संसद एवं राज्य विधानमंडल की स्थिति धन विधेयक के संबंध में एक समान है अर्थात विधेयक के संबंध में उच्च सदन केवल अपनी सिफारिशें दे सकता है जिन्हें स्वीकार करना न करना निम्न सदन पर निर्भर कर सकता है |
धन विधेयक भिन्न अन्य सामान्य विधेयक संसद अथवा राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन में शुरु किए जा सकते हैं| किसी एक सदन संसद के द्वारा पारित विधेयक से दूसरा सदन असहमत है अथवा 6 माह के भीतर लौटाता नहीं है तो उस विधेयक पर अंतिम रूप से विचार विमर्श करने एवं मतदान करने हेतु राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आयोजित की जा सकती है| ऐसी संयुक्त बैठक में दोनों सदनों की उपस्थिति एवं मत देने वाले सदस्यों की बहुसंख्या प्रभावी होगी तत्पश्चात विधेयक को राष्ट्रपति के सम्मुख अनुमोदनार्थ भेजा जाएगा| (अनुच्छेद 108)
राज्यों में साधारण विधेयक विधानमंडल के किसी भी सदन में पुनः स्थापित किए जा सकते हैं यदि विधेयक विधानसभा द्वारा पास कर दिया जाता है और विधानपरिषद विधेयक को स्वीकार करती है अथवा उसे 3 माह के भीतर पारित नहीं किया जाता है तो विधानसभा विधेयक को अन्य संशोधनों के साथ अथवा अन्य संशोधनों के बिना पुनः पारित कर सकेगी और उसे वहां विधान परिषद को पुनः भेज सकती है| [अनुच्छेद 197(1)]
यदि विधान परिषद किसी विधेयक को दूसरी बार फिर अस्वीकार कर देती है अथवा संशोधन प्रस्तावित करती है अथवा विधेयक को परिषद में रखे जाने की तिथि से एक माह के भीतर पारित नहीं करती है तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाएगा और उसे अनुमोदन हेतु राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा अर्थात राज्य विधानमंडल में असहमति या गतिरोध होने पर संयुक्त बैठक का कोई प्रबंध नहीं है |
संविधान के उपबंध उन्हीं विधायकों के संबंध में लागू होती है जो विधानसभा में प्रारंभ होते हैं परिषद में शुरू होने वाले विधेयकों के संबंध में इस प्रकार का कोई उपबंध नहीं है अतः यदि कोई विधेयक परिषद द्वारा पारित होकर विधानसभा को भेजा जाता है और विधानसभा विधेयक को अस्वीकार कर देती है तो विधेयक समाप्त हो जाएगा परिषद ऐसे विधेयक को द्वारा पारित नहीं कर सकती |