एक गाँव में एक चालाक खरगोश रहता था। उसे एक दिन खट्टी मूर्तियों की दुकान पर जाने का मौका मिला। वह उसे एक गहरे गड्ढे में गिरा दिया। मूर्ति बहुत खुश हो गई कि उसे खरगोश ने बचा लिया। परंतु, खरगोश का उद्देश्य था मूर्तियों को सस्ते में खरीदना।
खरगोश ने दुकानदार से कहा, “यह मूर्तियाँ कितने की हैं?“
दुकानदार ने कहा, “हजार रुपये प्रति मूर्ति।”
खरगोश ने अपने मुंह से बात बदलकर कहा, “बहुत महंगा है। मैं इसके लिए बस पंज सौ रुपये ही दे सकता हूँ।”
दुकानदार ने इनकार कर दिया, परंतु खरगोश ने अपनी चालाकी से दुकान से बाहर निकल लिया।
दो दिन बाद, खरगोश वापस आया और कहा, “मैं आपकी दुकान की खिड़की के बाहर गड्ढा खोद रहा था, और मैंने खट्टी मूर्तियों की एक और गुणवत्ता वाली मूर्ति खोदी है। इसमें कोई कमी नहीं है। मुझे लगता है आपको इसकी कीमत में कमी करनी चाहिए।”
दुकानदार ने उस मूर्ति को देखा और स्वीकार कर लिया। खरगोश ने अपनी मांसखोर चालाकी से मूर्तियाँ सस्ते में खरीद लीं और उन्हें अच्छी कीमत पर बेच दी।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि कुछ लोग हमेशा ही दूसरों को फुसलाकर अपना लाभ उठाने की कोशिश करते हैं, परंतु सच्चाई हमेशा जीतती है। चालाक खरगोश चालाक खरगोश चालाक खरगोश