय करने एवं राष्ट्रकूट शासक से धिरने की घटनाओं के साथ आरंभ हुआ।
अंतत: इस संघर्ष में प्रतिहार वंश विजयी रहा। प्रतिहारों की ओर से मिहिरभोज, राष्ट्रकूटों की ओर से कृष्णा-III एवं पालों की ओर से नारायण पाल त्रिपक्षीय संघर्ष के अंतिम चरण में शामिल हुए।
प्रतिहार नरेश मिहिरभोज ने कृष्णा-III एवं नारायणपाल को हराकर कन्नौज पर अधिकार कर लिया तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।